◆ श्रीविद्या अंतर्गत सूक्ष्मभूत अवस्था का ज्ञान ◆
भाग : २
पिछले भाग से आगे …….
सृष्टि ही इतनी बड़ी है , इतने लोक लोकांतर है । फिर उनमें भी विविधता और वेसे वेसे योनियों में रहने वाले भूत पिशाच प्रेत , किन्नर योगिनी डाकिनिया , देवी देवता ई अनेको प्रकार अलग अलग स्वरूप से बनी हुई है । जिनमे सूक्ष्म भूतों का आविर्भाव होता है ।
साधना से सूक्ष्म भूत से संपर्क होता है तब देवी देवता ओ की निर्मिती भी समझ आती हैं । यह ज्ञान अपने आप अंदर पहुँचा दिया जाता हैं ।
भूतजय के प्रसंग में ‘सूक्ष्मभूत’ का उल्लेख योगसूत्र (3/44) में मिलता है।
यह ‘सूक्ष्म’ तन्मात्र है। ‘भूतसूक्ष्म’ शब्द का प्रयोग भी योगशास्त्र में मिलता है। यहाँ भूतभूक्ष्म का अर्थ है – परमाणु।
सूक्ष्म भूत और पंचतन्मात्रा ओर सूक्ष्म जगत के परमाणु ये सभी एक ही है , पर इसको आगे समझते हैं ।
व्यासभाष्य में परमाणु को अर्थ में ” भूतसूक्ष्म ” शब्द प्रयुक्त हुआ है ।
पार्थिव, आप्य (= जलीय), तेजस, वायवीय एवं आकाशीय भेद से परमाणु पाँच प्रकार के हैं।
पँचमहाभूतो के सूक्ष्म रूप को समझने से पहले पंचतन्मात्र अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध तन्मात्र; ये अलग अलग सूक्ष्मभूत हैं , इसका ध्यान रखिए ।
श्रीविद्या के आध्यात्मिक जगत में सूक्ष्म जगत की यात्रा में जब सृष्टिचक्र को भेदना होता है , उसमे सूक्ष्म परमाणु कैसे काम करते हैं , इसको आगे समझे ।
गन्धतन्मात्र प्रधान पाँच तन्मात्रों से पार्थिव परमाणु की उत्पत्ति होती है।
इसी प्रकार गन्धतन्मात्रहीन ओर रसतन्मात्रप्रधान चतुर्विध तन्मात्रों से जलीय यानी जल रूप परमाणु , गन्धरसहीन रूपतन्मात्र प्रधान त्रिविध तन्मात्रों से तेजस तत्व का परमाणु , गन्ध-रस-रूप-तन्मात्रहीन स्पर्शप्रधान त्रिविध तन्मात्रों से वायवीय परमाणु एवं शब्दतन्मात्र से आकाशीय परमाणु उत्पन्न होते हैं।
धन्यवाद ।
क्रमशः……