सभी साधको को नमस्कार ,
श्रीविद्या पीठम द्वारा हम आगे बढ़कर आपके समक्ष श्री प्रत्यंगिरा देवी संबधी छोटीसी साधना रूप उपासना रखने जा रहे हैं।
वास्तविक इस साधना को पूर्ण रूप से बनाना कठिन विषय हैं। परंतु , एक आम व्यक्ति की श्रद्धा और दैनंदिन जीवन की शत्रुओ के के कारण निर्माण होने वाली कठनाईयों को देखते हुए , यह एक उपासना बनाई हैं। श्रीप्रत्यंगिरा देवी में काफी सारी साधनाए हैं , परंतु कुछ विषयो को समझकर एक आम रूप की ही साधाना दे रहे हैं , आगे समय के अनुसार हम विपरीत प्रत्यंगिरा साधना को भी आपके सामने रखेंगे।
इस प्रस्तुत कोर्स में श्री प्रत्यंगिरा देवी तर्पण और अभिषेक विधी , तथा घर की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव निकालने के लिए मंडलपूजा विधी भी दिया हैं ।
श्रीप्रत्यंगिरा उपासना विषय पर रामायण में मेघनाद से संदर्भ में एक उल्लेख आता हैं। रावण की सेना हार रही थी , तब गुप्त रूप से मेघनाद श्री प्रत्यंगिरा देवी की साधना में चला गया था। जब हनुमान जी को इसका आभास हुआ तब उनोने उसकी साधना अधूरी ही तोड़ दी थी। अगर मेघनाद साधना पूर्ण कर लेता तो शायद श्रीराम जी को युद्ध जितना कठिन हो जाता ।
श्रीप्रत्यंगिरा देवी शून्य अवस्था में रहने वाली मातृत्व की शक्ति हैं। शून्य में कुछ भी नहीं होता । वह आपके अंदर ही हैं , बस उसे जागृत करना आवश्यक हैं । आपके अंदर बसे सूक्ष्म भय चिंता को वह आपके सामने लाती हैं और उसे खत्म करने के लिए मदत करती हैं। आध्यात्मिक जगत में भय की गहरी जख्म को समझाकर उससे दूर करने में मदत करती हैं। इसलिए यह मोक्ष के दरवाजे पर वास करने वाली शक्ति कहा हैं ।
यह शक्ति इनफिनिटी का प्रतीक हैं जिसे यिन यांग कहा जाता हैं। जिसका कार्य सन्तुलन करना हैं। कुण्डलिनी चक्रो में हर एक चक्र में मनुष्य अनेको जन्मों से अलग अलग भय लेकर आया हैं । यह देवी शेर के मुख वाली होने के कारण इस साधना में बहुत तेज शक्ति बल तयार होता हैं।
श्रीप्रत्यंगिरा देवी का कार्य क्या हैं ?
आधा शरीर सिंह और आधा मनुष्य रूपी शरीर हैं। इसे अथर्वअंगसिरा भी कहते हैं। इस देवी की उपासना , किसीको सामन्यतः रोज के जीवन में सदैव कमअधिक अपघात होते हैं , तीव्र शत्रुत्व , काले जादू अथवा तत्सम विषयो के कारण बीमारी , किसी भी काले जादू के प्रभाव को कम करना , किसी शक्ति के घर पर अथवा आपपर गंभीर दोष रोष आया हो , गंभीर श्राप से मुक्ति के लिए भी इसकी साधना की जाती हैं।
यह देवी राहु ग्रह के दोष को कम करती हैं , और श्रीवराही देवी केतु ग्रह के दोष को कम करती हैं। राहु दोष के कारण बहुत लोगो को स्वभाव चक्रम बन जाता हैं , उसको यह स्थिरत्व देती हैं।
देवी ने 8 सर्पो को शरीर पर धारण किया हैं , किसीको सर्पदोष तथा स्वप्न में सर्पो के भयानक चित्र आते हो तो यह देवी जल्द ही उसको कम करती हैं।
देवी के नाम से अगर कुंकुम लेकर घर के मुख्य दरवाजे के नीचे अथवा बहार डाल दिया जाए तो भी दुष्ट आत्माए और सर्प अंदर नहीं आते ।
श्रीप्रत्यंगिरा देवी की उतपत्ति कहा से हुई ?
श्री नृसिंह देव जी , जो भगवान विष्णु के अवतार थे , जब उनोने राक्षसों को मारकर उनका रक्त पिया था , तब उसके कारण उनके शरीर में काफी क्रोध आया था। उसके बाद वह बहुत हाहाकार मचाने लगे , परंतु उसमें शिव को भी अपयश आया । जैसे की शिव ने देखा भगवान नृसिंह शांत नहीं हो रहे हैं , भगवान शिव जी ने शरभ नामक एक महाकाय पक्षी का अवतार धारण किया । इस पक्षी के एक पंख पर शूलिनी देवी विराजमान थी और दूसरे पंख पर प्रत्यंगिरा देवी विराजमान थी । इस शिव के अवतार को श्रीशरभेश्वर कहा जाता हैं। परंतु , श्री शरभ और श्री शूलिनी देवी भी नृसिंह जी को शांत करने में अपयशी हो गई। तब शरभ जी के एक पंख से प्रत्यंगिरा देवी अलग हुई और उसने नृसिंही देवी रूप धारण किया । और उस रूप में उसने भगवान नृसिंह जी को शांत किया । उस समय और एक शक्ति निर्माण हुई उसे गंड भेरुण्डा नाम से कहा जाता हैं। यह एक महाभयंकर दैवीय शक्तियां थी । श्रीनृसिंह श्रीशरभ श्रीप्रत्यंगिरा इसको ट्रिनिटी कहा जाता हैं ।
श्रीप्रत्यंगिरा देवी का अनुभव आना अथवा उनका दर्शन होना काफी बड़ी बात कही जाती हैं।
वह अपने सिंह मुख से अनेको कठनाइयों को हटा देती हैं। इसका बीज मंत्र हैं ” क्षं ” ।
एक कहानी के अनुसार श्री शरभेश्वर भगवान का अहंकार तोड़ने के लिए इस देवी का निर्माण हुआ ऐसा भी कहा हैं । श्रीप्रत्यंगिरा देवी में काफी प्रकार हैं । जैसे की , विपरीत प्रत्यंगिरा देवी , बगला प्रत्यंगिरा , काली प्रत्यंगिरा आदी.
प्रत्यंगिरा देवी , साधक के शरीर के अंगों में बस जाती हैं। इसलिए उसे प्रत्य + अंग ऐसा कहा हैं। इसकी साधना से शरीर में काफी बदलाव होकर , साधक के आसपास के लोग उसे एक उच्च मान देते हैं और उसका एक वजन प्रतिष्ठा बढ़ती हैं , शत्रु भी नरम रहते हैं। नियमित साधना से शरीर की ओरा तेजमय बनती हैं। नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव जल्दी महसूस होना शुरू होता हैं ।
कोर्स की अनुक्रमणिका : –
१) श्रीप्रत्यंगिरा तर्पण विधी ( ओषधीय द्रव्यों से तर्पण )
२) श्रीप्रत्यंगिरा अभिषेक विधी ( सुपारी पर संपूर्ण परिवार सहित पूजन )

३) श्रीप्रत्यंगिरा मंडलपूजा विधी
( अमावस्या पर नींबू के दिए और मसालों के चूर्ण से मंडलपूजा विधान , आभिचारिक प्रभाव दूर करने के लिए )
४) श्रीप्रत्यंगिरा मालामंत्र
( काला धागा , पाणी , भस्म को अभिमंत्रित विधी )
५) श्रीप्रत्यंगिरा हवन मार्गदर्शन
६) श्री कौशिकी प्रत्यंगिरा न्यासः विधी
( वैदिक संरक्षण कवच / हीलिंग )
( संपूर्ण विषय को एक पुस्तिका में लिखा हैं , कोर्स के साथ यह पुस्तिका भी दी जाएंगी । )
साधना नियम पद्धती :-
प्रस्तुत साधना आम मनुष्य कर सके ऐसी ही बनाई हैं। बस उसका दुरुपयोग न हो । साधनाकाल में मद्य मांस तथा स्वार्थ द्वेष वृत्ती न रखे । नियमितरूप से कमसे कम दो महीने इस साधना में जाने चाहिए ।
देवी के लिए अमावस्या शुक्रवार अष्टमी रविवार आदी दिन प्रिय हैं।
देवी के प्रिय पदार्थ में , गुड़ , गुड़ मिश्रित जल अथवा गुड़ मिश्रित खीर , लाल रंग का केला , अनार , तिल मिश्रीत गुड़ , मेंदू वडा , खजूर ई आते हैं ।
देवी के प्रिय रंग में गहरा लाल रंग , काला रंग , पर्पल रंग ई हैं ।
आप सभी को ऊपरोक्त साधना में सफलता मिले यही आशा हैं ।

Students enrolled in this course will receive:
- Access to Online platform compatible with your laptop, mobile and tablet.
- Recorded Video Lectures and demonstrations in Hindi.
- Guided script to perform sadhna.
- Printed Booklet with Tarpan Mantras and sadhna process. (Please send your Postal Address to sripitham@gmail.com or whatsapp to +919860395985 so we can send this material to you by Courier)
- Email/whatsapp/phone support to answer any questions you have.
Please note this course is in Hindi
Rs 5001 / $100

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