” गुरु पूर्णिमा ” शब्द का मूल अर्थ
ॐ
नमस्ते मित्रों ,
श्रीविद्या संजीवन साधना सेवा पीठम , ठाणे में आप सभी का स्वागत हैं ।
हर साल गुरु पूर्णिमा आती है , लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से उसे मनाते हैं ।
गुरु का अर्थ सभी जानते है की गुरु अंधेरा दूर कर प्रकाश में लाता है ।
प्रकाश का अर्थ है ज्ञान ……..
जो ज्ञान आपको जीवन्मुक्ति का मार्ग दिखा सके ।
और इसके लिए आपको प्रत्यक्ष उपस्थित गुरु की जरूरत अधिक होती हैं ।
ऊपरी जगत में भी नगुरे अर्थात जिसने गुरु नही किया उस जीवात्माओं को कोई स्थान नहीं है ।
बल्कि , जिसने गुरु के साथ रहकर कुछ सीखा है , ज्ञान प्राप्ति की है , उसे ऊपरी जगत के गुरु मंडल भी प्रणाम करते हैं ।
व्यक्ति , गुरु कितने बदल सकता हैं ?
जबतक किसीको मोक्ष गुरु उपलब्ध नहीं होता , तबतक आप गुरु बदल सकते हैं ।
और मुख्य बात यह है कि मोक्ष गुरु कभी कोई मंत्र दीक्षा अथवा कुण्डलिनी जागरण नहीं करवाता ।
चाहे तो इन हजार सालो में जन्मे सन्तो के चरित्र देखे ।
बिना मंत्र के नाद से जो अनहद नाद बजाए वही गुरु है ।
बहुत बार लोग ….. कुछ चीजे आध्यात्मिक जगत में समझकर नहीं लेते ।
आजके समाज में शॉर्ट कट बहुत फैला हैं ।
एक मंत्र एक यंत्र और कुण्डलिनी के स्टेप कल्पना करके आध्यात्मिक अनुभूतियां ली जाती हैं । इसमें गुरु से रूबरू मिलन भी नहीं होता ।
घर जाने पर आगे कैसे बढ़ना है ? आने वाली अनुभति माया है की सत्य है ? इसकी पहचान कैसे होगी ?
आपने कभी वीणा बजाने वाले , व्हायोलिन , तबला , बासुरी बजाने वाले को पूछा है ? या फिर ……. शास्त्रीय संगीत सुनते ही आप , …… उनसे कभी पूछा है की , क्या आपने गाना चार दिन के शिविर में सीखा ? सभी ताल सभी सुर सभी राग सीखने में कितना समय लगा ?
तुम क्लास कितने दिन गए ? गुरु से कितनी डाट खाई ? गुरु से बातचीत कितनी हुई ? तुमने कितने सवाल पूछे गुरु से ?
मित्रों , शास्त्रीय संगीत और नृत्य की पढ़ाई बहुत कठिन होती है । टीचर बड़ी लाठी पैरों पर मार मार के एक एक स्टेप करवाके लेता है ।
इतनी सालो की कड़ी मेहनत के बाद कोई स्टेज पर जाकर अपनी कला प्रदर्शित करता है ।
आप लोग इन कलाकारों से ऊपरी सवाल जरुर पूछिए , आध्यात्मिक प्रगति में यह मार्गदर्शक होंगे ।
क्योंकि , यह आध्यात्मिक जगत में बहुत लोग भ्रामित हैं । उन्हें लगता है कि गुरु तस्वीर से अथवा गुरु अपने मन में आकर सबकुछ सिखाएगा ।
किसीके रूप को गुरु मानना और किसी गुरु का रूप अपने अंदर समाहित करना , दोनों में अंतर है ।
अब गुरु पूर्णिमा का अर्थ क्या है ?
गुरु यानी अंधेरा दूर करने वाला और ज्ञान का प्रकाश लाने वाला ।
पूर्णिमा क्या है ? , 16 तत्व चन्द्र के जिसे सोमकला श्रीविद्या में कहते हैं । सूर्य की रोशनी चन्द्र पर रिफ्लेक्ट होती हैं और चन्द्र की रोशनी पृथ्वी पर रिफ्लेक्ट होती है ।
इसी सूर्य-चन्द्र-पृथ्वी की रोशनी की गति को हम अमावस्या और पूर्णिमा कहते है , 15 – 15 दिन ।
इसीमें Time अर्थात काल बंधा है , और उसी काल में हम सबकी कार्मिक अकॉउंट बंधी हैं । पृथ्वी पर ही जन्म मृत्यु होते है , बार बार नए नए जन्म कर्म भुगतने के लिए होते हैं , जन्म मृत्यु का अर्थ है ” अज्ञान का अंधकार “।
यही 15 दिन की अमावस्या पूर्णिमा को श्रीविद्या साधना में पंचदशी कहा हैं । पंचदशी , 15 बीजाक्षर वाला मंत्र ।
पूर्णिमा में ही एक पूर्ण कला होती है , उस दिन चन्द्र पूर्ण रूप से कुछ समय के लिए होता हैं ।
वो सोलहवीं कला हैं ।
इसलिए पूर्णिमा में सोलह कला अर्थात उसे षोडषी कही जाती हैं । षोडषी वही त्रिपुरसुंदरी है ।
यह सूर्य – चन्द्र – पृथ्वी का Time डायमेंशन हैं , इसी ” चांद ” का प्रतीक शिव के सर पर है और दसमहाविद्याओ के सर पर भी वही चांद है ।
यह 16 कला रूपी चंद्रमा , अर्थात समय से परे अर्थात समय पर पूर्ण नियंत्रन करने वाली शक्तियाँ है , उसका प्रतीक हैं ।
गुरु क्या करता हैं ?
इसी 16 रूपी पूर्णिमा के समयचक्र में फंसे मनुष्य की जीवत्मा को गुरु अपने ज्ञान अमृत से बहार लाता है ।
क्योंकि , समयचक्र में फसना अर्थात जन्म – मृत्यु बंधन और फिर से नए कर्म , फिर से पुराने कर्मो का भुगतान करना । यही है अज्ञान । यही है अविद्या ।
इसलिए कभी भी ” पूर्णिमा गुरु ” नहीं कहा जाता ।
बल्कि ” गुरु पूर्णिमा ” कहा जाता हैं ।
दत्तात्रेय जी ने कई सालो तक श्री दक्षिणामूर्ति जी के पास रहकर ज्ञान प्राप्ति की थी । अंतिम पँचमवेद का ज्ञान भी दिया , जो श्रीविद्या साधना में गुरु अपने शिष्य को देता हैं । परशुरामजी के पास दुनिया के सभी अस्त्र शस्त्र तथा ज्ञान था , फिर भी माया ने उन्हें फसाया । और इतना सबकुछ होकर भी उन्हें अंतिम ज्ञान के लिए दत्तात्रेय जी के पास जाकर श्रीविद्या का पवित्र ज्ञान लेना पड़ा । परशुरामजी बहुत सालो तक दत्तात्रेय के पास रहे ।
आजका यह लेख मेरे गुरु के ज्ञान का प्रकाश है , जो में लिख रहा हु ।
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श्रीविद्या पीठम , ठाणे
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