महाभैरव ने कहा “कृत्या” विज्ञान (नेत्र तंत्र)

महाभैरव ने कहा “कृत्या” विज्ञान (नेत्र तंत्र)

¶◆ श्रीविद्या अंतर्गत कृत्या छाया छिद्र ज्ञान विषय ◆¶
शिवमुख निर्मित नेत्रतंत्र से …

श्रीकामेश्वरकामेश्वरी नमः।।
श्रीविद्या संजीवन साधना सेवा पीठम , ठाणे मे स्वागत है।

भगवान शिव के 6मुखो से 6 प्रकार की श्रीविद्या का उगम उतना ही रहस्यमय हें जितना की इतिहास के पुराणे घटनाए समझ पाना।

श्रीविद्या , दसमहाविद्या , उसिके समान तीव्र शक्ती वाली महाविद्या आज लोगो का सिर्फ आकर्षण का केंद्र बन चुकी है , जीसके लिए भारत और विदेशो से लाखों लोग लाखो के खर्चे करके दिक्षाए लेते है। विदेशो मे तो आजकल श्रीविद्या की दीक्षा हजारो डॉलर्स मे बेचते हे । परंतु मूलतत्व ऐसे नहीं आता । अगर सचमे इतनी फिज देकर प्रगती होती तो भारतवर्ष की स्थिती आज बदल जाती , परन्तु सब उलटा हो रहा है।

विद्या ग्रहण करणे से पहले काफी गँभिर जाणकारी को समझना आवश्यक है। और यह गुरू की जिम्मेदारी होती हैं की अपने शिष्य को विद्या का सही ज्ञान दे सके। क्यूकी , जीस कुंडलिनी और मंत्रो के पिछे लोग भाग रहे हे असल में वह सब मायावी हैं।

शिव जी ने नेत्र तंत्र ग्रंथ में यही ज्ञान विस्तार से देने की कोशीष की है। हमने पिछली बार कृत्या देवी के विषय पर लेख लिखा था। आज इसिको नेत्र तंत्र में शिव जी ने क्या कहा हैं देखेगें।

नेत्रतंत्र सांसारिक सुखो के निवृत्ती के लिए ही निर्माण किया हैं। नेत्र तंत्र में 18 19 20 अध्यायो में कृत्या के विषय पर कहा है।

देवी पार्वती शिव जी को पुछती हैं ,…..
मंत्रणा कीलनादौ तू योजनं सुचितं विभो ।
नाख्यातं देवदेवेन यथा सिद्धयंती साधक: ।। ३।।
पर प्रयुक्ता नश्यान्ति कृत्या खाखोर्दकादय:।
( नेत्र तंत्र )

शत्रू के नाश के लिए स्त्री शरीर में प्रवेश कराई गयी वेताली शक्ती का नाम कृत्या हैं। आभिचारिक मृत्यूकारक रोग्प्रवेश करणे वाले मंत्र यंत्र को खाखोर्द कहते है।

  • प्राचीन काल में स्वचंद रूप शिव महाभैरव की महिमा से भूत योगिनीया माताए आदी शिव के आदेश से देवो की रक्षा और राक्षसो का वध करते थे । देवतागण के निर्भय हो जाणे पर वही भूत आदी स्वतंत्र हो गये। और बालक स्त्रिया इ को पकडकर पीडा देने लगे । तब देवता द्वारा प्रार्थना किए जाणे पर स्वचंद महाभैरव जी ने उनको नष्ट करणे के लिए करोडो महामंत्रो का निर्माण किया । इन मंत्रो से भयभीत वो भूत पुनः शिव के पास गये। शिव से प्रार्थना की , तब शिव ने उन्हे कहा की अशास्त्रीय अर्थात जो शास्त्र के नियम , साधनाओ के मार्ग पर नहीं चलता , जो महाविद्या श्रीविद्या मंत्रो का गलत दिक्षाए लेते है , जिनके पास गुरूपादुका दिक्षाए नहीं होती ऐसे भ्रष्टीक जीवधारी व्यक्तियो को भोगकर आप सुख पा सकते हैं।

इसलीए सामान्यत: दसमहाविद्या अथवा श्रीविद्या दीक्षा उनमें प्रथम गुरूपादुका की दीक्षा दि जाती है। कोई गुरू यह नहीं चाहेगा की उसका शिष्य गलत प्रकार से साधना करे। दसमहाविद्या श्रीविद्या पूर्वकाल मे आश्रमो मे काफी समय तक रुककर , उचित ज्ञान देकर देते थे। आज उलटा हो गया है , लोग शिविरो में ब्रम्ह का ज्ञान लेणे के लिए जाते और उलटा भ्रम में फसकर आते हैं।

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© SriVidya Pitham , Thane

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