श्री शरभेश्वर साधना ( आकाश भैरव )
नमस्कार मित्रों ,
श्रीविद्या पीठम द्वारा ” श्री शरभेश्वर साधना ” प्रकाशित कर रहे हैं । यह भगवान स्वच्छंद भैरव शिव के अवतार हैं ।
‘आकाश भैरव कल्प’ तंत्र में कहा गया है कि भगवान भैरव ने लोक रक्षा के लिए अपने स्वरुप को यथा समय तीन रूपों में क्रमशः प्रकट किया है – 1. आकाश भैरव 2. आशुगरुड और 3. शरभ | तीसरे रूप शरभेश्वर के पुनः तीन रूप व्यक्त हुए हैं – 1. शरभ 2. सालुव 3. पक्षीराज । आधा पक्षी , जिनके पंख अतिभव्य हैं और आधा पशु रूपी अवतार जिनके पैर अत्यंत शक्तिशाली हैं । यह साधनाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण साधना हैं । तामसिक और नियमपूर्ण साधना होने के कारण इसे सावधानी पूर्वक कीजिए ।
प्रथम इस साधना की पार्श्वभूमी समझिए ।
भगवान श्रीनृसिंह ( श्रीविष्णु ) जी ने जब हिरण्यकश्यप का वध किया । उसके उपरांत वह शांत नहीं हो रहे थे । असुर रक्त पीने के कारण उनका क्रोध अधिक बढ़ने लगा । तब उन्हें शांत करने हेतु भगवान शिव ने शरभ अवतार लिया ।
शरभ एक पक्षीराज अवतार कह सकते हैं । इनके आठ पैर हैं और चार हाथ । शरभ रूपी शिव जी ने अपने पंजों में श्रीनृसिंह को पकड़ा और आकाश की और लेकर चले गए । शरभ पक्षी ने चोंच मारकर उन्हें बेहोश किया , अपनी पूछ से उन्हें बांधा , पिछले दो पैर नृसिंह की पैर पर रखे और आगे के दो पैर छाती पर रखे । थोड़े युद्ध के बाद वह शांत हुए । इसलिए ” शरभ अवतार ” अत्यंत तीव्र अवतार हैं ।
इस दिव्य साधना में हम संपूर्ण तर्पण और अभिषेक विधि सिखा रहे हैं । तीव्र साधना होने के कारण हमने आवश्यक उतना ही सिखाया हैं । इनके पैर बहुत लंबे और तीव्र शक्तिशाली हैं । शरभ यह श्यामा शरभ अंतर्गत अवतार हैं । श्यामा शरभ अर्थात पक्षियों के राजा गरुड़ से भी अत्यंत घातक पक्षी । गरुड़ से भी आगे की प्रजाति ।
🕸️ साधना उपलब्धि :
१. निर्भय सिद्धि – किसी प्रकार का भय , पुराना दर्द – भय नष्ट होता हैं ।
२. लोकमत सिद्धि नाम की एक सिद्धि हैं । जिसमें किसी लोक ( आयाम ) व्यक्ति जन्म ले सकता हैं । किसी लोक से ज्ञान प्राप्त कर सकता हैं ।
३. तीव्र प्रकार के काले जादू की समस्या में अत्यंत प्रभावी साधना हैं ।
४. आकाश सिद्धि – आकाश स्वयं एक अदृश्य जगत हैं । जिसमें अनेकों शक्तियां वास करती हैं । हमारी ओरा , आकाश में नवग्रह होते हैं , कुलशक्तियां – पितृदेवता और उनके दोष आदि सभी आकाश तत्व में कही होते हैं । इन दोषों को नष्ट करने के लिए उत्तम साधना हैं ।
५.इनके प्रयोग नृसिंह से भी अधिक घातक हैं, क्योंकि उग्रता, भीषणता एवं तीक्ष्णता के रूप में ही इनका प्रादुर्भाव हुआ था । इसलिये आत्मरक्षा कवच एवं गुरु का संरक्षण प्राप्त कर ही इनकी साधना में प्रवेश करना चाहिये ।
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