श्रीकांड विद्या ( ऋषियों की श्रीविद्या )

श्रीकांड विद्या ( ऋषियों की श्रीविद्या )

श्रीकांड विद्या ( ऋषियों की श्रीविद्या )


नमस्कुरु सिद्धविद्याश्रम
श्रीविद्या पीठम में आप साधक वाचकों का स्वागत हैं ।

यह लेख श्रीमहावतार बाबाजी उर्फ महेश्वर बाबा जी ने दिया हुआ उनके सिद्धाश्रम आश्रम में चलने वाली आध्यात्मिक दिनचर्या अथवा पद्धति का ज्ञान समझ सकते हैं ।

महावतार बाबाजी के सिद्धाश्रम में ऋषि मुनियों की आध्यात्मिक पढ़ाई कैसे होती हैं , उनको किस प्रकार और कैसे कैसे सिखाया जाता हैं । इसकी थोड़ी बहुत जानकारी इस लेख द्वारा आपको मिलेंगी ।
यह ज्ञान अन्य जगहों पर उपलब्ध नहीं हैं । श्रीविद्या पीठम द्वारा ही यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं ।

यह श्रीकांड विद्या पर जानकारी हैं ।

श्रीकांड एक महावतार बाबाजी के आश्रम का एक बुक हैं । सौ साल की तपस्या के बाद जब कोई ऋषि अथवा साधक सिद्धाश्रम में जाने के पात्र बनता हैं , तब उन लोगों को प्राथमिक शिक्षा के रूप में श्रीकांड नामक ग्रंथो को पढ़ाया जाता हैं ।

शुरुवाती की अवस्था मे गुरु ओ को पढ़ने में यह ग्रंथ दिए जाते हैं ।
यह श्रीकांड ग्रंथ महावतार बाबाजी के आश्रम में बहुत सारे हैं और उसे पढ़कर छोड़ देना होता हैं ।
बस यह ग्रंथो को पढ़ना होता हैं , इसके पीछे लगना नहीं हैं । यह ज्ञान के विषय पर हैं ।

श्रीकांड में श्री का अर्थ हैं ,
श्री – सृष्टि की कारणहार , जो सृष्टि की कारण हैं । उसे महावतार बाबाजी के आश्रम में उस शक्ति को श्रीकर्णिका बोलते हैं ।

दुसरा अर्थ ,
श्री – जो जिसका सब निर्माण हुआ हैं और उसीमें ही अंतिम विलीन हैं । पहले तो श्री शब्द पर अधिकार माता श्रीराधा का हैं । श्री एक बड़ी उपाधि हैं । बाद वो उपाधि ललिता को मिली ।
फिर ललिता ने महालक्ष्मी की दी ।
बाद ऊपरी देवलोक में देवी देवता भी अपने आगे श्री लगाने लग गए ।

हमारे मनुष्यों के लोक में भी पुराने जमाने में श्री शब्द नहीं लगाते थे । मान्यवर अथवा महोदय ऐसे शब्द लगाते थे। बाद श्री शब्द का प्रयोग होने लगा ।

श्रीकांड में महावतार बाबाजी के आश्रम में 3 प्रकार के यह ग्रंथ है ।
1. श्रीकंठी श्रीकांड
2. श्रीमुक्ति श्रीकांड
3. श्रीदात्री श्रीकांड

श्रीकांड में ललिता का ओरिजनल जन्म के बारे में सब ज्ञान हैं । उसका जन्म क्यों हुआ ? कैसे हुआ ? किस कारन से हुआ ? क्यों किया उसका जन्म ? जन्म होते वक्त वह ऊर्जा कैसे थी ?

किसी भी व्यक्ति अथवा ऊपरी जगत में शक्ति का जन्म लेते समय दो ऊर्जाए सृष्टी में आती हैं , एक मातापिता की होती हैं अथवा एक ही माता की अथवा एक ही पिता की ऊर्जा उस जन्म लेने वाली शक्ति में प्रथम उभर कर आती हैं ।
इसमें जन्म लेने के बाद एकदम से उस बच्चे की खुदकी ऊर्जा सृष्टी में विकास करने नहीं आती अथवा विकसित नहीं होती । उस बच्चे की खुदकी ऊर्जा बाद में डेवलप होती हैं ।
तबतक वो बच्चा उसकी मातापिता की उर्जा ही एक समय तक उपयोग में लाता हैं ।

इस माता पिता की ऊर्जा को ब्रम्ह तत्व कहते हैं , इसे गॉड पार्टिकल कहते हैं । खुद ललिता जन्म लेते समय उसकी ऊर्जा भी एकदम से उभर के नहीं आती ।
तो इसमें जब ललिता त्रिपुरसुंदरी का जब जन्म हुआ , तब उस शक्ति का जन्म भी कही से हुआ होगा ? जब ललिता का जन्म हुआ तब एकदम से तो उसकी ऊर्जा ने यूनिवर्स निर्माण नहीं हुआ होगा । वो भी उस अवस्था में उसके जन्मदात्री की शक्ति पर अवलंबित थी ।
यही अभ्यास श्रीकांड ग्रंथो में हैं ।

यह श्रीविद्या का एक अतिउच्च कोटि का अभ्यास प्राथमिक स्वरुप में सिद्धाश्रम में दिया जाता हैं ।

गॉड पार्टिकल मतलब इस सृष्टि का निर्माण करते वक़्त बच्चे के जन्म होने से पूर्व zygote Theory यहां पर काम करती हैं । इसको ही ब्रम्हतत्व कहते और ब्रम्हतत्व परा भरा भी कहते हैं ।

आप zygote Theory को गूगल पर अभ्यास कर सकते हैं ।

The Knowledge by Sri Mahavtar Babaji .

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© धन्यवाद ।
Article Publish by SriVidya Pitham.
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