श्रीविद्या और क्रिया योग की गुप्त ” गुरु गुफा विद्या “
ॐ
ॐ क्रिया महावतार बाबाजी नमः ॐ
ॐ श्री मात्रै नमः ।। ॐ
नमस्ते मित्रों ,
श्रीविद्या संजीवन साधना सेवा पीठम में स्वागत हैं ।
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सबके जीवन में कोई न कोई प्रथम शिक्षक होता हैं । गुरु में भी एक शिक्षक होता हैं लेकिन गुरु के पास पहुचने के लिए एक व्यक्ति को कई सारे शिक्षकों के सानिध्य से गुजरना पड़ता हैं । ये वैसा ही है जैसे पहली कक्षा से सीधे आप इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने नहीं जा सकते , आपको क्रमानुसार सब सीखना होगा और अपने आप में वो बदलाव लाने होंगे ।
गुरु के पास पहुचने के लिए भी एक व्यक्ति को मानवीय जीवन में बहुत बदलाव लाने पड़ते हैं तब जाकर वो साधक का स्वरूप लेता है और एक साधक फिर शिष्य का स्वरूप लेता हैं , उसके भी आगे एक साधक जब समय आता हैं तब गुरु में विलीन होकर गुरु के प्रकाश में समा जाता हैं ।
पर यह बात ध्यान रहे , इन सब महाभारत में गुरु शिष्य एकसाथ हो – रूबरू हो । नहीं तो एकलव्य हो जाता हैं अथवा अभिमन्यु हो जाता हैं ।
श्रीविद्या और क्रिया योग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । आप एक पैर पर खड़े नहीं हो सकते ।
क्रिया योग और श्रीविद्या के पुरातन प्राचीन ज्ञान की परंपरा में गुरु गुफा नाम से एक विद्या थी । ऐसे तो न जाने कितने ज्ञान छुपे हुए हैं , पर मेरे पास से में आज गुरु गुफा के विषय पर थोड़ा दे रहा हूँ ।
गुरु गुफा विद्या में माया को अब्रम्हनीयम कहा गया है । वो ब्रम्ह के नियम के अधीन नहीं है । इसलिए तो अद्वैत में न जाने कितने लोग फस जाते हैं । जो नहीं है और जो एक मे समाहित होता हैं …… उसीमें न जाने कितना ज्ञान होता हैं ।
गुरु गुफा विद्या साधक को आत्मा को सुब्रमण्यम स्वरूप बनाने की कला सिखाती हैं । सुब्रमण्यम यह छठवां कोष हैं । पंचकोश के आगे छठवां । इस विषय पर विस्तृत से क्रिया योग इसेंशिल कोर्स में हमने बताया हैं ।
अन्नमय प्राणमय मनोमय विज्ञानमय और आनंदमय , अंतिम सुब्रमण्यम कोष ।
यहां तो न जाने कितने लोग सामन्य ध्यान की क्रिया में जो प्रकाश दिखाई देता है , उसीको कुण्डलिनी जागरण समझ बैठते हैं । बल्कि ऐसे प्रकाश को खुदका मुँह ही आईने में देखना कहते हैं । ये उसी तरह है कि घर के बल्ब पर काला कचरा लग गया और उसे साफ कर दिया तो वो ओर प्रकाश फेक देता हैं । पर इनमें ज्यादातर कुंडलिनी के मायावी चीजों में लोग अटक जाते हैं । कुंडलिनी भी इतनी शातिर होती हैं कि साधक को पूरी अपने मायावी मोहजाल की जादू में अंदर तक बेहला फुसलाकर ले जाती हैं । इसलिए तो कुंडलिनी जागरण जैसे खतरनाक विद्या में गुरु सामने चाहिए ।
गुरु गुफा क्या सिखाती हैं ?
तो पहले ये समझो कि शरीर ही एक गुफा हैं , जिसका कोई अंत नहीं । अब यहां ये समझने की भूल मत करो कि स्थूल शरीर ही शरीर हैं । स्थूल शरीर में ही बहुत से लेयर्स हैं , पैटर्न्स हैं ; जैसे अगर कोई महिला सलवार कुड़ती खरीदने जाए तो दुकानदार पचास पैटर्न दिखाता हैं और वो देखकर उस महिला की बुद्धि भी विचलित हो जाती हैं । वो सोचती हैं अब में कोनसे पैटर्न की सलवार कुड़ती लू ? लो में तो फस गई । अब सोचने की बात यह है कि हमारे स्थूल शरीर पर न जाने कितने पैटर्न्स होंगे जिनकी गिनती हम नहीं कर सकते । यहां तुम स्थूल से बहार नहीं निकल सकते फिर सूक्ष्म शरीर हैं , कारण – महाकारण शरीर हैं । जिनके साम्राज्य कभी खत्म नहीं हो सकते ।
शरीर को ही आत्मा समझना ये भूल को ज्ञान से दूर करने की कोशिश इसमें की जाती हैं । साधक को शरीर की गुफा में पाँच प्रकार के कोषों की लंबी दूरी की गुफाएं हैं , उस एक एक गुफा से गुजरना पड़ता हैं । एक कोष एक गुफा हैं । जैसे शरीर एक गुफा है तो मन भी गुफा है और प्राण भी गुफा हैं । शरीर में लाखों नाडिया हैं , वैसे मन और प्राण में करोड़ो मार्ग हैं । गुरु गुफा तुम्हे भटकने नहीं देती ।
बस गुरु की संगत होनी चाहिए ।
आत्मा को छोड़कर सबकुछ मायावी हैं । पंचकोश और चार शरीर भी माया हैं । इसलिए श्रीविद्या और क्रिया योग में गुरु गुफा विद्या का ज्ञान गुप्त रखा गया ।
© धन्यवाद ।
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