तंत्र साधना में ” ग्रह लगना ” … क्या हैं ?

? साधना मार्ग में ” ग्रह लगना ” , क्या हैं ? ?

ह्रीं
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Article Publish by SriVidya Pitham

कुछ लोगो ने सुना होगा , कोई व्यक्ति बहुत सारी पूजापाठ कर रहा है अथवा अलग अलग मंत्र तंत्र कर रहा है और उसके कारन उसकी मानसिक शारिरिक स्तिथी बिगड़ गई हैं , तो उस व्यक्ति को ग्रह लगा हैं । ऐसा आम तौर पर साधना मार्ग में बोला जाता हैं ।

ये एक भाषा है आध्यात्मिक जगत की , कुछ लोग इसको ऐसा भी कहते है कि बहुत ज्यादा मंत्र तंत्र करने से दिमाग घूम गया है अथवा वाममार्ग में कोई कहेगा , गलत विद्याओ के चक्कर में पड़ने से उसको चेटिका लगी हैं ।

अब ग्रह लगना ? अंदाजन अर्थ तो समझ आया होगा आपको ।

ग्रह कब लगता है ?

यहां कोई ग्रह लगना मतलब सूर्य चन्द्र राहु शनि ग्रह लगा है , ऐसा शब्दप्रयोग नहीं हैं ।

अब देखिए , दुनिया में न जाने कितने लोग कितनी कितनी साधना , मंत्र , तंत्र , यंत्र करते हैं । इसमें बहुत सी संख्या यहां वहां से किताबे देखकर , ब्लॉग देखकर नेट से अथवा किसी न किसी गुरु से मंत्र तंत्र ग्रहण करते हैं । किसका उद्देश क्या होगा , वही जाने ।
बहुतों को लगता है की , वे भगवती को प्रसन्न करेंगे , कुछ को लगता है वो सिद्ध बन जायेंगे और कुछ बस सेवा करना चाहते हैं । पर कुछ समय बाद होता उलटा हैं और तीनों टाईप के लोगो में , उनका रचाया मंत्र तंत्र उल्टी विपरीत दिशा में घूमकर उनके ही सर पर बैठ जाता हैं।

जिससे की बहुत लोग बाद में मानसिक दृष्टि से अस्वस्थ , तनावग्रस्त , स्वभाव से विचित्र बन जाते हैं । शारीरिक स्थिति कौटुंबिक स्थिति भी बिगड़ जाती हैं । पहले जब कुछ नहीं करते थे तब अच्छा था , पर अब उस मंत्र तंत्र को इतना कर लिया कि सब उल्टा हो गया । इसको ग्रह लगना कहा है ।

बहुत ही कम लोग होते हैं , जिनको उस शक्ति के द्वारा सही मार्ग मिलता हैं । अब ये संभव है की ,जिसके ऊपर पुर्वजन्म का पुण्य संचय हो अथवा किसीको गुरु से सही दिशा मिली हो । तथा मंत्र तंत्र की अलग अलग स्तर होते हैं , किस स्तर की विद्या के मंत्र हमे किस प्रकार से लेना चाहिए इसकी भी एक मर्यादा नियम होते हैं। जब मर्यादाओं का उल्लंघन होता हैं , तब जाकर ग्रह लगना जैसे क्रियाए होती हैं ।

सामन्य स्तर के मंत्रो में तांत्रिक मंत्र प्रयोग नही आते , उदाहरण : ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । , ॐ नमः शिवाय । , ॐ दुं दुर्गाय नमः । ई
मध्यम स्तर के मंत्रो में दुर्गाओं के मंत्र , उपमहाविद्याओ के समकक्ष शक्तियां आती है । नव दुर्गा , शूलिनी , वनदुर्गा , थोड़ीसी उग्र शक्तियां , भैरवो की साधना वगैरा ।
उच्चे स्तर पर की विद्याओ में अघोर , उग्रतम , दसमहाविद्याएं , वाममार्गी आती हैं । ( अंदाजन बता रहा हूँ । )

बड़ी ऊंचे स्थान की महाविद्याओं की गुरूपादुका बिना , सही पूजा विधान के बिना मंत्र जाप नहीं होते । मंत्र जाप की विधि यह किसी भी साधना की अंतिम स्टेज होती हैं । तर्पण अभिषेक यंत्र पूजन होमम से सब उस शक्ति का चैतन्य बढ़ जाता हैं तब मंत्रो के जाप शुरू हो जाते हैं । और उनकी उष्णता को संकुचित करने के भी तरीके होते हैं ।

ग्रह लगना मतलब सूर्य राहु केतु ग्रह नहीं , बल्कि अशुभ शुभ आत्माए किसी साधक के शरीर पर हावी होते हैं , उसीको कहा है ।

ग्रहों में कितने प्रकार होते हैं ?
1. दिव्य ग्रह ( स्त्री और पुरुष ग्रह )
2. अदिव्य

आज हम दिव्य ग्रह के संदर्भ में जानकारी लेते हैं ।
इनमें भी स्त्री ग्रह और पुरुष ग्रह ऐसे दो प्रकार होते हैं। वैसे तो दोनों ग्रह मनुष्यो को पकड़ सकते हैं । आपने कभी कभी देखा होगा किसीके ऊपर भूत प्रेत आते हैं और किसीपर देव आते हैं । इसके बारे में शास्त्र क्या कहते हैं , इसिपर एक नजर डालेंगे ।

पुरुष ग्रह में 7 प्रकार होते हैं ।
( देव गंधर्व नाग यक्ष ब्रम्ह राक्षस भूत व्यंतर )
सबकी ऊर्जा अलग अलग है और उनके किसी मनुष्य को पकड़ने का कारण भी अलग अलग है । देव शक्ति वाली ऊर्जा सामन्य व्यक्ति को नही पकड़ेंगे , वे कोई उत्तम साधक के शरीर का ही सहारा लेंगे । राक्षस और भूत तत्व की उर्जा होने वाली शक्तियां ज्यादातर गलत साधना मंत्र बोलने वाले , आभिचारिक प्रयोग करने वालों को पकडते हैं । गंधर्व शक्तियां कलाकार क्षेत्र संबधी व्यक्ति के शरीर का आसरा लेकर कार्य करते हैं ।

देव सदा पवित्र स्थान पर रहते हैं , नाग हमेशा सोता है और अंग तोड़ मरोड़ डालता है , यक्ष बहुत प्रकार से रोता है हँसता है , गन्धर्व अनेको कलाएँ दिखाता है , ब्रम्हराक्षस शाम को जप करता है वेद पढ़ता है और घमंडी रहता है , भूत आँखे फाड़ फाड़ कर देखता हैं और शिथिल गति से जांभई देता है , वो पागलो की तरह रहेंगा ।

स्त्री ग्रह में 9 प्रकार होते हैं ।
( काली कंकाली कराली कालराक्षसी जंघि प्रेताशिनी यक्षी वेताली और क्षेत्रवासिनी )
काली से पकड़े हुए का शरीर कृष्णवर्णीय बनता हैं और हथेली नेत्रों में जलन लगती हैं । कराली से पीड़ित व्यक्ति अन्न नहीं खाता । कंकाली से पकड़े हुए का शरीर पिला पड़ जाता हैं । राक्षसी से पकड़ा हुआ व्यक्ति जोर से अट्टहास करेगा , सोयेगा नहीं , रात्रि में घूमेगा नहीं । जंघि से पीड़ित व्यक्ति कृश हो जाता हैं । प्रेताशिनी वाला व्यक्ति भय वाले आवाजे निकालता हैं और दांत ओठ चबाता है । यक्षी पीड़ित व्यक्ति स्त्री से दूर रहता है । वेताली बाधित का मुँह सुख जाता हैं । क्षेत्रवासिनी ग्रसित व्यक्ति पागलो की तरह नाचता है और हँसता है , बहुत वेग से दौड़ता है ।

इसलिए , साधना क्षेत्र में मार्गदर्शक उत्तम होना जरूरी हैं और साधना की प्रोसेस भी सही होनी चाहिए । 

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धन्यवाद ।

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One thought on “तंत्र साधना में ” ग्रह लगना ” … क्या हैं ?

  1. आदरणीय अनामदेव जी को मेरा प्रणाम ,
    उपरोक्त लेख मे जो आपने बताया है वह अति महत्वपूर्ण योगदान है।
    अब आपसे अनुरोध है की इसका उपाय भी बताने की कृपा करें।
    इस समस्या का निवारण क्या है।

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