?श्रीललिता सहस्रनाम ?Part 3
Word : श्रीमत-सिंहासनेश्वरी – 1
ॐ
नमस्तुभ्यं मित्रों ,
श्रीविद्या पीठम में आप सभीका स्वागत हैं ।
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आज हम तीसरे पार्ट में श्रीललिता सहस्रनाम में श्रीमत-सिंहासनेश्वरी इस शब्द की संज्ञा को समझने की कोशिश करेंगे ।
श्रीमत-सिंहासनेश्वरी ….. यह शब्द आपको अन्य किसी भी देवी देवताओं के स्तोत्र – कवच – सहस्रनाम आदि पाठों में अंकित दिखाई नहीं देंगा ।
आप साधकगण समझ ही गए होंगे कि सिंहासन उसे कहते हैं जो एक राजा को दिया जाता हैं , जहाँ बैठकर वह निर्णय कर सके , उस आसन के सामने अन्य प्रजा – मंत्रिमंडल भी नतमस्तक हो सके ।
अब यह ” सिंह ” नामके शब्द को ” आसन ” शब्द से क्यों जोड़ा गया हैं ?
सिंह जंगल का राजा होता हैं ।
जंगल में अनेको प्रकार के क्रूर हिंस्र शक्तिशाली जानवर होते हैं और उन सबमें सिंह सबका राजा होता हैं । उसमें वो सब कौशल्य होते हैं ।
इसलिए ज्यादातर राजाओं के आसन को सिंहासन शब्द से नवाजा गया है ।
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पहले के जमाने में बड़े बड़े उच्चपद के आसन शेर की चमड़ी से बनाए जाते थे । कुछ उग्र साधनाओं में भी शेर की चमड़ी का आसन प्रतिष्ठित किया जाता था ।
दसमहाविद्या साधनाओ में इस विषय का अलग ही महत्व हैं । जैसे कि एकमुंडी आसन , पंचमुंडी आसन , नवमुंडी आसन ऐसे ही शेर की खाल के अभिमंत्रित आसन ।
जिसपर बैठने से शक्ति का उसके वाहन सहित मंत्र में आविष्कार होता हैं ।
काफी लोगों को ऐसे ही लगता हैं कि श्रीविद्या साधना में मंत्रो के जाप से देवी जाग उठेंगी । पर गलत क्रियाओं से साधना धारण की हैं तो कुछ दिनों बाद साधक भी गलत जगहों पर दिखाई देता है । इसलिए गुरु से रूबरू होना जरूरी हैं । श्रीविद्या पीठम में रोजाना कई लोग देश विदेश से आ रहे हैं , क्योंकि गलत श्रीविद्या दीक्षा लेने के कारण खराब हालत हो जाती हैं और मार्गदर्शन मिलता नहीं ।
जब अब किसी भी महाविद्या का मंत्र की साधना करते हैं तब उस मंत्र के अंदर सिर्फ देवी नहीं होती । उस तत्व के साथ उसके आयुध प्रतिष्ठित रहते हैं , अनेको अंग शक्तियां विराजीत रहती हैं , उसका वाहन स्थापित रहता हैं , उस तत्व के अनुसार उसकी सिद्धी रिद्धि भी चलती हैं , उस तत्व के गुणों के अनुसार उसका सिंहासन भी विराजमान रहता हैं ।
तो मंत्र को देखने का दृष्टिकोण बदलना जरुरी हैं ।
श्रीविद्या दीक्षा में अगर ऑथेंटिक अभ्यास करेंगे तो आपको 44 मंदिरों की स्थापना दिखाई देंगी ।
श्रीयंत्र की पूर्ण पूजा में ईन 44 मंदिरों की स्थापना करनी होती हैं । जैसे कि अमृता निधी , रत्नद्विप , नानावृक्ष , कल्पवृक्ष , मंदार वाटिका , पारिजात वाटिका , कदंब वाटिका , फिर अलग अलग रत्नों के मंदिर मिलेंगे , फिर चार दरवाजो मन्दिर मिलेंगे , अलग अलग रसों से भरे तालाब रूपी नदियाँ मिलेंगी , फिर पाँच आसन मिलेंगे ।
ऐसे 44 मंदिरों की स्थापना में श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी के पंचासन की स्थापना हैं ।
श्रीयंत्र में चार दरवाजों पर चार सिंहासन विराजमान हैं , जिनकी रक्षा भैरवी शक्तियां करती हैं । इनका केंद्रबिंदु सिंहासन श्रीयंत्र के मध्य में हैं ।
श्रीविद्या साधना में श्रीयंत्र का जो अभ्यास हैं , उसमें श्रीललिता परमेश्वरी का आसन मध्यबिंदु में स्थित हैं । उसे पंचप्रेतासन कहा गया हैं , जो पाँच प्रेतों से बना हैं ।
इसलिए हमने कल के लेख में पंचमुंडी आसन बताया था ।
देवी श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी श्रीयंत्र के मध्यबिंदु पर अपने आसन सदाशिव के प्रेत के ऊपर बैठी हुई हैं ।
उसके सिंहासन के चार खुर हैं , वो श्रीयंत्र के चार दिशाए हैं।
यही चार दिशाए मतलब श्रीयंत्र के चार दरवाजे ।
श्रीयंत्र के इन चार दिशाओं में देवी ललिता खुदको चार प्रतिरूपों में विभाजित करके चार अलग अलग आसनों पर विराजमान हैं , केंद्र में वो खुद हैं । इन सभी आसनों की रक्षा अथवा ये चारों आसनों की शक्तियां भैरवी हैं ।
अब हम देखते हैं कि ये चारों आसन में हर एक आसन के चार खुर कौनसे हैं और वो शक्तियां कौनसी हैं।
१) श्रीयंत्र की पूर्व दिशा का सिंहासन
यहां पर देवी श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी , बाला त्रिपुरा के रूप में है और उसके आसन के चार खुर संपदप्रदा भैरवी , चैतन्य भैरवी , चैतन्य भैरवी 2 , कामेश्वरी भैरवी आदि चार शक्तियां इस आसन की रक्षा करती हैं ।
२) श्रीयंत्र के दक्षिण दिशा का सिंहासन
यहां पर देवी ललिता अघोर भैरवी के रूप में है ।
इस सिंहासन से चार खुर महाभैरवी , ललिताभैरवी , कामेशी भैरवी , रक्तनेत्रा भैरवी आदि हैं ।
३) श्रीयंत्र के पश्चिम दिशा का सिंहासन
यहां पर देवी ललिता षटकुटा भैरवी नाम से हैं ।
इसके आसन के चार खुर नित्या भैरवी , मृत संजीवनी देवी ,
मृत्युंजयपरा देवी , वज्र प्रस्तारिणी आदि नाम से हैं ।
४) श्रीयंत्र के उत्तर दिशा का सिंहासन
यहां पर देवी ललिता भुवनेश्वरी भैरवी नाम से हैं ।
इस आसन के चार खुर में कमलेश्वरी भैरवी , सिद्ध कौलेशी भैरवी , डामर भैरवी , कामिनी भैरवी आदि नाम से हैं ।
और ये चारों दिशाओं में जो सिंहासन है इनका केंद्रबिंदु श्रीयंत्र के मध्य में स्थित सिंहासन हैं । यहां की चारों खुर की शक्तियां सुंदरी हैं । यही से पाँचो प्रेत ( विष्णु ईश्वर रुद्र ब्रम्हा सदाशिव ) अपनी शक्ति भैरवियो के साथ श्रीयंत्र के चारों दिशाओं के सिंहासन का नेतृत्व करती हैं।
इसी मध्यबिंदु पर पंचमुखी शिव अपने पत्नी कामेश्वरी स्वरूप ललिता के साथ विराजमान हैं ।
इसी लिए श्रीविद्या साधना में दीक्षा लेते समय श्रीविद्या आम्नाय का ज्ञान होना जरूरी हैं । यही शिव आम्नाय होते हैं । न जाने कितने हजारों लोग गलत श्रीविद्या दीक्षा लेकर और लाखों पैसे खर्च करके फस चुके हैं , जिन्हें आज पश्चताप हो रहा है ।
श्रीविद्या साधना का अभ्यास लंबा और विस्तारित हैं ।
गुरु से हर समय अलग अलग ज्ञान की चर्चा होनी चाहिए ।
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© क्रमशः
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