अलक्ष्मी नवरात्री क्या होती हैं ?

अलक्ष्मी नवरात्री क्या होती हैं ?

अलक्ष्मी नवरात्री क्या होती हैं ?


नमस्ते मित्रों …
श्रीविद्या पीठम में आपका स्वागत हैं ।

 

अलक्ष्मी नवरात्रि क्या होती हैं ?
इस नवरात्रि में क्या होता हैं ?
धूमावती और अलक्ष्मी इनका संबंध क्या हैं ?
अलक्ष्मी नवरात्रि और माता सीता का आपस में क्या संबंध हैं ?

 

🪔 दीपावली का समय आता है । तब काफी जगहों पर काफी सारी साधनाएं और नाना प्रकार की देवी देवताओं की मंत्र जप की क्रिया ई. विषय शुरू हो जाते हैं । लोग आकर्षण के चक्कर में किसी न किसी गुरु के द्वारा कोई ना कोई मंत्र लेते हैं । सबको यही लगता है , दीपावली के इस समय में मंत्र सिद्ध हो जाएंगे ।
परंतु असल में ऐसा कुछ होता नहीं हैं ।
क्योंकि मंत्र सिद्ध करना यह एक दिन की प्रक्रिया नहीं हैं । अधूरा क्रिया करके सिद्धि नहीं होती ।

 

हिंदू धर्म में काफी सारा ज्ञान ऐसा है की , जो समय के अनुसार विलुप्त हो चुका है । आजकल रहस्यमय ज्ञान को ढूंढने की कोशिश अथवा संशोधन करने की कोशिश कोई नहीं करता ।

 

दशहरे के दिन 🏹 श्रीराम जी ने रावण का वध कर दिया । दिवाली के समय में श्रीराम और माता सीता अयोध्या आए थे ।
दशहरे से लेकर दिवाली तक , जो दिन थे इसमें क्या हुआ था ?
इन छोटी-छोटी रहस्यमई बातों पर हमें ध्यान देना बहुत जरूरी हैं ।

पहले आपको असली रामायण का कुछ हिस्सा पता होना जरूरी हैं ।
श्रीराम जी ने जिसका वध किया था , वह दशमुखी रावण था । दशमुखी रावण का वध करने के बाद श्रीराम जी माता सीता की ओर आगे बढ़ते गए । तभी पीछे से उन्हें किसी ने धनुष्य बाण द्वारा वार किया । जिसमें वह बेसुध हो गए । यह सभी माता सीता के सामने ही हुआ । यह देखकर माता सीता क्रोधित हो गई । माता सीता पूर्ण श्रृंगार करके बैठी हुई थी। उसने जब वह देखा तो , सीता ने प्रथम मस्तक पर लगाया हुआ चूड़ामणि जमीन पर फेंक दिया । उसके बाद पायल निकाल कर फेंक दिए ।
सीता का रूपांतरण एक अघोरी राक्षसी शक्ति में हो गया । क्योंकि सीता जो थी वह मूल राक्षस कुल की थी । माता सीता यह कोई लक्ष्मी का अवतार नहीं हैं । वह उनसे भी उच्चतम महाशक्ति हैं ।
यह रूप इतना अघोरी स्वरूप का था कि , उनके शरीर से बहुत सारी अघोरी देवियां निकलना शुरू हो गई । दश हजार मुखी रावण का अर्थ है की , उसके पास उतनी महाविद्याएं थी । जिनके बल को एक करके वह रूप तयार हुआ था ।
माता सीता ने सीधा रावण के छाती में प्रहार करके , उसका हृदय निकाल लिया और उसका रक्त पीना शुरू कर दिया ।
रावण को मार दिया गया । परंतु माता सीता का वह अघोरी रूप शांत नहीं हो रहा था । काफी लंबे समय के बाद उनका यह रूप शांत हो गया ।
यह जो बीच वाला हिस्सा है , इसे ही अलक्ष्मी नवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं ।
यह नवरात्रि हमारे मनुष्य में नहीं होती ।

अलक्ष्मी जो होती है , यह धूमावती की शक्तियां होती है ।
अलक्ष्मी तत्व , ” कोजागिरी पूर्णिमा से वसु बारस ” तक भूमि पर आते हैं ।
लक्ष्मी आने से पूर्व, भौतिक और सूक्ष्म जगत में जो भी नकारात्मक ऊर्जा होती है , उसे यह अलक्ष्मीया उठाती हैं ।
दिवाली से पूर्व काफी लोग जो होते हैं , वह गरीबों को दान धर्म करते हैं ।
इन दिनों में दान देने वाली कोई भी वस्तु घर में लाकर रखनी नहीं चाहिए । उसे बाहर के बाहर ही देनी चाहिए । क्योंकि इन दिनों दान देने की कोई भी वस्तु आप घर में लाते हैं , तो वह आपके घर का गहना बनती हैं । भले वो तेल हो या कोई धान ।

अलक्ष्मी नवरात्री यह विशेष रूप से देवी देवता के समाज में मनाई जाती हैं । इनका मनुष्य से सीधे संबध नहीं आता । हिंदू धर्म में काफी जाती – उपजातियां हैं । हर परिवार के कुलाचार की पद्धतियां अलग अलग होती हैं । हर परिवार के कुलाचार में कुलदेवी – कुलदेवता इनके साथ काफी छोटी छोटी दैवीय शक्तियां होती हैं ।
ऐसा काफी बड़ा समुदाय हैं । यह इनके लिए उत्सव जैसा समय होता हैं ।

इस तरह से अलक्ष्मी नवरात्री का महत्व हैं ।

यह ज्ञान सिर्फ श्रीविद्या पीठम द्वारा उपलब्ध और संशोधित हैं ।

 

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