ll श्रीविद्या अंतर्गत श्रीतिरस्करणी देवी ll
नमस्ते मित्रो ,
*श्रीविद्या पीठम , ठाणे* में आप सभीका स्वागत हैं।
आश्विन नवरात्री के इस अवसर पर *श्रीललिता पंचमी दिन की हार्दिक शुभकामनाएं ।*
*श्रीललिता पंचमी अर्थात श्रीललिता परमेश्वरी का प्रागट्य आजके दिन हुआ ।* देवी ललिता ने भंडासुर वध के लिए , अवतार धारण किया ।
आज इसी अवसर पर हम देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी के मणिद्वीप की एक देवी की पहचान हम करवाते हैं।
कभी आपने श्री *तिरस्करी* अथवा *तिरस्करणी* देवी का नाम सुना है?
*तां दर्शयन्ती निजरम्ययोनिं
विहोमयन्ति पशुवर्गकांश्च ।
तिरस्करी चारुमुखी मनोज्ञा
नैऋत्य संस्था मनसा स्मरामी ।।*
श्रीविद्या में श्रीयंत्र के अभ्यास तथा श्रीयंत्र रूपी देवी का राजमहल के अनेक विभाग है और उन विभागों कई सारी देवी देवता हैं।
उनिमे से एक तिरस्करणी देवी।
आपने ललिता सहस्रनाम में ” वाराही वीर्यं नंदिनी ” , ” दंडनाथा पुरस्कृता ” यह शब्द सुने होंगे ।
श्रीललिता की दण्डिनी अर्थात सेनापती वाराही माता है , इसीलिए दत्तात्रेय परंपरा की श्रीविद्या में वाराही साधना बिना श्रीविद्या पूर्ण नहीं होती ।
श्रीवाराही अर्थात कोलमुखी देवी को मदत करने वाली उसकी अपनी खुदकी शक्तिया है। उसकी खुदकी चक्रेश्वरियाँ है ।
उसीमे श्रीवाराही देवी को मदत करने वाली उपदेवीयो में से एक श्री तिरस्करणी देवी हैं।
कभी भी मित्रो , श्रीविद्या साधना गुरु से रूबरू होकर सिखों , श्रीयंत्र का हर एक अंग हर एक शक्ति का वैज्ञानिक पहचान होनी चाहिए । वही बियोंड सायन्स है।
कभी आपने सोचा है?
तिरस्करणी देवी का कार्य क्या है?
यह देवी कृष्णमुख वाली अर्थात नीले वर्ण की है।
लाल वर्ण की तीन आखोवाली , कृष्णवर्ण वस्त्र परिधान करने वाली है। उसका घोड़ा भी नीला ही है। उसी घोड़े पर आरूढ़ होकर अपने ऊपरी दोनों हातो में गदा , खड्ग लेकर तथा नीचे दो हातो में मधु से भरा घड़ा लेकर , अपने रम्य योनि का प्रदर्शन करती हुई , पशुभाव के प्राणियों को मोहित करते हुए …… श्रीयंत्र के नैऋत्य कोन में विराजती हैं।
श्रीयंत्र को समझने के लिए पहले मित्रों , 6 आम्नाय अर्थात शिव के 6 मुख समझमे आने चाहिए। क्योंकि यही श्रीयंत्र की 6 मुख्य दिशाए है और बाकी 4 उपदिशाएं हैं।
संपूर्ण श्रीयंत्र _घोर अघोर घोरातीघोर महाविद्याओं_ से भरा वेष्टित हैं।
श्रीविद्या में गुरु ये सभी कुछ सिखाता है।
तिरस्करणी देवी को ” *श्यामाननाब्जाम* ” कहते हैं।
अब्ज कहते हैं कमल को , आननाब्ज़ अर्थात देवी का मुखकमल श्याम वर्णवाला हैं।
” *नीलहयादिरूढां* ” …. हय कहते हैं घोड़े को , तिरस्करणी देवी का घोड़ा नील वर्ण का है।
नीलवर्ण ही क्यों? तिरस्करणी का वर्ण नीला ही क्यों?
*श्रीललिता सहस्रनाम में रुद्रग्रन्थि विभेदीना शब्द आता हैं। यह रुद्र ग्रंथी आज्ञा चक्र पर होती है और वह का रंग ही नील श्याम व्हायोलेट हैं। रुद्र ग्रंथि की देवता वाराही है।*
*वाराही देवी अपने किरिचक्र पर बैठी हुई रहती हैं। जिसको 7 पैये है।* किरिचक्र रूपी रथ पर तिरस्करणी देवी भी साथ देती हैं। यह रंग एक प्रकार से ज्ञान का और अद्भुत तेज प्रकाश का द्योतक भी है।
_देवी तिरस्करणी अपने नीले घोड़े पर विराजमान होकर युद्ध करने के लिए निकलती हैं , तो उसके जातो में मधु से भरा घड़ा होता हैं। मधु यानी मदिरा जैसे एक द्रव्य , वो मधु पिलाती हुई अज्ञानी जीवो को मोहित करती हैं।_
आज्ञा चक्र पर मित्रो ज्ञान प्रगट होता है , जीव की आज्ञा यही से खुलती है। यह देवी यही आज्ञा चक्र पर वराही का साथ देकर लोगो को मोहित करती हैं।
मधु अर्थात लोग शराब में कैसे डूबे रहते हैं?
मेडिटेशन में कैसे डीप ट्रांस में जाते हैं ?
अगर किसी श्रीविद्या साधक को उसके गुरु पंरपरा का आम्नाय पूछो तो कैसे अपने आपको छुपाते है ?
यही तो अज्ञान अविद्या है।
यही मधु का अर्थ *इल्युजिन* हैं।
इल्युजिन अर्थात *आभासी दृश्य , लोग मेडीटेशन में कल्पना जगत में यह दृश्य देखते हैं।* बाद में कल्पना वास्तविक जगत में उतरती नहीं तब वही ध्यान स्ट्रेस में बदल जाता हैं। क्योंकि लोग अपने गुरु से रूबरू नही होते ।
तिरस्करणी देवी आभासी जगत निर्माण करती हैं , अज्ञानी विषय निर्माण करके फ़साती है । जैसे आजकल लोग श्रीविद्या साधना को हजारो की भीड़ में लेते हैं।
जब आपका आज्ञा चक्र में विवेक जागता है तब तिरस्करणी देवी का दिव्य दर्शन होता हैं और वो आभासी जगत समेट कर लेती हैं।
तिरस्करणी देवी अज्ञान दूर करने के लिए गुरु के पास रहने का आदेश देती हैं। यह गुरुमुखी है ।
श्रीयंत्र पर इसका स्थान *नैऋत्य* कोन में है।
वास्तु के अनुसार *नैऋत्य* कोन गृहस्वामी का स्थान है , जहा पर पतिपत्नी निद्रा लेते हैं। नैऋत्य कोन गृहस्वामी के लिए समस्त सुख संपदा तथा भोग वासना निर्विघ्न देने वाला होता हैं , इसलिए _तिरस्करणी देवी की साधना सांसारिक व्यक्ति की भौतिक सुख सुविधा उपलब्ध करने के लिए मदत करती हैं_ ।
*श्री तिरस्करणी देवी श्रीविद्या के अंतर्गत श्रीवाराही ही सहचारिणी हैं । और एक गुप्त बात की तिरस्करणी देवी धन्वंतरी देवी और अश्विन देवो को मदत करती हैं , जड़ीबूटी विज्ञान , रस शास्त्र इसके अंडर आता हैं ।* अधिक बता नहीं सकता , किसी और लेख में समझेंगे ।
मित्रों , श्रीविद्या अफाट अद्भुत अदम्य ज्ञान का विस्तार है। घर में श्रीयंत्र रखने से पंचदशी के जाप से ज्ञान ऊपर से नही टपकता । गुरु कृपा , गुरु की संगत चाहिए ।
अन्यथा बहुत लोग श्रीविद्या जैसी महाविद्या में आकर लोग फंसते है।
© धन्यवाद ।
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