◆ महानिशा ◆
ह्रीं
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Article Publish by SriVidya Pitham
महानिशां तू विज्ञेया मध्यस्थम प्रहरद्वयम
स्नानं तत्र न कुर्वितम काम्य नैमित्तिकादृते
|| पराशर स्मृती – ५९ ||
महानिशा क्या हैं ?
श्रीविद्या और दसमहाविद्या जैसी पवित्र साधना सीखने वाले साधक को अपने गुरु से महानिशा समय का ज्ञान लेना जरूरी है। क्योंकि श्रीललिता परमेश्वरी के मंत्र , कवच , स्तोत्र की ज्यादातर सिद्धी इसी काल में होती है।
सूर्यास्त और सुर्योदय के बाद ३ घटिका (घटिका ओर पळ के बीच ) संध्या समय कहते हैं। सूर्योदय के बाद तीन घटिका सायंकाल कहते हैं। सूर्योदय के बाद छह घटिका प्रदोष काल होता है। उसके बाद मध्यरात्र, और मध्यरात्री के बाद दोन घटिका महानिशा काल रहता है।
शब्दो के अर्थ अनुसार इस काळ में गाढ़ निद्रा लगती है। जिसे महानिशा कहते हैं। इसलिए इस समय मनुष्य साधना नही करता। पर , तंत्र विद्या तथा कठोर साधना मार्ग में इसी समय मे साधना कर फल प्राप्ति कर लेते हैं।
ऐसी ही महानिशा अवस्था में यंत्र सिद्धी की जाती है , तथा कुछ मंडल पूजन , बलिदान के विधी इनके लिए महत्वपूर्ण समय हैं । उचित दिन-मुहूर्त मिलाकर विशिष्ट धातुओं निर्मित यंत्रो का निर्माण होता है। पर ऐसा बहुत ही कम जगह दिखाई देता है। कुछ संस्थाए पैसे के लिए बड़े पैमाने पर श्रीयंत्र का निर्माण हजारो की संख्याएं में करते है , जिनका निर्माण अयोग्य मुहूर्त , गलत धातु और कुछ में तो गलत भौमितिक आकार में श्रीयंत्र बनाए जाते है । इसलिए ऐसे श्रीयंत्र कभी सिद्ध नही होते, बल्कि घर मे दूषित ऊर्जा का वहन होने की संभावना बनती है।
आगम शास्त्र से संबधित जितनी भी विद्याएँ हैं , वो सभी महानिशा काल में उसका पूजन अत्यंत प्रभावी होता हैं । इसके अंदर ओर भी गुप्त विषय होते हैं , वह आपको अपने अपने गुरु परंपरा अनुसार मिलते हैं ।
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