?श्रीललिता सहस्रनाम ? Part 4
Word : चिदग्नीकुंड संभुता
ॐ
नमस्तुभ्यं मित्रों ,
श्रीविद्या पीठम में आप सभीका स्वागत हैं ।
आज हम चौथे पार्ट में श्रीललिता सहस्रनाम में चिदग्नीकुंडसंभुता इस शब्द की संज्ञा को समझने की कोशिश करेंगे ।
संपूर्ण ललिता सहस्रनाम एक प्रकार से श्रीविद्या साधना में एंटर करने से पूर्व जो भी कुछ ज्ञान विज्ञान चाहिए , उसका पायाभूत अंग हैं ।
अनेको साधक श्रीविद्या साधना दीक्षा लिए हुए मिलेंगे , परन्तु जैसे मैने पहले कहा कि बहुत सालों बाद समझमें आता हैं कि किस प्रकार से वो दीक्षा गलत तरीके से ली थी । ललिता सहस्रनाम किस लिए निर्माण हुआ ?
गुरु अगस्ति मुनी ने बहुत हट किया । उनको उस आदिशक्ति का स्वरूप और मूल जानना था। तीन बार सहस्र सालों तक तप करने के बाद कही विष्णु स्वरूप हयग्रीव जी ने उन्हें पहले उस आदिपराशक्ति का स्वरूप समझाने के लिए वशिनादि वाग्वादिनी शक्तियों को बुलाकर श्रीललिता का पुरा साम्राज्य – इतिहास – चरित्र – साधनाक्रम-विस्तार-शक्ति इनसे परिचित करवाया । उसी परिचय को ललीता सहस्रनाम कहा गया है।
अनेको साधक इसी मूल अमृतधारा को अनदेखा करते हैं ।
चिदग्निकुण्ड क्या हैं ?
इसे समझने से पूर्व भण्डासुर क्या है समझना जरूरी हैं ।
भंडासुर एक अज्ञान से भरा हुआ मटका हैं । वो ऐसा मटका हैं , जिसे खुद इंद्रादि देवगण तथा त्रिदेव तक फोड़ नहीं सके । यानी वो कितने ऊपरी स्तर का अज्ञान लेकर पैदा हुआ होगा , इसे सोचिए ।
ऐसे प्रचंड अज्ञानी मटके को फोड़ने के लिए , खुद आदिपराशक्ति को जन्म लेना पड़ा । श्रीललिता देवी ने जिस जगह से जन्म लिया उसे चिदग्निकुण्ड कहते हैं ।
सभी देवी देवता हिमालय की गोदी में इकठ्ठे हुए और एक महानतम तप किया । वहा एक बड़ी यज्ञ की अग्नि जलाई । उसी अग्नि से श्रीललिता का प्रागट्य हुआ । जब प्रागट्य हो रहा था , तब वो सामन्य अग्नि ने अग्नि के उच्चतम स्तर का रूप लिया था । क्योंकि सामन्य अग्नि इतनी बड़ी शक्ति को प्रगट करने के लिए सक्षम नहीं हैं । अग्नि में काफी सारे प्रकार हैं । हर एक कार्य के लिए अलग अलग अग्नि का आवाहन किया जाता हैं और पाताल स्वर्गलोक तथा अन्य सारे लोकलोकांतर के अनुसार उस उस शक्तियों को आवाहित करने हेतू अग्नि बुलाए जाते हैं ।
उसी अग्नि को चिदग्निकुण्ड संबोधित किया गया हैं ।
चिद क्या हैं ? अज्ञान रूप मटके को फोड़ने वाला पराज्ञान ( श्रीललिता ) ।
एक तरह से आप पूरी गहराई से देखेंगे तो भण्डासुर नामक असुर को ब्रम्हा विष्णु शिव आदि देवता तक परास्त नहीं कर सके ।
मतलब भंडासुर नामक अज्ञान को त्रिदेव भी अपने ज्ञान से परास्त नहीं कर सके । उनकी ज्ञानशक्ति भी कमजोर पड़ गई । अर्थात यह अज्ञान कितने बड़े स्तर होगा ? यही सबसे बड़ा रिसर्च का विषय है । वो अज्ञान जिसे त्रिदेव तक तोड़ न सके ।
और उसे तोड़ने के लिए श्रीललिता को जन्म धारण करना पड़ा ।
यह ज्ञान अज्ञान की लड़ाई हैं ।
इसलिए हम साधको को कहते हैं , श्रीविद्या साधना में आने से पूर्व प्राथमिक ज्ञान ग्रहण करो । यहां पर लाखों लोग भोग-मोक्ष के नामपर गलत श्रीविद्या के चक्करों में लाखों रुपए बर्बाद कर चुके हैं ।
जिस प्रकार एक पेड़ बिना जड़ के खड़ा नहीं रह सकता उसका जीवन व्यर्थ होने लगता है उसी तरह संसार में बिना ज्ञान के जीवन जीना अभिश्राप है । अगर श्रीविद्या साधक को भोग और मोक्ष किस प्रकार से प्राप्त होता हैं उसीका वास्तविक अर्थ ही नहीं बताया गया तो वह जीवन भी श्रापित ही रहता हैं ।
क्रमशः
© धन्यवाद
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