◆ श्रीविद्या साधना अंतर्गत श्रीगणेशी ( विनायकी ) देवी ◆
मेरे शरीरधारी गुरु तथा मेरे पराजगत के गुरु श्रीमहावतार बाबाजी को प्रणाम , करके उनकी प्रेरणा से ये महत्वपूर्ण ज्ञान आपतक पहुचा रहा हूँ ।
श्रीविद्या साधना में वांछा कल्पलता नाम से एक उच्चतम साधना है । जिसमे श्रीगणेश जी के स्त्री रूप साधना है । जो स्त्री शक्ति गणेश्वरी है । विघ्नों को दूर करने वाली देवी है ।
श्रीगणेशी को विघ्नेश्वरी , गजननी , गजमुखी भी कहते हैं। तामील लोग इस देवी की सदियों से पूजन करते आ रहे हैं। तिब्बत में व्याघ्रपाद गणपति के नाम से इसे जाना जाता है। बुद्धिस्ट में भी स्त्री रूप गणेशी का पूजन होता है।
विनायकी देवी गज मुखी देवी हैं । भगवान गणेश की तरह ये विघ्न हरतीं हैं। गज मुख के नीचे एक स्त्री का शरीर धारण किए ये देवी भगवान गणेश का स्त्री स्वरूप हैं। अग्नि पुराण वो पहला पुराण है जो इन गणेश की शक्ति का वर्णन करता है। लिंग पुराण में भी विनायकी शक्ति का वर्णन है।
विनायकी का उल्लेख मत्स्य पुराण में विनायक या गणेश की शक्ति के रूप में है।
विनायकी देवी की मत्रिकाओ में से एक हैं जो गणेश की शक्ति से अधिक शिव की शक्ति की द्योतक हैं। सप्त मातृका ओ के बाद अष्टम मातृका विनायकी लगती है ।
विनायकी को भगवान शिव ने राक्षस अंधक का वध करने हेतु बनाया था।
महापुरान और उपपुरान में भगवान गणेश के विवाह की कहानियाँ वर्णित है। कुछ शास्त्र गणेश भगवान को भगवान हनुमान की तरह एक ब्रह्मचारी के रूप में बताते हैं। किंतु पुरानो के अनुसार भगवान गणेश का विवाह रिद्धि, सिद्धि और बुद्धि से हुआ था। रिद्धि समृद्धि की देवी हैं, सिद्धि अध्यात्म शक्ति की और बुद्धि विवेक की देवी हैं। ये भगवान गणेश के साथ विराजमान रहती हैं। ” विनायकी ” असल में इन सभी शक्तियों का विस्तार हैं।
ऐसी मान्यता है कि देवी सरस्वती और लक्ष्मी का भी विवाह भगवान गणेश से हुआ था। लक्ष्मी और गणेश की पूज साथ होती है , एक भगवान धन ऐश्वर्या प्रदान करता है और दूसरा विघ्न हारता है। लक्ष्मी का ही स्वरूप रिद्धि और सिद्धि हैं।
स्कन्द पुराण में लक्ष्मी को श्राप मिला था की उनका गज मुख हो जाएगा और वो भगवान ब्रह्मा की तपस्या करने से ठीक होगा। स्कन्द पुराण में विनायकी के बारे में नहीं दिया है। पर श्रापित लक्ष्मी को विनायकी समझा जा सकता है।
गोरक्षसंहिता में विनायकी को गजमुखी, तीन नेत्रो वाली और चार भुजा वाली देवी बताया है। उनके एक हाथ में पारश है और दूसरे में मोदक भरी थाली।
शिल्परतन जो १६ सदी का शास्त्र है में गजमुखी देवी जो विंध्या पर्वत में रहती है ऐसा दिया है। देवी के २ दाँत हैं और शरीर एक स्त्री का है। उनका रंग लाल है और दस भुजा है। उनका पेट मटकी के समान है, उनके बड़े स्तन और सुंदर नितम्ब हैं।
विनायकी की एक मूर्ति चित्रपूर मठ में शिरकि में हैं। इस मूर्ति के बड़े स्तन है पर कमर पतली है, गणेश की तरह मटके जैसा पेट नहीं इनका। उनके हाथ अभय मुद्रा में है और कुछ हाथो से वो वर दे रही है। उन्होंने तलवार और अंकुश धारण किया हुआ है। उनकी सूँड़ बायीं ओर मुड़ी है।
ऐसे हे बिहार के गिरएक शहर में भी विनायकी की मूर्ति है जिनके ४ हाथ है और वो उन्मे गदा गाय और पारश धारण किए हैं। प्रतिहार कुल की एक मूर्ति में उनका मटकी के समान पेट है, ४ बूझा हैं जिनमे वो गदा, पारश, क़मल और एक थाली में मोदक लिए है।
बौध धर्म में विनायकी को गणपतिहरिदया कहा है। अर्यमंजुस्रिमुलकल्प एक बुद्ध धर्म का शास्त्र है जिसमें विनायकी का विवरण है।
श्रीविद्या साधना क्रम में जो छह आम्नाय है अर्थात शिव के छह मुख उनमें से एक जो है , विनायकी को शिव के एक मुख्य ” ईशान ” भगवान की पुत्री बताया है।
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श्रीविद्या साधना में श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी का एक स्त्री गणेश रूप है , उसे ” श्रीगणेशी त्रिपुरसुंदरी ” भी कहते हैं।
चित्र में आप देखेंगे तो , श्रीविद्या साधना की शुरुवात पहले श्रीललिता के गणपति ” क्षीप्रा ” से होती हैं। इसका पूजन महागणपति रूप में करते हैं । उनकी दस भुजाए है । जैसे कोई भी विधान गणपति के बिना अधूरा है , वेसे ही श्रीविद्या साधना अंतर्गत श्रीमहागणपति को आवाहन करना पड़ता है ।
श्रीमहागणपति का कमर तक का भाग ओर श्रीललिता का कमर से पैर तक भाग ….. इन दोनों के संमिश्रण से इस तत्व का उद्भव हुआ है ।
श्रीविद्या में इसे वांछा कल्पलता विद्या कहते है ।
” श्रीगणेशी त्रिपुरसुंदरी ” के हात में अनार का फल है , अनार के अंदर जो दाने है , वो एक-एक दाना एक-एक ब्रम्हांड का प्रतीक है …… ऐसे सभी ब्रम्हांडों को अपने हातो में रखा है । अनार इसीका प्रतीक है । इससे देवी के शक्ति का प्रभाव दिखता है।
” श्रीगणेशी त्रिपुरसुंदरी ” को तीन नेत्र भी है , जो तीन तत्वों पर विजय प्राप्त का प्रतीक है।
मुख्यतः इसमें गणेशी के सूंड में कलश है , यह अमृतकलश है । विश्व ब्रम्हांड रुपी अमरत्व का पान कराने वाली महाशक्ति का रूप कह सकते है ।
” श्रीगणेशी त्रिपुरसुंदरी ” यह श्रीललिता कि एक अंदर छुपी हुई शक्ति है । इसे वांछा कल्पलता कहते है , क्योंकि जो साधक जिसकी मनोकामना करता है उसकी इच्छापूर्ति करना तथा …….
” कल्पलता ” का मतलब किसी व्यक्ति अथवा उसके कुल की शक्ति निर्जीव हो चुकी है , उसको पुनः अंकुरित करना । यह श्रीललिता कि महासंजीवनी विद्या है । इसी महासंजीवनी विद्या के कारण , श्रीललिता का श्रीयंत्र रूपी चक्र में अवस्थित अरबों अरबों छोटी से छोटी ओर बड़ी से बड़ी सभी अनुचरी शक्तियाँ प्रफुल्लित रहती हैं ।
अगर , श्रीविद्या साधना में ऐसा कोई प्रयोग है , जहाँ किसीका पुनर्निर्माण करना है । किसी साधक के कुल में प्रचण्ड संहार होकर कुल-पितर शक्ति पुर्णतः स्तब्ध हो चुकी हैं , तथा कोई पुरातन स्थान जहाँ दैवी शक्तियाँ थी और समय के साथ वो लुप्त हो चुकी हैं …… ऐसे स्थान पर अनेक शक्तियों का समुदाय मंडल रूप में होता हैं , उनको जगाने के कार्य यही ….. ” महासंजीवनी विद्या ” अर्थात ” श्रीगणेशी त्रिपुरसुंदरी ” करती हैं ।
श्रीविद्या साधको को ….. इस लेख के पश्चात यही कहना है कि ….. श्रीविद्या साधना के अंतर्गत अनेक विषयों के अभ्यास करें । अपने गुरु से उसकी जानकारी ले । किसी किसी संस्था में दस-दस साल से श्रीविद्या साधक है पर उनको श्रीविद्या का गणपति तक पता नहीं होता ।
भगवान परशुराम ने श्रीविद्या साधना दत्तात्रेय से सीखी , परन्तु …. श्रीदत्तात्रेय ने शिष्यो की फौज नही तयार की ओर न हजारों को श्रीविद्या दी ….. उनोन्हे परशुराम जी को अपने पास रखकर , कई सालों के संस्कार और ज्ञान के बाद श्रीविद्या साधना रूपी पंचदशी का अमृतपान करवाया ।
श्रीविद्या में गुरु का चयन ही महत्वपूर्ण भूमिका है ।
यही गलती अनेक साधको के ऊपर भारी पड़ती है ।
धन्यवाद ।
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