◆ श्रीविद्या साधना अंतर्गत पंचदशी मंत्र का ” ककार ” ◆
भाग : 1
श्री ललिताय नमः ।।
प्रसन्नोस्तु जगन्मात : ।।
मेरे शरीरधारी गुरु तथा मेरे पराजगत के गुरु श्रीमहावतार बाबाजी को प्रणाम , करके उनकी प्रेरणा से ये महत्वपूर्ण ज्ञान आपतक पहुचा रहा हूँ ।
श्रीविद्या साधको के लिए आजका विषय अति महत्वपूर्ण है। मेरे पास बहुत सारे श्रीविद्या साधना दीक्षा लिए हुए साधक आते है ।
श्रीविद्या में पंचदशी मंत्र का जाप करने दिया जाता है। पंचदशी मतलब 15 अक्षरों से बना मंत्र । इस विषय मे तो प्राथमिक ज्ञान साधक गन जानते ही है।
पर प्रश्न उठता है कि बहुत सारे श्रीविद्या साधको को पंचदशी मंत्र का जाप करते है हुए अंदर से मन-हृदय की भावना इस मंत्र से नही जुड़ पाती ।
बस , कोई गुरु कहता है इस श्रीविद्या के इस मंत्र के जाप से भोग मोक्ष की प्राप्ति होगी और साधक शिबिर खत्म होने के उपरांत रोज पंचदशी मंत्र रट्टा मारता है।
गलत श्रीविद्या गुरुओ की कमर्शियल फैक्ट्री में जाने पर ऐसा ही होता है।
पर वो पूर्णरूप से नही जुड़ पाता । क्यों?
पहले ये समझे कि पंचदशी मंत्र है , ” क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं ” ….. पहली ही बार मे किसी साधक को यह मंत्र दीक्षा रूप में नही दिया जाता । फिर भी कुछ जगह इसे डायरेक्टली इसे देते हैं।
इस मंत्र को देख , एक सामान्य व्यक्ति के मन मे सवाल उठेगा की इसमे देवी का नाम कहा है ?
क्योंकि सबको सिर्फ देवी-देवता के नाम जिसमे हो उसी मन्त्र को जपने की ओर स्तोत्र पढ़ने की आदत होती है। जैसे कि , श्री मात्रे नमः। ॐ नमः शिवाय । ॐ दुर्गाय नमः। ॐ बटुकाय नमः। ई मंत्र जपते हुए अंदर से उस देवता के प्रति अपना पन लगता है।
पर , ….. ये क ए ई ल ह्रीं …. जपते हुए हर शब्द पर मन सवाल उठता है कि इसमें कहा है ललिता ? किस बीज में है त्रिपुरसुंदरी ? सिर्फ कुछ अलग थलग बीजाक्षरों को जोड़ कैसा मंत्र है ये ? ओर साधक संशयित अनेको सवालों से भरे विचारों से जाप करता है।
मेरे इस विषय मे आप भी अपनी अंतरात्मा की भावविश्व में तर्क लगाए।
पंचदशी मंत्र मूल दीक्षा पद्धति में पहिली बार नही दिया जाता । जैसे , एक मनुष्य जन्म लेते ही चल-फिर नही लेता , उसको कुछ सालों में पूरी समझ नही आती , अगर बच्चा भी जन्म लेना हो तो भी गर्भ पूर्ण तयार होने में नो महीने लगते है , गाड़ी भी चलानी हो या कोई जॉब भी करना हो तो एक ट्रेनिंग होती है। इसमे कोई शॉर्टकट नही है।
वेसे ही पूर्ण ब्रम्हांड की शक्ति समाई हुई इस श्रीविद्या के पंचदशी मंत्र को आप एक-दो दिन के शिबिरो में कैसे समझ सकते हैं।
उस महाशक्ति को पचाने के लिए भी कुछ प्राथमिक साधनाए जरूरी है।
सूर्य प्रकशित होता है तो उसीमे से कितने किरणे बहार प्रक्षेपित होती है ? हजारों?लाखों? करोड़ों या अरबों? कोई गिन नही सकता ।
वेसे ही सहस्र कोटि सूर्यो के तेज से बनी श्रीविद्या श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी की प्रक्षेपित किरणे यानी सूक्ष्म सूक्ष्म शक्तियाँ आप कैसे गिन सकते है ? अथवा कैसे महसूस कर सकते हैं?
शक्ति इस प्रक्षेपित किरणों को कॉम्प्रेस कर के इन पंधरह अक्षरों में समाई हुई है।
पंचदशी के एक एक अक्षर को गुरु के पास बैठकर बातचीत कर उसके समाहित शक्ति को समझना जरूरी है । हजारो की टोली में ये नही होता ।
ऊपर दिए हुए किसी विषयो के बारे में कोई उल्लेख शिबिरो में नही होता । और साधक भी अंधा विश्वास रख आगे असल ज्ञान को पाने की पराकाष्ठा नही करते।
ऐसे गलत साधना करने से , साधक का कुल-कुलाचार कुपित तो होता है और मानसिक अवस्था बिगड़ती है ।
एक बच्चा जन्म लेता है , तो उसकी घड़ाई करने में माँ-बाप को कितने साल चले जाते है । उसके बाद वो बच्चा समाज मे एक प्रौढ़ व्यक्ति बनता है।
वेसे श्रीविद्या एक बहुत बड़ा संस्कार है , जिसको लंबी फीज ओर घर में अनेको श्रीयंत्र ओर फ़ोटो लगाकर नही सीखा जा सकता।
पंचदशी का कितना भी जप करो देवी प्रत्यक्ष आपके सामने हाजिर होकर श्रीविद्या का पराविज्ञान नही दे सकती । इसलिए गुरु को जन्म दिया और गुरु ने गुरुकुल बनाया ।
ये विस्तार को इसलिए यहां लिखा है कि इस लेख के विषय को समझने के लिए मेच्युर बुद्धि और स्वभाव चाहिए ।
पंचदशी मंत्र में पंधरह अक्षर है। उसके तीन अक्षर ” क ” से है यानी ककारादि ।
श्रीललिता परमेश्वरी के प्रक्षेपित इस तत्व को ही हम समझेंगे।
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