◆ श्रीविद्या अंतर्गत सौंदर्यलाहिरी ” उच्छिष्ट ब्रम्ह “◆
भाग : २
कल की लेख में आपने श्रीविद्या की कुण्डलिनी साधना में उच्छिष्ट ब्रम्ह क्या है और शेष शक्ति जगने बात प्रतिप्रसव के लिए तयार हो जाती हैं ।
अब यह प्रतिप्रसव क्या है ? ?
आपको लगेंगा की प्रतिप्रसव मतलब , ध्यान में जाकर अपने पूर्व कर्म को मन की काल्पनिक विचारो से ध्यान में नष्ट करना अथवा पितरो के कर्मों उनके दोष को किसी मानसिक कल्पना से नष्ट करना ।
इसे प्रतिप्रसव नही कहते ।
सौंदर्यलाहिरी प्रतिप्रसव मतलब मुलाधार से लेकर शिव तत्व तक जितने भी सारे तत्व आते उनका विलनिकरन शिव तत्व में करना है ।
यह पढ़ने के लिए आसान लगता है पर सहज नही है । श्रीविद्या में गुरु यही चाहता है कि उसके शिष्य को सही ज्ञान की सही तत्व की पहचान हो , इसलिए हर वो ज्ञान देंगा जो उसे जरूरी हो। कई गुरु दो – चार दिन की।शिबिरे लगाते है , हजारों लोगों को इकठ्ठा करते हैं , मंत्र देते है , ध्यान करवाते है और भाग जाते हैं । उनके पास कोनसे लोग आए है किस स्वभाव के है , उसका कोई मालूमात नही होती , और लोग भी अंधभक्ति करते हैं । उनको ट्रीट ही ऐसे किया जाता है कि वो बड़ी साधना कर रहे हैं ।
पर ये सब गुब्बारे भर हवा है जिसे फोड़ो तो फट जाएगा , सब भ्रम …… ।
श्रीविद्या में प्रतिप्रसव को समझने के लिए पहले , मूलाधार की नींव को समझो , मूल छह चक्र उनका कनेक्शन सहस्रार से , और सहस्रार एक ठहराव है …. आगे बढने के लिए । आपको लगेंगा की सहस्रार तक दुनिया है , यही पर विश्व खत्म हो जाता है , तो श्रीविद्या साधक होकर आप बहुत बड़े भ्रम में है । बड़े कॉलेज में एडमिशन तो हुआ पर गुरु ने शिक्षा ही ठीक नहीं दी ।
सहस्रार से इस ब्रम्हांड को भेद कर , उससे आगे की महाब्रम्हाण्ड तक कैसे जाए , उसके लिए कुण्डलिनी का द्वदशान्त विज्ञान – उनको 36 तत्वो से कैसे जोड़ा गया है , इसका ज्ञान होना चाहिए ।
इस प्रतिप्रसव में यह अत्यंत अत्यंत महत्वपूर्ण ज्ञान है । यह सब सौन्दर्यलाहिरी में दिया हुआ ज्ञान है , जिसे श्रीविद्या में अभ्यास किया जाता हैं ।
प्रतिप्रसव में आपको लगेंगा की आप जो शिव में विलीन कर रहे हैं अथवा जो शिव को शिव तत्व समझ रहे हैं , उस शिव का मृत्यु तो नही हो रहा ?
मतलब , श्रीविद्या में कई सारी अनंत सूर्यमण्डल है जिसमे उतने ही शिव-विष्णु-ब्रम्हा है , कुछ में तो ये भी नहीं है । मूल परमशिव से ये एक एक सूर्यमण्डल के शिव बने हुए हैं । सूर्यमण्डल का काल समय खत्म होता है फिर शिव की भी मृत्यु हो जाती हैं । फिर ओरिजिनल शाश्वत शिव तत्व कोनसा है , इसको ही पहले समझे ।
फिर मुलाधार से लेकर शिव तक 36 तत्व है , प्रतिप्रसव में शक्ति को भी शिव में विलीन करने को कहा है । अब , सामन्यतः शक्ति में सब विलीन होता है , फिर शिव में शक्ति कैसे विलीन होगी ? फिर इसी 2रे शक्ति तत्व को और कुण्डलिनी शक्ति का फर्क क्या है समझना चाहिए । यह एक दिव्य एहसास है ।
इसके बाद आपको द्वदशान्त के विज्ञान को 36 तत्वों को जोड़कर सादाख्य कला और आम्नाय का विवरण समझना चाहिए ।
कुण्डलिनी सुषुम्ना मार्ग से सहस्रार शिव तत्व में विलीन होने निकलती है । सभी 35 तत्वों को भस्म करके शिव में विलीन होती है , इसे ही शिव का भस्म कहा गया है ।
यही लय क्रम मोक्ष मार्ग है ।
शिव का भस्म विभूति मंत्र है ,
अग्निरिति भस्म । वायुरिति भस्म । जलमिति भस्म
। स्थलमिति भस्म । व्योमेति भस्म । देवा भस्म । ऋषयो भस्म । सर्वे ह वा इदम् भस्म । मन एतानि चक्षूंषि भस्मानीति ।
……. सभी अशुद्ध – शुद्धाशुद्ध – शुद्ध तत्व भस्म करके शिव में विलनिकरन करना है ।
इसे ही प्रतिप्रसव कहा गया है ।
जिससे अनुसंधान करना चाहिए है , उससे तो आप करते नही । पहले अपने मन के खेल को ही नहीं समझ पाए ।
मूल विषय को न समझकर लोग हजारो रुपये भ्रमित साधनाओ में खर्च करते है , जहा मूल विज्ञान साधना मिलती ही नहीं । ऐसे लोग बद किस्मत होते । पर मोक्ष का मार्ग सभी के लिए भी नही , फिर देवी ही अपनी माया की रचना कर भ्रमित साधनाओ का जाल निर्माण करके लोगो को फिरसे फसा देती है । क्योंकि वो माया ही है । …… यही श्रीविद्या है जो अपनी पवित्रता का अनुभव उनको नही देती ।
न देवा दण्डमादाय रक्षन्ति पशुपालवत् । यस्तु रक्षितुमिच्छन्ति बुद्ध्या संयोजयन्तितम् ।। —महाभारत
ग्वाले जिस प्रकार लाठी लेकर पशुओं की रक्षा करते हैं उस तरह देवता किसी की रक्षा नहीं करते। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं, उसकी बुद्धि को सन्मार्ग पर नियोजित कर देते हैं।
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