।। श्रीविद्या अंतर्गत 64 उपचार पद्धती निरूपण ।।
( श्रीललितायै पाद्यं पुजयामी )
ॐ
नमस्ते मित्रों , श्रीविद्या पीठम में आप सभी का स्वागत हैं।
श्रीविद्या साधना पद्धति में श्रीललिता का पूजन 64 प्रकार के पूजन पद्धति से होता हैं।
भले वो बहिर्याग हो अथवा अन्तर्याग ।
श्रीविद्या श्रीचक्र पर कमसे कम महीने में एक बार तो 64 उपचार से पूजन होना जरूरी हैं।
समयाचार पद्धति में भी श्रीमहामेरु की कल्पना शरीर पर करते हैं , तब उसमें सुधासागर में श्रीललिता का आवाहन कर 64 उपचार मानसिक होते हैं।
अगर यह उपचार इसमें नहीं किए गए तो वह श्रीविद्या साधना नहीं होती ।
64 उपचारों में पहले पाद्य पूजन आता हैं।
यह पवित्र पद्धति है साधक के भावनाओं को देवी के चरणों तक पहुचाने की ।
ऐं ह्रीं श्रीं ललितायै पाद्यम् समर्पयामि ।। ?
इस मंत्रो से देवी के पैर धोए जाते है ।
पैर दो होते हैं , इसमे भी एक शिव का प्रतीक है एक शक्ति का प्रतीक हैं।
श्रीविद्या के भी दो अंग माने गए हैं , एक सृष्टि क्रम और दूसरा संहार क्रम ।
उन्हें काली कुल की श्रीविद्या और श्रीकुल की श्रीविद्या कह सकते हैं।
उसी प्रकार उन्ही दो पैरों को एक बहिर्जगत और एक आन्तर्गत कहा जाता हैं।
एक अविद्या अर्थात अज्ञान है और एक विद्या अर्थात ज्ञान है।
एक शिवत्व का अद्वैत विस्तार है , तो दूसरा पैर शक्ति का मायात्व विस्तार है जिसे अद्वैतता भी भ्रामित होती हैं। अर्थात दोनों पैरों का महत्व है।
पाद्यं अर्थात पैर , उनको धो रहे है अर्थात पैरों के ऊपर की धूल मिट्टी दूर कर रहे हैं।
यानी दोनों पैर जो ऊपर कहे है , वह सब अज्ञान से ज्ञान की ओर , अविद्या से विद्या की ओर ले जाने वाले है।
देवी भागवत में कहा गया है , जब तीनो देवताओँ को आदिमाया ने अपने मणिद्वीप रूपी श्रीमहामेरु में बुलाया तब तीनो देवताओं को पहले कुछ समझा नहीं।
उनोने पहले देवी के पैरों के। नाखूनों के दर्शन किए ।
एक एक नाखून में करोड़ो ब्रम्हांडो में दर्शन उन्हें होने लगे , कुछ नाखूनों में उनके जैसे ही ब्रम्हा विष्णु महेश दिखे ।
तो सोचिए कितनी दिव्य होगा ।
तो पाद्यं समर्पयामि अर्थात देवी के पैरों में ही कितना दिव्यत्व हैं।
इसलिए ही श्रीविद्या साधना में सर्वप्रथम 64 उपचार दिए हैं। उसके बिना श्रीविद्या होती ही नहीं अथवा उसके बिना श्रीविद्या दीक्षा अधूरी है ।
राजराजेश्वरी तत्व होने के कारण उसका पूरा विधान ही राजपाट की तरह हैं । और राजशक्ति को उसी तरह से सन्मान देना चाहिए , अन्यथा शक्तियों का अपमान होता हैं ।
राजेश्वरी मातृशक्ति रूप में अलग है और सृष्टि स्थिति संहार रूप में ईश्वरीय प्रकाश रूप में अलग हैं । उसका साम्राज्य बहुत विस्तारित हैं ।
घर में सिर्फ श्रीयंत्र रखकर खाली कुंकुमार्चन करके कोई फायदा नहीं होता , जबतक आपको कुंकुमार्चन में ही 64 उपचार अन्यथा कमसे कम 36 उपचार तो आने ही चाहिए ।
पाद्यं यानी देवी ललिता के दोनों पैरों को धोना , श्रीविद्या साधना में पंचदशी मंत्र की दीक्षा दी जाती हैं , पन्ध्रह अक्षरों का यह मंत्र तीन भागों में बांटा गया है ।
1) पहले के 5 अक्षर वाग्भव कूट यानी उसे देवी का सर से हॄदय तक का भाग कहा जाता हैं , इस वाग्भव कूट को अग्नि क्षेत्र कहते हैं ।
2) पंचदशी मंत्र के बीच वाले 6 अक्षरों को कामराज कूट कहते हैं , यह अक्षर देवी के हृदय से कमर तक का भाग आता है । इसे सूर्य क्षेत्र भी कहते हैं ।
3) पंचदशी के अंतिम 3 मंत्र शक्ति कूट में आते है , यह देवी का कमर से पैरों तक का भाग है । इसे सोम यानी चंद्र क्षेत्र कहते हैं ।
यानी पंचदशी के अंतिम अक्षर ” स क ल ह्रीं ” हैं , यह देवी ललिता के कमर से पैर तक का भाग हैं ।
” स क ल ” यानी सकल अर्थात सबकुछ तुम हो , ऐसी भावना करके पैरों में नतमस्तक होना ।
यही पंचदशी मंत्रा के अंतिम कूट ,
शिव – शक्त्यात्मक प्रपंच हैं । यही सकल हैं ।
यहीं प्रपंच हमें दिखाई नहीं देता ।
जैसे आजके आध्यात्मिक जगत में सिर्फ बोलने के लिए कहते हैं , ” सबकुछ माया है , श्रीविद्या मोक्ष और भोग देंगी , श्रीविद्या से बिजनेस नोकरी दौड़ने लगेगी और मोक्ष भी मिलेंगा । ”
परंतु , मिलेंगा किस प्रकार से ? यह बताता नहीं कोई और कोई पूछने जाए तो , साधना करो मन मे उत्तर आकर मिलेंगा ।
बल्कि ऐसे साधक तो पाँच – दस साल से गुरु ने कहे अनुसार मन में ही उत्तर तलाश रहा है , उसमें समय गवाया – पैसा गवाया और गुरु के संस्था का नाम बढाने में खुदका पुण्य भी गवाया ।
पता ही नहीं होता लोगो को की श्रीविद्या मोक्ष और भोग कैसे देती हैं ?
असली हीरा दिखाई देता हैं , फिर भी वह लोग अनेदखे करते हैं ।
यही है , देवी के दोनों पैरों के प्रतीक बसे शिव शक्ति का प्रपंच ।
मृत्यु के बाद भी प्रपंच छूटता नहीं है ।
मृत्यु के बाद तो और लंबा प्रपंच करना पड़ता हैं , क्योंकि ना जाने आपको कितने सालो तक वासनामय कोष में अतृप्त भटकना हैं ।
उसकी पढ़ाई कब करोगे ?
देवी ललिता के पैर को नाम रूप प्रपंच वासना इनके प्रतीक के रूप में कहा है , जब हम उसे श्रीविद्या के परमज्ञान से धोते हैं , तब जीवत्मा के ऊपर का अज्ञान दूर हो जाता हैं । और परमशिव पराशक्ति के रूप में कामेश्वरी कामेश्वर हमे आशीर्वाद देते हैं ।
( यह शिव शक्ति और पराशिव पराशक्ति दोनों भेद है । )इसीलिए , श्रीविद्या साधना में महामेरू श्रीयंत्र पर पहला पूजन होता है ,
।। श्रीललितायै पाद्यं समर्पयामि ।।हे देवी हम तुम्हारे चरणों मे नतमस्तक होकर तुमारे चरणों की धूल दिव्य जल से साफ करेंगे । यह दिव्य जल ज्ञान रूपी अमृतसागर हैं , जिससे तुझमें और मुझमें जो नाम रूप प्रपंच वासना अहंकार का अज्ञान का मैल की छाया बीच में आ रही हैं , वह दूर हो जाए ।
मित्रों , यह विषय पहली बार हमारे श्रीविद्या पीठम से समझाया जा रहा है । अतिरिक्त ज्ञान के श्रीविद्या का मूलभूत ज्ञान का हमारे लेक्चर से श्रीविद्या विषय पर सामान्य ज्ञान बढ़ाए ।
© धन्यवाद
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Thank u Shri Gurudevji first time I understood the meaning of panchdashi mantra & different parts. I don’t have the words to express the gratitudes which u have bestowed upon the sri vidhya sadhaks. OM NAMH Shivaya.
You are really a practical Yogi I salute you.. I am happy to see a yogi on u tube who is distributing his knowledge without any discrimination.. Regards
Dr Anup Nath
नमस्ते जी , धन्यवाद जी
आपका ब्लॉग पढ़के बहोत ज्ञान प्राप्त हो रहा हैं आपके चरण कमल में मेरा प्रणाम स्वीकार करे
Today I understood I follow wrong path of kunku Marian
Thank you sir for this guidance
I read your Blog Really very Helpful to All shri Vidya sadhak Ty for sharing your precious knowledge and Pranam