◆ श्रीविद्या अंतर्गत शिव का लकुलीश अवतार ◆
लकुलीश या लकुटिश शिव के 18 अवतारों में से एक है । प्राचीन काल मे पाशुपत शैव संप्रदाय में लकुलीश संप्रदाय बहुत प्रसिद्ध था ।
राजपुताना , गुजरात , मालवा , बंगाल में लकुलीश की मूर्ति पाई जाती है।
पाशुपत की इस शाखा का आज कोई ऋषि नही दिखता ।
इस लकुलीश संप्रदाय के लोग कानफड़े होते ते ऐसा कहा जाता हैं ।
लकुलीश शिव के चार शिष्य थे , कुशिक – गार्ग्य – मैत्रेय – कौरष । इनमें से कुशिक जो थे वह राजस्थान एकलिंग शिव के मठ के अधिपति थे ।
इस संप्रदाय के लोग बाद में गोरक्षनाथ को मानने लगे और लकुलीश को भूल गए ।
पाशुपत की एक शाखा लाकुलिश पाशुपत भी है।
पुराणों और अभिलेखों के आधार पर कारवण उस स्थान विशेष का नाम है, जहाँ पर महेश्वर ने ” लकुलीश ” के रूप में मानव अवतार धारण किया।
उस समय उस स्थान का नाम कायावरोहण या कायारोहण पड़ गया।
यह स्थान बड़ौदा नगर से उन्नीस मील दूर स्थित वर्तमान कारवन नाम गाँव से अभिन्न है।
कायावरोहण का अर्थ काया का अवरोहण अर्थात् उतरना तथा कायारोहण का अर्थ काया का उठना या चढ़ना है। दोनों शब्द विपरीतार्थक हैं, परंतु इन दोनों नामों का औचित्य यों सिद्ध होता है।
जब महेश्वर की काया का अवरोहण श्मशान में पड़े शव में हुआ तो उस स्थान का नाम कायावरोहण पड़ गया।
उस शव में अवतरित काया उस शरीर या काया के माध्यम से ही उठी तो स्थान का नाम कायारोहण पड़ गया।
इस स्थान कायावरोहण अथवा कायारोहण का विस्तृत वर्णन कारवन माहात्म्य में मिलता है जो ईश्वर, देवी तथा ऋषियों आदि का संवाद है तथा गणकारिका के परिशिष्ट के रूप में ओरियंटल इंस्टीट्यूट, बड़ौदा से छपा है।
इसमें कारवन का महात्म्य गाया गया है तथा ” लकुलीश ” के अवतार लेने के बारे में लंबा चौड़ा वर्णन किया गया है।
इसमें ” लकुलीश ” का मुनि अत्रि के वंश में विश्वराज के पुत्र के रूप में जन्म का वर्णन है। (ग.का कारवन माहात्म्य पृ. 51)। इसमें कहा गया है कि इस स्थान पर शंकर स्वयं निवास करते हैं तथा इस स्थान के चार युगों में चार नाम गिनाए गए हैं।
वे हैं – कृतयुग (सत्ययुग) में इच्छापुरी, त्रेतायुग में मायापुरी, द्वापरयुग में मेघावती तथा कलियुग में कायावरोहण। इस तरह से कारवण – माहात्म्य में कायावरोहण अथवा कायारोहण को पुष्यस्थली माना है।
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