◆ श्रीविद्या साधना अंतर्गत पंचदशी मंत्र का ” ककार ” ◆
भाग : 2
श्री ललिताय नमः ।।
प्रसन्नोस्तु जगन्मात : ।।
मेरे शरीरधारी गुरु तथा मेरे पराजगत के गुरु श्रीमहावतार बाबाजी को प्रणाम , करके उनकी प्रेरणा से ये महत्वपूर्ण ज्ञान आपतक पहुचा रहा हूँ ।
ककारध्यानमात्रेण सर्ववर्णं हि सिध्यति ।
ककारभावनाच्चेव सर्वांसां भावना भवेत ।
तस्मात सर्वप्रयत्नेन ककारं हृदि भावय ।।
ऊपरी श्लोक में लिखा है , पंचदशी मंत्र प्रथम बीज ” क ” , इसके ध्यान से ही सर्व वर्ण यानी सभी 51 मातृका ओ का स्मरण तथा सिद्ध हो जाते हैं।
पंचदशी के सभी 15 अक्षरों का अलग अलग अर्थ है । पंचदशी में तीन ककार आते है । वाग्भव-कामराज-शक्ति इन तीन कूटो में एक एक क बीजाक्षर है।
यह प्रथम बीज क , गायत्री मंत्र के प्रथम शब्द तत से समरूप है। गायत्री मंत्र ही पंचदशी है और पंचदशी ही गायत्री है । दोनों समतुल्य है।
यह क ब्रम्ह तत्व का वाचक है , क यानी कामेश्वर का प्रतीक । श्रीयंत्र के ऊपरी त्रिकोण अंर्तगत बिंदु की उत्तपत्ति तीन ककार एवं ई कार से हुई है। यानी तीन क बीजाक्षर मातृकावर्ण से ।
अब थोडासा आप इस एक एक मातृका की शक्ति को समझ रहे होंगे । यही क प्रकाश है । प्रकाश वो नही जो सिर्फ आखों को रोशनी दिखाई देती है। या सिर्फ सूरज को किरणे भी नहीं ।
परमात्मा का विश्वनिर्मिती का संकल्प जब व्यष्टि में बदलता है तब वह विस्तार लेता है , वह सङ्कल्प दिव्य तेज बनकर 0 से 9 तक कि रचना करता है अर्थात सहस्रार से निकलकर मुलाधार की रचना करता है अर्थात सूर्य से नवग्रह तक …. पृथ्वी से हर एक प्राणिमात्र के सजीवरूपी सङ्कल्प तक यह विस्तार होता है , ये दिव्यमान प्रकाश है ।
यही है ककार ।
यही क बीज ललिता यानी कामेश्वरी के पति कामेश्वर का तत्व है। कामेश्वर यानी परमशिव भी कह सकते हैं।
इसी पंचदशी मंत्र के क बीज को काम भी कहते हैं।
इसके गहराई में जाते हैं। पंचदशी मंत्र है ,
क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं
ऊपरी मन्त्र में जो तीन बीज क है उसीकी चर्चा हम कर रहे है ।
इसी क बीज की निर्मिती क् + अ = क इस तरह है । यानी दो स्वर अंतर्भूत है।
क् इसका मतलब वही कामेश्वर ओर अ मतलब कंठ ।
थोड़ा विचलित हुए होंगे आप ।
श्रीविद्या को गहराई को समझने के लिए तर्कसंगत बुद्धि की आवश्यकता होती है । सिर्फ अपन नाम के आगे पीछे शिव लगाने से ये नही होता अथवा गलत गुरु को धारण करने से यह नही समझता ।
क् + अ = क , इसमे ‘ अ ‘ यानी शिव का कंठ । अब इस कंठ की निर्मिती कैसे होती हैं ।
3 ककार + 10 अकार + 5 हकार = कंठ
श्रीविद्या में क बीज की शक्ति को , एक ओर अलग रूप से आगे बताता हूं ।
श्रीविद्या साधना में गुरूपादुका प्रथम दी जाती है , जिसमे ह-स-क्ष ये तीन अक्षर आते और उनिको उल्टला कर स-ह-क्ष ये तीन वर्ण से … इन तीनो से गुरूपादुका बनती है ।
वेसे ही श्रीविद्या साधना में कामकला त्रिकोण की निर्मिती करते वक़्त भी ” क्ष ” से गुरूपादुका का मनिपीठ त्रिकोण में जोड़ा जाता हैं ।
यह क्ष क्या है ?
क् + अ = क + ष = क्ष ………. इस तरह से क्ष में भी क तत्व अंतर्भूत है ।
क्षकारेन सर्वा मातृका: संगृहिता भवन्ति ।।
अ से क्ष पर्यंत को अक्षमाला कहा जाता है , ओर क्ष बीज से समस्त मातृकावर्ण का ग्रहण हो जाता है । इसलिए क्ष बीज को भी उतना महत्व है।
यह क बीज है पंचदशी का पहिला बीज ओर उसकी महत्तता ।
दस अकार ओर पाच हकार तथा पंचदशी के हर वर्ण को समझने के लिए प्रत्यक्ष गुरु चाहिए । सब इस लेख में नही दिया जा सकता । अभी सिर्फ महाशक्ति का विस्तार को इस ज्ञान से महसूस करना है।
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