SriVidya Sadhna – Kaulachar Aspect

SriVidya Sadhna – Kaulachar Aspect

★ श्रीविद्या साधना कौलाचार स्वरूप में ★

    श्रीविद्या साधना में वेसे भी कई आम्नाय और मार्ग है । आज भी अनेक लोग श्रीविद्या के प्रति आकर्षित है । श्रीविद्या भोग और मोक्ष देती है , यह बात सत्य है । पर उसके लिए सही विधान से श्रीविद्या साधना मिलना भी जरूरी है । बहुत लोग कही से श्रीविद्या सीखते है और उनको लगता है कि वो श्रीविद्या दीक्षित है । जैसे अद्वैत श्रीविद्या साधना लोग सीखते है और खुदको श्रीविद्या साधक बोलते है । पुराने ग्रंथो को खोलके कोई नही देखता । की सच में जो मेने दीक्षा लिया है ? वो श्रीविद्या किसी ग्रंथो में लिखी हुई है क्या?

      श्रीविद्या के विषय में श्रीदत्तात्रेय श्रीपरशुरामजी श्रीअगस्ती लोपामुद्रा श्री आदिशंकराचार्य जी के नाम तो सुनते हैं । परंतु , नाम सुनने से अच्छा है कि उन दिव्यत्माओ ने उस ज्ञान साधना को किस प्रकार अर्जित किया ? इस तरफ कोई भी ध्यान नहीं देता । अगर यह प्रश्न को खोजने लगे तो बहुत विषय के उत्तर आपको मिलेंगे ।
      श्रीदत्तात्रेय ने श्री परशुराम को श्रीविद्या साधना सिखाई और उसको परशुराम ने परशुराम कल्पसूत्र में रूपांतरित किया । यह श्रीविद्या कौलाचार का एक रूप है , जो सामान्य व्यक्ति खुदकी प्रगति के लिए सिख सकता है । श्री दत्तात्रेय हो या श्रीपरशुरामजी दोनों ने ही एकेले एकेले ही अपने गुरु के पास रहकर श्रीविद्या साधना का अर्जन किया । इनकी साधना की शुरुआत पहले श्रीमहागनपति से होती है , और बहुत जगह पर इन प्राथमिक साधनाओ को टाला जाता हैं ।
      आदिपराशक्ति श्रीललिता त्रिपुरससुन्दरी करोडो सूर्य के तेज के समान है । लोग यह नही समझते । देवी का स्वरूप उसका महत्व उसका जग देखे बिना , वो किसीभी साधक का , अपना रास्ता नही खोलती ।
     पँचदशी मंत्र की दीक्षा दी जाती है , तभी पँचदशी के बाद कोई शिबीर या उसकी लेवल नही होती । पँचदशी ही अंतिम है । कई लोग पँचदशी को नही समझते और उसके आगे षोडशी दीक्षा लेते है । फिलहाल श्रीविद्या बहुत बड़ा मार्ग है , जिसे में भी पूर्ण रूप से यहाँ नही लिख सकता । आवश्यक जानकारी के लिए थोड़ी इन्फॉर्मेशन दे रहा हु ।
     आदिशंकराचार्य ने भी पहले बाह्यपुजा को महत्व दिया है और  उसके बाद आन्तरपुजा करने का विधान कहा है । आदिशंकराचार्य जी ने कोल्हापुर में अपनी बाह्यपूजन श्रीविद्या श्रीयंत्र का पूरा किया था । सौन्दर्यलाहिरी में भी उन्होंने प्रथम बाह्य पूजा का विधान बताया है । लोग मूल बात को भूल जाते हैं ।काल के वेग में बहुत ग्रंथ लुप्त हो चुके । अद्वैत श्रीविद्या के नाम से जो समयाचार दिया जाता है , उस विधि को भी बहुत कम जगह सही ढंग से चलाया जाता है ।
        श्रीराम , श्रीहनुमान , अश्वथामा भी श्रीविद्या साधक थे । बिना बाह्यपुजा के आन्तर्याग साध्य नही होता ।
       श्रीविद्या तो बहुत बड़ी है । में उसकी सामान्य व्यक्ति को आवश्यक जानकारी दे रहा हुँ ।
       श्रीविद्या के कौलाचार में पहले 3 स्टेप है ।
1) श्रीविदया स्टेज १ श्रीमहागणपति तर्पण और यँत्र पूजा :-
       श्रीमहागनपति देवता को श्रीदेवी ने अपनी भौतिक जग का अधिपति रखा है , जो श्रीयन्त्र में भूपुर कहाँ जाता है । वही मुलाधार से स्वाधिष्ठान तक जो ब्रम्ह ग्रन्थी है उसको शुद्ध करता है । श्रीविद्या भोग भी देने वाली विद्या है , तो इस स्टेज में व्यक्ति के जीवन मे भौतिक समस्याए होती है । उससे रास्ता निकालना और मार्गदर्शन करना , यह काम ये विद्या करती है । हमारे कई सारे जन्मों के कर्मदोष यहाँ बंधे होते है । उनको शुद्ध किए बिना व्यक्ति आगे के मार्ग पर नही जा सकता ।
     वेसे ही जिनको मंगल , केतु दशा है या दोष है , गंडांतर दोष है , पितृपिडा दोष है , शारीरिक पीड़ा है । उनके लिए यह लाभदायक विद्या है ।
2) श्रीविदया स्टेज २ श्रीमातंगी देवी पूजा :- यह देवी मणिपुर से हृदयचक्र तक आनेवाली विष्णु ग्रंथी को शुद्ध करती है । श्रीमातंगी देवी श्रीललिता के सामने ही विराजमान है । श्रीललिता देवी करोडो सूर्यो के तेज के समान होने से उनको देखना सहज आसान नही है । श्रीमातंगी देवी यह बल हमे प्रदान करती है की , हम उतना प्रेम हासिल कर देवी के पास जा सके ।
     श्रीमातंगी देवी श्रीललिता त्रिपुरासुंदरी के साम्राज्य की सांस्कृतिक विभाग की मंत्री है । प्रेम , दया , ममता , भावना निर्माण करने वाली यह देवी है ।
    गृहसौख्य , संसार सुख , कुटुंब में प्रेम बनाए रखने के लिए , नकारात्मक ऊर्जा को निकालकर सात्विक ऊर्जा को लाने के लिए यह देवी मदत करती है  । आजकल हर सांसारिक व्यक्ति को इस विद्या की जरूरत है । विवाह में आने वाली बाधा को मिटाकर यश देती है । कला क्षेत्र के लोगो को यश देती है । शुक्र महादशा , शुक्र ग्रह को स्थिर करती है ।
3) श्रीविद्या ३स्टेज श्रीवाराही पूजा :- यह देवी श्रीललिता के साम्राज्य की दण्डिनी है । जो विशुद्ध से आज्ञा चक्र तक रुद्र ग्रंथी खोलने में मदत करती है । शरीर के सारे धातुं ओ में जो निगेटिव ऊर्जा है उसे निकलती है ।
   पिछले जन्म के बड़े बड़े शाप , कर्म को काटती है । बड़े बड़े आभाचारिक कर्मो से मुक्ति देती है । बड़ा पितृदोष , शनि दोष , राहु दोष , शनि महादशा , राहु महादशा इनको सुधारती है । राहु गुरु युति के दुष्प्रभाव से मुक्ति देती है । जिनके सदैव अपघात होते है उनके लिए अच्छि साधना है ।
    राजकीय , सामाजिक व्यक्ति , खेल में , जहाँ हमेशा स्पर्धा है , पराक्रम , जीत देने का कार्य श्रीवाराही प्रदान करती है ।
   यह 3 स्टेप के बाद श्रीयंत्र और श्रीललिता देवी के दरवाजे खुलते है ।
   उसके बाद 4TH स्टेज पर श्रीबाला त्रिपुरसुंदरी देवी का पूजन साधना है , अंत में श्रीपँचदशी दीक्षा , नवावर्ण पूजा सिखाते है । उसमें भी हर साधक के शरीर में देवी का आवाहन कर अभिषेक करना पड़ता है । श्रीयंत्र की सटीक नवावर्ण पूजा सौ बड़े यग्यो के समान है ।
      यह पूरा प्रोसेस व्यक्ति को संसार में रहकर श्रीललिता को प्रसन्न करने के लिए ही बनाया है । बहुत सारी जगह इन सारी प्रोसेस को देखा नही जाता ।
    श्रीविद्या साधना मुक्ति का द्वार है , तो वह साधना केसी होनी चाहिए ? इसमें हर एक व्यक्ति का खुदका संशोधन होना चाहिए ।
    श्रीविद्या को भोग और मोक्ष का साधन तो कहा गया , परन्तु ये दोनों चीजे मिलेंगी कैसे ? आपको सभी जगह यही पढा मिलेंगा और सुनाई देंगा की श्रीविद्या भोग और मोक्ष देंगी , परन्तु उसकी मेथड क्या है ? कैसे भोग मिलेंगा ? मुक्ति कैसे मिलेंगी ? क्या मंत्रो को के जाप से ये संभव है ? आपको बहुत परिपक्व बनना होगा और गुरु से रूबरू रहना होगा , तभी जाकर इन सवालों के जवाब मिल सकेंगे ।

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