श्रीललिता सहस्रनाम Part : 2 ( श्रीमहाराज्ञी )

?श्रीललिता सहस्रनाम ?Part 2
    Word : श्रीमहाराज्ञी


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श्रीललिता सहस्रनाम में दूसरा शब्द श्रीमहाराज्ञी हैं ।
देवी को अति उच्चकोटि के शब्द रूप पदों से नवाजा गया है ।
पूर्ण श्रीललिता सहस्रनाम यह एक कोड भाषा से बना हुआ है । ऐसा समझलो की इतने बड़े इजिप्शियन पिरॅमिड के अंदर हजारो सुरंगों और अनगिनत कब्रो के बीच खजाने का रास्ता ढूंढने जैसा ।

अक्सर आपको दिखाई देंगा की काफी लोग श्रीविद्या दीक्षा ग्रहण किए हुए साधक मिलेंगे । परंतु दो चार साल चले जाने के बाद इनमें से कई सारे साधको को धीरे धीरे उन्होंने गलत श्रीविद्या धारण की हैं , उसका ज्ञान हो जाता हैं ।
गुरूपादुका मंत्र बिना श्रीविद्या दीक्षा होती नहीं ।

श्रीविद्या में विद्या शब्द का अर्थ ही हैं , शिक्षा ग्रहण करना ।
मूल विषय को अनदेखा करके काफी साधक पंचदशी मंत्र का जाप करने में मशगूल हो जाते हैं । कोई गुरूपादुका मंत्र का ज्ञान नहीं और श्रीदत्तात्रेय जी के नामपर सिर्फ गलत दीक्षा को धारण करना ।

श्रीमहाराज्ञी इसी शब्द को ही आप गहराई से देखेंगे तो इसी शब्द में श्रीविद्या के षोडशी मंत्र के तीन बीजाक्षर छुपे हुए हैं ।
श्रीविद्या साधना में षोडशी विद्याको समझने से पूर्व श्रीविद्या साधना क्रम समझना जरूरी हैं ।
जैसे कि अगर हम श्रीदत्तात्रेय श्रीपरशुरामजी की श्रीविद्या परंपरा में प्रथम श्रीमहागनपति साधना दीक्षा ग्रहण करना जरूरी हैं । फिर द्वितीय श्रीराजमातंगी , तीसरी श्रीमहावाराही , चौथी श्रीबाला परमेश्वरी , पाँचवी श्री पंचदशी दीक्षा और छठवीं षोडशी मंत्र आता हैं । श्रीललिता सहस्रनाम में भी आपको यही क्रम अनुग्रहित दिखेगा।

जब श्रीविद्या साधना में पंचदशी के पंद्रह कलाओं का आविष्कार होता हैं तब सोलवी कला गुरु प्रदान करता है । यह एक गुप्त क्रिया है।  उसका भी एक नियम है कि षोडशी श्रीविद्या दीक्षा से पूर्व गुरु के साथ कमसे कम एक साल तक रहने का नियम हैं । वो क्यों ? क्योंकि वही तो गुप्त रखा जाता हैं ।

अब यह राज्ञी क्या हैं ?
र शब्द मनीपुर चक्र से संबधित हैं , जहा कहा जाता हैं कि आत्मा का प्रकाश वहां पर स्थित हैं । हृद्यचक्र के अंतरिक्ष में जो आकाशवाणीया गूंजती हैं उसको सुनने के लिए साधक को अपने आत्मा का प्रकाश मणिपुर चक्र से पाना आवश्यक हैं ।

र + आ = रा …. शब्द निर्माण होता हैं ।
र शब्द को अगर एक तरफ कर दिया तो आज्ञा अर्थात ” आज्ञी ” शब्द बनता हैं ।

यह आज्ञा चक्र से संबधित हैं ।
और
ज्ञी = ज्ञ + ई

ई शब्द सहस्रार चक्र से संबधित हैं ।

तो देवी श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी के शरीर के तीन हिस्से हैं । एक – कमर से पैर तक , दूसरा – कमर से हृदय तक , तीसरा – हृदय से सहस्रार तक मतलब मुकुट तक ।

ये तीन हिस्से पंचदशी दीक्षा के तीन कूट हैं ।

राज्ञी यह शब्द देवी की असीम पद को प्रतिष्ठित करता हैं ।

© क्रमशः
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