यह घटना अक्कलकोट ( सोलापुर ) की हैं । जब श्रीस्वामी समर्थ महाराज अक्कलकोट में रहते थे और उस समय ब्रिटिश शासन था ।
एक बार अक्कलकोट के ब्रिटिश अधिकारी श्रीस्वामी जी को मिलने के लिए आए थे । यह कथा थोड़ी लंबी और सुंदर हैं ।
इस भेट से पूर्व की पार्श्वभूमी समजकर लेते हैं ।
जो ब्रिटिश अधिकारी मिलने के लिए आया था , उसके पत्नी को कॅन्सर हुआ था और वह गर्भवती थी । उसकी ट्रीटमेंट भी लंडन में चालू थी । उस समय पूर्ण अक्कलकोट और आसपास के परिसर में एक ही टेलीफोन था । उस समय के अनुसार आप कल्पना कर सकते हैं । वह ध्वनी यंत्र बहुत बड़ा था और वो ठीक से चलता भी नहीं था। उसके कारण सभी जगह पत्र व्यवहार चलता था ।
लंडन के डॉक्टर ने उस अधिकारी को पत्र के द्वारा , उसकी पत्नी कुछ ही दिन की मेहमान हैं ! ऐसा कहा था । उसका शरीर पर दवाओं का असर भी धीरे धीरे कम हो रहा था ।
उस ब्रिटिश अधिकारी ने लंडन के एक पादरी को पत्र लिखकर आगे की मार्गदर्शन के प्रार्थना की । वो पादरी उनका पुराना आध्यात्मिक मार्गदर्शक था ।
जब पादरी का पत्र उस अधिकारी को आया , तब उसका संदेश नीचे दे रहे हैं ।
” तुम्हे येशु का संदेश हैं । तुम जिस जगह काम कर रहे हो , वही पर मेरा अस्तित्व देखो । यह अस्तित्व तुम्हे खुली आँखों से दिखेगा। वही तुम्हे आगे मार्गदर्शन करेंगे । “
( मूल पत्र इंग्रजी में : There is a great signal for u from the almighty God that the place where you are situated in find out the energy of guidance that is a god which you can sense and see the god with 5 senses will remove you from all your pain and bad timings . )
पत्र पढ़ने के बाद अधिकारी को समझ आया की , ऐसा मार्गदर्शक सिर्फ श्रीस्वामी हैं । कारण उस अधिकारी को श्रीस्वामी जी के विषय पर बहुत खबरे आते थे । वो अधिकारी वह पत्र लेकर श्रीस्वामी जी के पास चला गया । वो पत्र उसने श्रीस्वामी जी को पढ़कर बताया और पत्नी के बीमारी का बताया । उस समय श्रीस्वामी जी को इंग्रजी समज आता था और वो बोलते भी थे । उस अधिकारी ने उनको प्रार्थना करी ।
श्रीस्वामी जी ने उसे आज आओ कल आओ करके चार दिन निकाले । आखरी वह श्रीस्वामी जी के पैर पड़ा और मार्गदर्शन के लिए याचना करने लगा ।
श्रीस्वामी जी उसे बोले , तुम तुम्हारे पत्नी के कपडे का एक टुकड़ा लो और अक्कलकोट की जमीन में उस टुकड़े को गड्ढा खोदकर , उसे गाढ़ देना । जिस जगह उसे गाढ़ दोंगे वही पर रोज दिया लगाना हैं ।
अब उसकी पत्नी तो लंडन में रहती थी । उसके पास उसका कोई कपड़ा ही नहीं हैं , ऐसा अधिकारी ने श्रीस्वामी जी को बताया । तब श्रीस्वामी बोले , तुम्हारे पास जो रुमाल हैं वह तुम्हारे पत्नी ने जाते समय तुम्हे दिया था ना ? उसका उपयोग करो ।
अधिकारी यह बात सुनकर हड़बड़ा गया । उन्हें कैसे समझा ? वह रुमाल उसके पत्नी ने ही दिया हैं ?
फिर एक जगह देखकर उसने वह रुमाल जमीन के अंदर गाढ़ दिया ।
आगे प्रश्न आया की दिया कैसे लगाने का ?
वह फिरसे श्रीस्वामी जी पास आया । वो बोला , वह कैंडल लगाने की या तेल का दिया लगाने का ? श्रीस्वामी जी बोले , वो कैंडल वगेरा तुम्हारे यहाँ चलता हैं । यह तुम्हे तेल का दिया ही लगाना हैं ।
उस समय सुंदरा बाई ने उस अधिकारी को तेल का डिब्बा दिया था । सुंदराबाई ने वो तेल का डिब्बा बाजार की कीमत से अधिक महंगा बेचा था । ( सुंदराबाई नाम की एक स्त्री अक्कलकोट में ही रहती थी । वह स्त्री श्रीस्वामी जी के आसपास के लोगों के साथ खुदका दबाव बनाकर रखती थी । वह चालाख और स्वार्थी स्त्री थी । )
इस प्रकार से वह अधिकारी रोज उस जगह दिया लगाने लगा ।
धीरे धीरे उसकी पत्नी को दवाई का असर होना शुरू हुआ । आगे जाकर उसकी बीमारी भी चली गई और उसे बच्चा भी हुआ ।
इस दौरान अक्कलकोट से लंडन तक रोजाना पत्र व्यवहार चलता था और उसीके माध्यम से सारी खबरे मिलती थी ।
वह अधिकारी भी हर पत्र के बाद श्रीस्वामीजी को मिलने के लिए आता था ।
एक दिन पत्र के साथ लंडन से कुकीज बॉक्स आया था । वह श्रीस्वामी जी के पास लेकर आया और उन्हें खाने के लिए बोला । आखिर उस समय में लंडन से आने वाली कोई भी वस्तु अर्थात अमूल्य ही थी ।सुंदराबाई को कुकीज देखकर मुह में पानी आ गया । वह श्रीस्वामी जी को बोली , ले लीजिए स्वामी जी ! ले लीजिए स्वामी जी !श्रीस्वामी जी ने उस अधिकारी को कहा , एक कुकीज उस कुत्ते को डालो और एक कुकीज इस सुंदराबाई के पास फेको । बाद में श्रीस्वामी जी ने सभी कुकीज चोळप्पा को दी । ( चोळप्पा जी प्रथम शिष्य थे श्रीस्वामी जी के और श्रीस्वामी जी उनके घर ही काफी समय तक रहे थे । )
ब्रिटिश अधिकारी की पत्नी ठीक हो गई । उसके बाद अधिकारी ने अपनी पत्नी को लंडन से अक्कलकोट बुलाकर लिया । अक्कलकोट आने के बाद उसने अपने बच्चे को श्रीस्वामी जी के पैर के पास रख दिया ।
उसने पत्नी को नमस्कार करने के लिए कहाँ । उसकी पत्नी ने उनकी पद्धती में क्रॉस टाईप का नमस्कार किया । फिर अधिकारी ने उसे नमस्कार कैसा करना चाहिए , वह बताया । वैसा उसने नमस्कार किया । वह देखकर चोळप्पा और बाकी के लोग मन ही मन हस रहे थे ।
आगे उस अधिकारी ने श्रीस्वामीजी को बच्चे के नामकरण कार्यक्रम के लिए लंडन आने का निमंत्रण दिया । ख्रिश्चन पद्धती में नामकरण कार्यक्रम एक पार्टी टाईप की होती हैं ।
वह सुनकर सुंदराबाई को क्या करू और क्या नहीं , ऐसा हुआ । वो श्रीस्वामी जी को बहला फुसलाकर , मीठी मीठी बात बोलकर जाने की जिद्द करने लगी ।
श्रीस्वामीजी बोले , अरे तुम्हारे जहाज़ में में बैठ गया तो मेरे वजन से डूब नहीं जाएंगा क्या वो ? और तो में पहनता हुँ लंगोट । मेरा लंगोट तुम्हारे यहाँ चलेगा क्या ? तुम ही जाओ । ( श्रीस्वामी जी का शरीर भारी भरकम था । )
वह दोनों पति पत्नी वही श्रीस्वामीजी के मठ में भोजन लिया और बच्चे को श्रीस्वामीजी के पैर पर रखा । वह अधिकारी बोला , यह बच्चा आपके कारण जिंदा हैं । उसे में आपको अर्पण करता हूँ ।
यह सुनकर उसकी पत्नी थोड़ी चिड गई , परंतु अधिकारी ने उसे चुप करवा दिया । .
श्रीस्वामीजी बोले , इसे में यहाँ रखकर क्या करूंगा ? उसे अच्छे संस्कार देदो और अच्छे काम को लगाओ ।
इन सभी घटनाओ में उस अधिकारी का प्रमोशन भी हुआ था . परंतु उसने उसे त्याग दिया । कारण उसकी पत्नी पूरी ठीक होने तक उसे दिया लगाना था । प्रमोशन के बाद उसे दूसरी जगह जाना पड़ सकता था ।
जब वह अधिकारी अक्कलकोट छोड़कर चला गया , तब चोळप्पा ने श्रीस्वामीजी से वह आगे भी दिया लगाना हैं क्या ? ऐसा पूछा । तब श्रीस्वामीजी बोले , उस जगह पर पानी प्रोक्षण करके बात को खत्म कर दो ।
धन्यवाद ।
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