श्रीविद्या ~ श्रीयंत्र … प्राथमिक ज्ञान ~ भाग ३
ॐ
नमस्ते मित्रों , श्रीविद्या पीठम में स्वागत हैं ।
© This Article Publish by SriVidya Pitham .
श्रीविद्या साधनाक्रम में अंतिम स्तर पर नवावर्ण पूजन संपन्न होता हैं ।
नवावर्ण अर्थात नवयोनियों का पूजन ।
नवयोनी अर्थात श्रीयंत्र । श्रीविद्या साधना हेतु और श्रीविद्या ज्ञान हेतु हमसे संपर्क कर सकते हैं ।
⭕ वृत्तत्रय चक्र Explanation
श्रीविद्या साधना पद्धति में सिर्फ ” षोडशी दीक्षा ” में ही श्रीयंत्र के ” वृत्तत्रय चक्र ” का पूजन होता हैं । परंतु षोडशी दीक्षा कोई आम दीक्षा नहीं हैं । उससे पूर्व साधक को कमसे कम एक साल तक गुरु के पास रहना होता हैं , काफी सारा सूक्ष्म ज्ञान समझकर लेना पड़ता हैं । षोडशी से पूर्व पंचदशी दीक्षा का ठीक से ज्ञान चाहिए । काफी साधकों को यही ज्ञान नहीं होता ।
महाविद्याओं की साधना में दीक्षा अथवा परंपरा का अर्थ …. एक मंत्र को दूसरे के कान में बताना नहीं होता । बल्कि गुप्त ज्ञान रूपी समुद्र को गुरु से शिष्य को देना हैं ।
पंचदशी दीक्षा में ” वृत्तत्रय चक्र ” का पूजन नहीं होता ।
आजके समय में भारत में किसीको पंचदशी दीक्षा का पूर्ण रूप से ज्ञान नहीं हैं ।
षोडशी दीक्षा … सिर्फ स्वप्नवत विषय हैं ।
काफी जगहों पर षोडशी के मंत्र देते हैं , परंतु उसे दीक्षा नहीं कहा जाता ।
इस लेख में हम अधिक ज्ञान के लिए , वृत्तत्रय चक्र का निरूपण ले रहे हैं । परंतु हम इसे श्रीयंत्र का दूसरा आवरण नहीं कहेंगे ।
Point : 1
श्रीयंत्र में वृत्तत्रय चक्र की भूमिका होती हैं की ….. बाहरी जगत को, अंदर के जगत को दूर रखना अथवा अदृश्य रखना । अदृश्य को छुपाना ।
श्रीयंत्र में ⭕ वृत्तत्रय चक्र से लेकर 🔲 भुपुर तक का प्रदेश बाह्य भाग / बाह्य जगत कहा जाता हैं ।
तथा श्रीयंत्र में वृत्तत्रय चक्र से मध्यबिंदु तक का प्रदेश आंतर जगत हैं ।
बाह्य जगत से दुगना आंतर जगत हैं ।
⭕ वृत्तत्रय चक्र इन दोनों जगत को एक दूसरे से अलग करता हैं ।
⭕ वृत्तत्रय चक्र की तीनों वृत्त …. तीन प्रकार की ⭕अग्नि हैं । हम इसे तीन प्रकार के अग्नि के रिंगन कह सकते ।
पंचदशी में यह Activate रहते हैं और षोडशी में उनकी अग्नि मंद होकर , अंदर की शक्तियां बाहर आती हैं ।
इन सबका एक रहस्य हैं । हमारे श्रीविद्या पीठम में ही अत्यंत गुप्त ज्ञान उपलब्ध हैं ।
Point : 2
वृत्तत्रय चक्र के तीन वृत्त होते हैं ।
⭕ प्रथम वृत्त में …. २९ प्रकार की मातृका देवी का पूजन होता हैं ।
⭕ द्वितीय वृत्त में …. १६ प्रकार की मातृका अम्बा देवी पूजन होता हैं ।
⭕ तृतीय वृत्त में …. १६ नित्यकला तिथी देवियों का पूजन होता हैं ।
सभी के नाम सहित जानकारी नीचे तस्वीर में दी गई हैं ।
( वृत्तत्रय चक्र के मातृका देवियों को परम मातृका देवी कहते हैं । )
Point : 3
वृत्तत्रय चक्र की चक्रेश्वरी देवी – त्रिपुरेशिनी देवी हैं ।
वृत्तत्रय चक्र की मुद्रा को ” महासुयोनी मुद्रा ” कहा जाता हैं ।
पंचदशी में श्रीयंत्र को नवावर्ण पूजन कहते हैं और षोडशी दीक्षा में श्रीयंत्र को दश्चक्रार पूजन कहते हैं । तभी इन शक्तियों का पूजन होता हैं ।
⭕ प्रथम वृत्त में …. २९ प्रकार की मातृका देवी का पूजन होता हैं ।
⭕ द्वितीय वृत्त में …. १६ प्रकार की मातृका अम्बा देवी पूजन होता हैं ।
⭕ तृतीय वृत्त में …. १६ नित्यकला तिथी देवियों का पूजन होता हैं ।
श्रीविद्या साधना के अधिक ज्ञान हेतु हमारे हमारे Course Join कर सकते हैं । वेबसाईट पर अधिक जानकारी दी हैं ।
1. https://srividyapitham.com/sri-vidya-essentials/
2. https://srividyapitham.com/advance-srividya-course/