श्रीललिता सहस्रनाम Part : 5 ( देवकार्य समुद्यता )

?श्रीललिता सहस्रनाम ?Part 5
     ” देवकार्य समुद्यता “


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आज हम पांचवे पार्ट में श्रीललिता सहस्रनाम में  ” देवकार्य समुद्यता ”  इस शब्द की संज्ञा को समझने की कोशिश करेंगे ।

देवकार्य समुद्यता ” …. इस शब्द की व्याख्या आपको समझने के लिए हमारा पिछला पार्ट पढ़ना होगा । क्योंकि , ललिता परमेश्वरी का एक एक चरित्र का हिस्सा एक एक करके शब्दो में अधिग्रहीत किया हैं।

आपने देवी भागवत , दुर्गा सप्तशती असे ग्रंथ पढ़े होंगे । सबमें इंद्रादि देवताए असुरों से प्रताड़ित होने पर आदिशक्ति को पुकार लगाते हैं।  देवी भी प्रार्थना सुनकर देवताओं के कार्य हेतु प्रगट होती हैं।

देवी के इसी गुण को लेकर  ” देवकार्य समुद्यता ” प्रयोजित किया हैं । 
वो हमेशा उनके कार्यो के लिए आगे रहती हैं। 

हमे ज्यादातर पुराणों और कथाओं में देवी देवता और असुर को युद्ध पढ़ने को मिलता हैं ।
आज ये देवी प्रगट हुई , उसके इतने हाथ थे , इतने अस्त्र शस्त्र थे , फलाना फलाना आयुध उसने मार फेका , अलग अलग शंख घँटे के नाद बजाए ।
ऐसे ही फलाना फलाना असुर प्रगट हुआ , उसके पास फलाना विद्याए थी , उसने प्रजा को फलाना प्रकार से पीड़ा दी ।
आदि कथाएं हम सुनते हैं ।
ज्यादातर लोग सिर्फ कथाओं को सुनकर उसमें ही आनंद मानते हैं ।

आध्यात्मिक जगत में हर व्यक्ति का ” स्थूल शरीर – सूक्ष्म शरीर – कारण शरीर – महाकारण शरीर ” होता हैं । एक एक शरीर में भी सेकड़ो पेटा पार्ट्स होते हैं , जो सोच के बाहर का काम हैं ।
में यहां आपको इतना सब गहराई तक क्यों बता रहा हूँ , क्योंकि असुर , राक्षस , दानव ई में कई सारे स्तर होते हैं और जातियां समाज होते हैं । हर एक कि बुद्धि – क्षमता – ताकद और युद्ध कौशल्य तथा तपोबल भी अलग अलग होता हैं ।

उसीके बलबूते पर ये सारे असुर दानव राक्षस आदि युद्ध करते हैं। सभी राक्षस सीधे उठकर कैलास जितने नहीं जाते अथवा विष्णु भगवान को जीतने नहीं जाते ।

तीनो देवता कारण शरीर में आते हैं । इंद्रादि देवताए सभी सूक्ष्म शरीर तक ही उनकी हद हैं । कोई असुर इंद्र को जीतता है तो जरूरी नहीं है वो त्रिदेवों को भी जीत ले ।

स्थूल से लेकर महाकारण जगत तक महाप्रचंड ज्ञान हैं ।

भण्डासुर को तो तीनों देवताए मिलकर भी परास्त नहीं कर सके । अर्थात उसकी क्षमता उससे अधिक थी । इसलिए दसमहाविद्या देवीयों में से एक श्रीललिता परमेश्वरी को प्रगट होना पड़ा ।

इस लेख का आप विषय समझकर लीजिए , अन्यथा साधक भावनाओ में बहकर ज्ञान के मुख्य विषय को छोड़ देता हैं ।

ये सभी असुर अनेको प्रकार के शक्तियों से समृद्ध है।
अज्ञानता भी एक बहुत बड़ी शक्ति ही होती हैं । और अज्ञानता का अर्थ सिर्फ ज्ञान की कमी नहीं होती , अलग अलग प्रकार की बीमारी निर्माण होना , शरीर का फलाना हिस्सा क्षतिग्रस्त होना , लकवा मारना , शरीर के एक हिस्से में जंतु निर्माण होना ये सबकुछ भी अज्ञानता का एक भाग हैं । ये बीमारी निर्माण करने वाले जंतु ही असुर रुप ही हैं ।

अगर लिखा जाए तो बहुत लंबा विस्तार हो जाएगा ।

” देवकार्य समुद्यता ” ….. इस शब्द को समझने के लिए आपको ये सब विस्तार समझना होगा ।

श्रीविद्या साधना यह सबकुछ सिखाती हैं । इसलिए श्रीविद्या साधना को कभी गलत तरीके से हजारों की भीड़ में नहीं लेनी चाहिए । अवधूत दत्तात्रेय जी ने भी नही ली थी और आदिशंकराचार्य जी ने भी नहीं ली थी । दोनों ने भी श्रीविद्या का बाह्यपूजन से ही अर्चना की ।

क्रमशः
© धन्यवाद ।

SriVidya Pitham , Contact : 09860395985 

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