६४ योगिनी द्वितीय योगिनी : श्री महायोगिनी

६४ योगिनी द्वितीय योगिनी : श्री महायोगिनी

६४ योगिनी द्वितीय योगिनी : श्री महायोगिनी

नमस्ते मित्रों ,

श्रीविद्या पीठम में आपका स्वागत हैं ।

आप लोग ६४ योगिनियों के बारे में जानते होंगे । परंतु यह योगिनियों का मंडल जो है , यह दुर्गा अथवा पार्वती अथवा श्रीललिता इनके नीचे आता है , ऐसा काफी लोगों को लगता है । परंतु ऐसा नहीं है । इन योगिनियों के विषय पर अधिक कहीं पर भी जानकारी अथवा संशोधन उपलब्ध नहीं होता ।

हमारे पास बहुत सारे महाविद्याओं के बारे में काफी गुप्त जानकारी होती हैं ।

योगिनी क्या हैं ? 

आपने कभी सुना है क्या , की पार्वती को योगिनी कहा गया है ? अथवा लक्ष्मी को योगिनी कहा गया है ? या फिर दुर्गा को योगिनी कहा गया है ? 

ऐसा कही लिखा हुआ नहीं मिलेंगा । 

योगिनी एक अलग विषय है ऊपरी जगत में , 

मनुष्य के जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी होती है , जो अच्छी बुरी होती हैं । वह आकस्मिक घटती है । जिनके कारण मनुष्य का जीवन बदल जाता है । इन्हें हम भौतिक जीवन में ‘ योगायोग ‘ शब्द से बोलते हैं । 

जहां पर हमें लगता है कि कोई शक्ति ने उसे घटना को घटित किया है । इसी घटनाओं पर जो शक्ति काम करती हैं उन्हें योगिनी कहा जाता हैं । यह अधिकार उनके पास होता हैं ।

श्री महायोगिनी कौन हैं ? 

महायोगिनी में महा का अर्थ होता हैं , पंच महाभूत । 

देवी देवताओं को अपना कार्य चलाने के लिए पांच महाभूतों में से किसी न किसी भूत की ऊर्जा लगती हैं । अन्यथा वह काम कैसे करेंगे ? 

जितनी बड़ी दैवीय शक्ति होंगी , उसे अपना कार्य करने के लिए पांच महाभूतों की शक्ति भी उच्च स्तर की लगती है । 

देवी देवताओं में कुछ ऐसे देवता होते हैं , जिनकी खुद की पंच महाभूत की शक्ति होती हैं । ऐसे बहुत कम देवता होते हैं । 

सृष्टि में किसी चीज में अगर कोई भूत की शक्ति कम पड़ती है, तब उसे भरने के लिए यह योगिनी मदद करती है । योगिनी का अर्थ होता है जिसमें योग शक्ति की ऊर्जा अधिक हो । इनमें भी मुक्त योगिनी और अमुक्त योगिनी प्रकार होते हैं । 

हर देवी देवता को भी आगे बढ़ाने के लिए ज्ञान और समय पर मार्गदर्शन लगता हैं सामान्यतः कोई भी योगिनी पूर्ण रूप से मुक्त अथवा पूर्ण रूप से अमुक्त नहीं होती । महायोगिनी के पास आधी मुक्ति और आधी अमुक्ति यह दोनों तत्व आते हैं । यह काफी गोपनीय ज्ञान हम श्रीविद्या पीठम द्वारा आपको बता रहे हैं । 

योगिनी अर्थात कोई भी स्त्री शक्ति नहीं । बल्कि जो योग से भी पार गई है और जो योग को भी चलाती हैं । योग अर्थात कोई भी विशिष्ट घटना । निसर्ग में मनुष्य हो अथवा पशु पक्षी हो, सब में विशिष्ट रूप से कोई ना कोई विशिष्ट घटना घटित होती हैं । इसे हम कहते हैं … ” योगायोग ” । 

इसी ” योगायोग ” में मध्यस्ती की भूमिका निभाने वाली शक्ति ” महायोगिनी ” हैं ।

सामान्यतः इस तरह से इस योगिनी का विश्लेषण हैं ।

६४ योगिनी जैसे पवित्र साधनाओं को करने से पूर्व …… साधक का कुलाचार दोष और पितृ दोष यह दोनों संतुलित चाहिए । उच्च स्तरीय देवी देवताओं की साधनाएं इसीलिए पूर्ण रूप से काम नहीं आती , क्योंकि काफी लोग अपने घर के पूर्वजों से चली आ रही कुल परंपरा और सालाना कुल के रिवाज भूल चुके हैं ।

धन्यवाद ।

श्रीविद्या पीठम द्वारा आप अधिक ज्ञान संबधित कोर्स और साधना भी कर सकते हैं । 

SriVidya Pitham : 9860395985  

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