श्रीविद्या श्रीधुमावती देवी अभ्यास
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नमस्तेस्तु मित्रों , श्रीविद्या पीठम में आपका स्वागत हैं ।
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आज श्रीधुमावती माता के विषय पर कुछ महत्वपूर्ण विषय जानने की कोशिश करते हैं । धूमावती विषय पर काफी जानकारी काफी जगह मिलेगी पर , मूल मुद्दे की बाते ज्यादा पढ़ने को नहीं मिलेंगी ।
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श्रीधुमावती के गणेश :
सर्वप्रथम यह समझना जरूरी हैं कि , हर महाविद्या का एक गणेश होता हैं । जैसे श्रीविद्या में महागणेश , वल्लभ गणेश , क्षिप्रा गणेश आदि गणेश रूपो का पूजन श्रीविद्या के अलग अलग शिव आम्नायों के अनुसार होता हैं । ये कोई शॉर्टकट ज्ञान विषय नहीं हैं । गुरु के साथ रूबरू बातचीत चाहिए ।
दसमहाविद्या संपुर्ण गुरुगामी हैं , अर्थात गुरु से उसका तत्व विषयक बात समझकर लेनी चाहिए ।
उसी तरह श्रीधूमावती माता के गणेश जी का नाम श्रीधूम्रवर्ण गणेश हैं । अगर श्रीधुमावती देवी की साधना किसीको करनी है तो प्रथम उनके गणेश की साधना जरूरी हैं ।
पराज्ञान अर्थात बियोंड सायन्स की ओर बढ़ने से पूर्व प्राथमिक ज्ञान जरूरी हैं । जैसे कि आप देखिए समाज में कुछ लोग ऐसे मिलेंगे की उनको लगता हैं कि उनका कुण्डलिनी जागरन हुआ है , अगर उन्हें आप लाइट की तार को हात लगाकर इलेक्ट्रिसिटी शरीर में सोखने को कहोगे , तो ये लोग हड़बड़ा जाएंगे और डर के मारे भाग जाएंगे । कैसे इतनी बड़ी इलेक्ट्रिसिटी को हात लगाए ? मर नहीं जाओगे ? ऐसे सवाल पूछेगे । मित्रों , सबसे पहले तो कुण्डलिनी शक्ति जगना मतलब मेंढक की तरह कूदना , चिल्लना और चेहरे पर ग्लो आना यही नहीं है ; ये तो भ्रम का पहिला पड़ाव होता हैं । यही धूमावती के गणेश कार्य करते हैं , अर्थात धुँवा धुँवा जो है उसके पीछे असली सत्यता नहीं समझ आती ।
कुंडलिनी शक्ति जिसकी जग गई हैं , वो अपनी प्राण शरीर की तरंगों द्वारा उस इलेक्ट्रिसिटी को खींच कर मूलाधार चक्र में सोख सकता हैं , सब कुछ विकसित करना होता हैं । और यह ऊर्जा भी कोई स्थूल शरीर में नहीं जमा होती ।
इसी तरह का हैं , परा ज्ञान – विज्ञान जिसको समझने के लिए बेसिक ज्ञान समझ की आवश्यकता हैं । और पराविज्ञान की देवी धूमावति हैं तो उसे समझने के जो प्राथमिक समझ ज्ञान चाहिए उसके देवता श्रीधूम्रवर्ण गणेश हैं ।
यह सारी बुद्धिमत्ता आपको परमाणु ऊर्जा की तरह सूक्ष्मतम सोचने से मिलेगी । परमाणु को समझने के लिए परमाणु की तरह ही सूक्ष्म बनो ।
श्रीधुमावती का कार्य :
अगर आप कुण्डलिनी का श्रीविद्या मार्ग द्वारा अभ्यास करेंगे तो धूमावती देवी अध:सहस्रार चक्र पर विराजमान रहती हैं । जैसे सहस्रार चक्र है वैसे ही उतनी ताकद का अधो सहस्रार चक्र अधो भाग में हैं । यह चक्र सप्त नरकों का या फिर अधो भाग के सप्त चक्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं । यह संपुर्ण महाश्मशान हैं । यहाँ सब अघोर महाघोर हैं ।
यह संपूर्ण अधो विश्व का ज्ञान का उत्सर्जन करती हैं और उनके विषय पर मार्गदर्शन भी करते हैं ।
जिस प्रकार से ऊपरी जगत के धन – कौशल्य , संपत्ती का नेतृत्व लक्ष्मी देवी करती है , उसी तरह अधो जगत में जो असुर राक्षस , अदैविय शक्तियां , पातालतन्त्र के देवी देवता इनके धन कौशल्य संपत्ती का प्रतिनिधित्व धूमावती देवी अलक्ष्मी के रुप में करती हैं।
श्रीधुमावती तत्व :
यह स्मोकी ग्रहो की प्रतिनिधित्व करती हैं । जैसे राहु केतु ग्रह ये स्मोकी ग्रह है । स्मोकी मतलब धुँवा धुँवा । बहुत घनघोर अंधेरा , सब जगह धुँवा होना , आगे का कुछ भी नहीं दिखाई देना । किसी भी विषय में अथवा आध्यात्मिक जगत में जब बड़ी बड़ी महाविद्याओं के चक्कर में व्यक्ति फस जाता हैं , चेटिका याक्षणी भैरवी आदियों के मायाजाल में फंसता हैं । तब धूमावती उसे मदत करती हैं । धूमावती यह किसी भी ज्ञान के ऊपर मायावी जाल बिछाया हुआ होता हैं , उसकी देवी हैं । ये हमेशा पवित्र ज्ञान की रक्षा भी करती हैं ।
श्रीधुमावती देवी और उनके पति :
इस देवी के विषय में जो कथा हैं , उसमें वह सती के रूप में अपने पति शिव जी को भुक लगने के कारण निगलती हैं , जिसके कारण वह विधवा स्वरूप मानी गई हैं ।
मैने जैसे पहले भी बोला है कि , कितने सारे लोग धूम धूम का जाप करते हैं पर धूमावती का स्थान के विषय पर आवश्यक इन्फॉर्मेशन जुटा नहीं पाते । इसलिए महाविद्याके नाम पर होने वाले हजारो लोगो के भीड़ के शिविर घातक होते हैं । जहां आपको मूल तत्व को देखने दृष्टि पर अभ्यास न करवाके भावनाओ के सागर में गोता खाने के लिए छोड़ा जाता हैं , और धूमावति श्रीविद्या ये विषय तो गुरु सानिध्य की जरूरत हैं ।
धूमावति अधो सहस्रार भाग की देवता हैं । मूलाधार से ऊपर तक के आठ महाविद्याओं के पति चैतन्य स्वरूप में है , बस महाकाली के पति मृत अवस्था में हैं परंतु दृश्यमान हैं , इसे अचेतनता कही जाती हैं । और धूमावती के पति , देवी के शरीर के अंदर विराजमान हैं , क्योंकि उसने उनको निगल ही दिया था ।
मतलब शिव स्वरुप का जो दिव्य चैतन्य ज्ञान ऊपरी जगत में प्रकाशमान हैं , जिससे आध्यात्मिक उन्नति ऊर्ध्व गामी होकर सहस्रार तक जाती हैं । उसी मार्ग के ज्ञान के मुलकेंन्द्र को ही धूमावति ने अपने पेट में छुपा दिया ।
क्यों ? क्योंकि , उसे भूक लग गई ।
भूक और स्वाधिष्ठान चक्र का घनिष्ट संबध हैं ।
शिव और ज्ञान का भी घनिष्ट संबध हैं , शक्ति माया है तो शिव परमज्ञान हैं ।
धूमावती घनघोर धुँवा हैं तो उसके पेट के अंदर विराजित शिव , घनघोर अंधेरा हैं । अर्थात शिव स्वरूप ज्ञान को धुंवे ने झाक दिया हैं ।
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स्वाधिष्ठान चक्र पर मनुष्य लोक विराजित है , जिसे पृथ्वी का पृष्ठभाग कहा जाता हैं , श्रीविद्या श्रीललिता का स्थान कह सकते हैं । यही पर रहकर अज्ञानी जीव मनुष्य कार्य करता हैं । धूमावति देवता शक्ति उसके घनघोर अज्ञानता को प्रगट करती हैं ।
लक्ष्मी दूसरी तीसरी कोई धन पैसे सोने की देवी नहीं , वह लक्ष्य को केंद्रित रखने वाली और कौशल्य को चालना देने वाली देवी हैं ।
वही उसकी बहन अलक्ष्मी उस साधक मनुष्य के कौशल्य को धुँवा स्वरूप ज्ञान को झाँकने वाली शक्ति हैं , वह अचेतनता की प्रतीक हैं ।
श्रीविद्या साधना में , लक्ष्मी देवी वाराही शक्ति स्वरूप है तो अलक्ष्मी धूमावती स्वरूप ।
एक आज्ञा चक्र पर हैं और एक अधो सहस्रार में ……..
श्रीधुमावती की अन्य शक्तियां :
नैऋती , ज्येष्ठा और अलक्ष्मी ये तीनो देवीया इनके साथ होती हैं । वास्तु शास्त्र में नैऋति दिशा को आप जानते ही होंगे ।
नैऋती देवी :
विश्व सृजन की निर्मिती में सृष्टि का खुदका एक कानून व्यवस्था होती हैं , उस नैतिक मूल्यों के कानून को ” रीति ” कहा गया हैं । रीति ही आगे बढ़कर ” धर्म ” बनती हैं । जब अधर्म बढ़ता हैं , अनैतिकता बढ़ती हैं तब यही रीति का उल्टा ” नैऋति ” बनती हैं ।
यही अधर्म स्वरूप धुँवा ही धूमावति के रूप में नैऋति हैं ।डिसऑर्डर, क्षय, दरिद्रता, दुर्दैव , मतभेद , गंभीर बीमारी ई सब इसके अंडर आता हैं ।
आग का प्याला :
मूल धूमावती का फोटो आप देखेंगे तो कव्वे के साथ देवी के हाथों में सुपली जैसा एक चीज हैं । दूसरे हाथों में आग का प्याला हैं ।
अग्नि में काफी सारे प्रकार होते हैं , जैसे पाताल – भूमि – आकाश में अलग अलग अग्नि के आवाहन किए जाते हैं । पाताल लोक में सप्त नरक हैं । काला जादू , आभचरिक प्रयोग , अघोरी देवताए इनके आवाहन के लिए अलग अलग पाताल के अग्नि यो को आवाहन किया जाता हैं । ये अग्नि अन्य अग्नियों में से बिल्कुल अलग हैं ।

गलत प्रकार से साधना करने वालो को दंड देने वाली यही शक्ति हैं । श्रीविद्या में भी गलत साधना दीक्षा लेने वाले साधको के ऊपर अज्ञानता की अंधेरा बनाने वाली यही शक्ति हैं । इसलिए प्रत्यक्ष गुरु का प्रकाश जरूरी हैं ।
© धन्यवाद ।
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मुझे श्री यन्त्र चाहिए इसको कहा से माँगना होगा