श्रीहयग्रीव रूप ” गवसाय अवतार “
नमस्ते मित्रों ,
श्रीविद्या पीठम में आपका स्वागत हैं ।
आप नीचे दी हुई एक तसवीर देखिए ।
आप इस तसवीर को देखकर क्या अनुमान लगा सकते हैं ?
श्रीललिता सहस्रनाम की उत्पत्ति में हयग्रीव अवतार का अधिक योगदान हैं ।
उनके कारण ही श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी नाम मनुष्य लोक में पहचान में आना शुरू हुआ ।
सामान्यतः हयग्रीव रूप को भगवान विष्णु का अवतार संबोधित किया जाता हैं ।
हयग्रीव रूप का मुख्य कार्य हैं , वे अलग अलग लोक में श्रीललिता और श्रीविद्या का ज्ञान – साधना का प्रसार करे ।
इस कार्य के लिए हयग्रीव रूप के भी अलग अलग अवतार होते हैं ।
हर ब्रम्हांड में ज्ञान का स्तर , दिव्य ग्रंथ , दिव्य शक्तियाँ इनकी व्याप्ती अलग अलग हैं । यहाँ हम श्रीविद्या को जिस तरह सीखते हैं , वही अन्य ब्रम्हांड अलग पद्धती में हैं ।
तो यह ” हयग्रीव ” रूप क्या हैं ?
इस रूप का नाम ” गवसाय हयग्रीव ” हैं ।
इन्हें तीन पैर हैं और चौथा पैर उन्होंने अपने बाएँ हाथ में पकड़ा हैं ।
चौथा पैर उनका कटा हुआ हैं । आप उसे ध्यान से देखिए ।
उस पैर को घुटने के पीछे थोड़ा काटा गया हैं और वह पैर सुख गया हैं ।
मुँह से आने वाली अग्नि उस पैर को लग रही हैं ।
यही सभी इसकी विशेषता हैं ।इसका अर्थ होता हैं की , त्याग की अंतिम सीमा और जगत कल्याण के लिए अंतिम निर्णय दर्शाती हैं ।
वह रूप प्रगाढ़ ज्ञान की परिसीमा दर्शाता हैं ।
इस रूप में उनका स्त्री रूप भी छुपा हुआ हैं । तसवीर में आप हाथों में चूड़ियां और गले के पास हिरन जैसा रंग देख सकते हैं ।
इनके पास श्रीविद्या के अंतर्गत फूल , वृक्ष और जल की श्रीविद्या का ज्ञान आता हैं ।
फूलों के बीज में श्रीललिता के कौनसे रूप का तत्व बैठ सकता हैं ? उसका पूजन उस फूल के पंखुड़ी में कैसे हो सकता हैं ?
शुद्ध – अशुद्ध पानी क्या होता हैं ? शांत – क्रोधी पानी क्या हैं ?
ऐसे काफी विषय का ज्ञान श्रीविद्या के इस रूप में आता हैं ।
जिस लोक में यह अवतार हुआ , उस लोक में इनका अलग से संप्रदाय हैं । उनकी श्रीविद्या पद्धती भी वहाँ अलग स्वरूप की हैं ।
इस लेख में इतना ही , हमारे श्रीविद्या पीठम में श्रीविद्या का अत्यंत गोपनीय ज्ञान और काफी संशोधन किया हुआ ज्ञान उपलब्ध हैं ।
आप हमारे कोर्सेस द्वारा अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ।
यह ज्ञान अभीतक कही भी उपलब्ध नहीं हैं ।
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