- ◆ श्रीविद्या साधना अंतर्गत मोक्ष को साधना ? ◆
भाग : 1
नमस्ते मित्रो , आजका विषय अजीब है पर जरूरी है। विषय है ,
श्रीविद्या से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं क्या ?
श्रीविद्या को भोग-मोक्ष की साधना बोलकर कुछ श्रीविद्या गुरु ओ ने करोड़ो की कमाई की , पर दस-दस साल उनकी संस्थाओं में साधना करने वाले साधक , इतने सालों तक चींटी इतना भी सूक्ष्म ज्ञान नही पा सके ।
आप , श्रीविद्या साधना किसी गुरु से ले रहे हो और आपका ” मोक्ष ” उद्देश्य है ……. तो गुरु से लंबी फीज देकर आप मोक्ष खरीद रहे है और मोक्ष देने वाला कोई गुरु लम्बी फीज भी नहीं लेता ओर न हजारो की टोलियां में श्रीविद्या सिखाता हैं ।
इस लेख को तीन-चार बार पढ़ना होगा तभी कुछ बात समझ आएंगी ।
मन्त्राणां मातृका देवी शब्दनां ज्ञानरूपिणी ।
ज्ञानानां चिन्मयातीता शून्यानां शुन्यसाक्षिणी ।।
… शून्य में भी जो शुन्यसाक्षिणी है वो श्रीललिता परमेश्वरी राजराजेश्वरी ।।
शून्य अवस्था प्राप्त करने के लिए पहले विस्तार बढ़ाना जरूरी है , जब साधक को अपना विस्तार समझेंगा तब जाकर उसे कितना शून्य होना है , ज्ञात होगा।
न शिवेन विना देवी न देव्या च विना शिव: ।
नानयोरन्तरं किंच्चीच्चन्द्र चन्द्रिकयोरिव ।।
…. परमशिव के बिना शक्ति स्पंदित भी नहीं हो सकती और शक्ति के बिना शक्तिमान का अस्तित्व नही ।
सब विषय शिव-शक्ति तक खत्म हो जाते है । सारी जगह यही कहा गया है ।
प्रश्न उठता है कि , क्या श्रीविद्या में शिव मोक्ष देता है ? या श्रीललिता मोक्ष देती है ? याफिर दोनों ही मोक्ष देते हैं?
मुझे बहुत सहानभूति रहती है ओर दुःख भी , जो श्रीविद्या साधक पंचदशी का जाप मोक्ष के लिए कर रहे हैं।
श्रीविद्या एक लंबा अभ्यास है , इसके अंदर की ज्ञान की बाते समझने की कोशिश करे । बुद्धि को तर्कवादी बनाए । इसके बिना सवालों के जवाब ही नहीं मिल सकते ।
श्रीविद्या के मोक्ष के अंग को समझने के लिए दो चीजो को पहले समझे । उसमे से एक …….
श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान भूमि पर उतारने से पहले ” नारायण ऋषि ” से श्रीविद्या की साधना दीक्षा ली थी । उसके बाद परमेश्वरी के आशीर्वाद से उनोन्हे गीता तत्वज्ञान भूमि पर उतारा ।
उसी गीता में श्रीकृष्ण ने अपने सहित क्षर-अक्षर ब्रम्ह का उल्लेख करके ओर अन्य पूर्ण पुरुष का उल्लेख किया है । और जिसे मोक्ष की कामना है , उसे उस ” पूर्ण पुरुष परमात्मा ” को समझने की सलाह दी है । …….. फिलहाल अत्यंत अत्यंत कम व्यक्तियों को इसकी जानकारी है ।
श्रीकृष्ण एक बार कहते है की , वो सब कुछ उनमें समर्पित करे और मुक्त हो जाए । दूसरी ओर वो मुक्ति के लिए त्रयस्थ पूर्णपुरुष की बात करते है , जो उनसे भी अलग है । तीसरी जगह वो खुदको काल भी संबोधन दे रहे हैं। ( फिर असल परमशिव की सत्ता कहांतक है और पूर्ण पुरुष मुक्त करने वाला कौन है ? )
इसीमे एक बात ऐड करता हूँ …….. श्रीकृष्ण गीता में कहते है कि वो खुद काल है ओर अपने योगमाया से / योगमाया सहित पुनः पुनः विश्व मे प्रगट होते हैं। ( इस गीता के वाक्यो से पता चलता है की इन शिव-शक्ति का विलनिकरन होकर फिरसे नए विश्व के उत्पत्ति में दोनों प्रगट होते हैं , यह एक जन्म-मृत्यु की क्रिया है । ….. इन दोनों से परे अक्षर ओर पूर्ण पुरुष है । )
आगे …….
पूर्ण गीता को सुन के ओर श्रीकृष्ण के विराट काल का दर्शन करके अर्जुन कांपने लगा । विराट पुरुष सबको खा रहा है , ऋषि-मुनि-सामान्य मानव – इतर प्राणी … कोई विद्वान है इसलिए उसे छोड़ा नही अथवा उसे कोई रेड कार्पेट सुविधा नही दी । सबको एक ही मुख से खा रहा है। ( श्रीविद्या सीखते वक़्त मोक्ष के विषय में , इससे क्या अनुमान लगाएंगे ? )
आगे , ….. यह सब देखकर , अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है , ‘ हे कृष्ण मुझे मुक्ति दो , अब मुझसे ये सहन नहीं होता । ‘
फिर श्रीकृष्ण कहते हैं , ‘ अर्जुन तुम्हे में मुक्ति नही दे सकता । ‘…….. कृष्ण की इस बात पर अर्जुन चौक जाता है। …….. कैसे कृष्ण जैसा विराट पुरुष मुक्ति नही दे सकता ?
फिर अर्जुन कहता है , ” फिर मुक्ति का रास्ता क्या है ? ”
( इस वाक्य को श्रीविद्या साधक ध्यान से पढ़े । )
श्रीकृष्ण कहते है , की ” अर्जुन तुम्हे मुक्ति चाहिए तो कोई तत्वदर्शी गुरु के पास जाओ । ऐसा तत्वदर्शी गुरु जो न सांप्रदायिक हो न किसी धर्म से संबधित हो न वांशिक (वांशिक मतलब किसी वंश का नही ओर अपना वंश नही चलाता ) हो । …….. ऐसा तत्वदर्शी गुरु की अगर मौज आएंगी तभी जाकर वो तुम्हे मोक्ष दे सकता है । ओर ऐसा तत्वदर्शी गुरु इस भूमिपर अत्यंत विरला है । तुम्हे उससे मनाना होगा । ”
अंत मे … महाभारत हुआ , फिर पांडवो की जीत हुई । समय था अब अर्जुन इतना गीता का पाठ पढ़कर क्या करेंगा ? ……… युद्ध जितने के बाद उसने सीधा हस्तिनापुर का पथ पकड़ा। ….. जबकी श्रीकृष्ण ने उसे इतना ज्ञान देकर भी अर्जुन ने एक अज्ञान मनुष्य की भांति व्यवहार किया। …… असल मे अर्जुन को कृष्ण के पीछे जाकर तत्वज्ञानी गुरु की खोज करनी चाहिए थी ।
इस विषय से आप क्या सीखे ? जो श्रीविद्या साधना में मुक्ति – मोक्ष की कल्पना की है , वो इतनी आसान सरल है?
श्रीविद्या साधक को गीता के तत्वज्ञान को एक बार तो ठीकसे समझना चाहिए। साधको के ग्रुप्स बनाकर , श्रीयंत्रो के स्टॉल लगाकर , गलत कारणों में समय बर्बादी करके ……… श्रीविद्या का ज्ञान हासिल नही किया जा सकता ।
ऊपरी लेख से यह समझ आया होगा श्रीविद्या साधक को , की मुक्ति का मार्ग कितना दूर है । और सामान्य साधक किस गलत भावनाओ को पकड़ के ओर गलत गुरु को पकड़के बैठा है ।
” पँचप्रेतासनस्थिता पँचब्रम्हस्वरूपिणी ”
पाँच प्रेतों पे बैठी , समस्त संसार को चलाने वाले पंचतत्वो को प्रेत अवस्था बनाकर उसपर आसीन हो , पँचब्रम्ह स्वरुप वाली श्रीललिता परमेश्वरी को नमन ।
पाच प्रेत से संबन्ध आता है तो श्रीविद्या का दृष्टिकोण ओर विस्तारित होता है और श्रीललिता कि उच्चतम स्थिति का अंदाजा भी लगता है।
पिछले लेख में हमने श्रीविद्या अंतर्गत मोक्ष के विषय में श्रीकृष्ण तथा गीता के महत्वपूर्ण ज्ञानतत्व को देखा ।
मोक्ष की व्याख्या में , स्वतः शिवजी ने शिवपुराण अंतर्गत सीधा सीधा बता दिया है। हम उसे अनदेखा करते हैं ।
श्रीविद्या साधक को मोक्ष के विषय मे , इस दूसरे शास्त्र में लिखे शिव के शब्दों का अपने बुद्धि में अंकन करना चाहिए।
श्रीविद्या साधक को जैसे गीता पढ़नी चाहिए वेसे शिवपुराण के रुद्र – वायवीय संहिता भी पढ़नी चाहिए।
शिव पार्वती से कहते है , ” काल का विनाश किसीसे भी नही होता । (काल मतलब स्थूल शरीर की मृत्यु भी ओर मृत्यु के बाद ऊपरी जगत में भी काल कार्य करता है। ) ………… मनुष्य तबतक काल के साये में रहता है जबतक उसे परमसत्ता रूपी परमेश्वर का शब्दब्रह्म रूप नाद नही मिलता । जन्म-मृत्यु से परे होने के लिए उसे आत्मज्ञान की आवश्यकता है । ”
………….. आगे शिवजी कहते हैं , ” है पार्वती , यह मुक्ति देने वाला ” शब्दब्रह्म ” न ॐकार है , न मंत्र है , न बीजाक्षर है कोई । ……. अर्थात किसी भी मंत्र से , बीज से कोई भी मुक्ति-मोक्ष प्राप्त नही कर सकता । …………..
साधना के पथ में कोई साधक होगा तब एक मंजिल पर , उसे नाद सुनाई देंगे …… ” घोष – कांस्य – श्रृंग – घण्टा – वीणा – बाँसुरी – दुंदुभी – शंख – मेघगर्जना ” , इन नो नादों से भी अलग जो असल शब्दब्रह्म रूपी नाद है , वो तुंकार है …. जो कोई नाद ही नही है। ”
अब , ऊपरी दो विषयो से , यह प्रतीत होता है कि , जो लोग स्वतः को श्रीविद्या साधक कहते है और अपने गुरु को सिद्ध अथवा अवधूत कहते है , ….. क्या सच मे आपको पंचदशी का मंत्र दिया है, वो मोक्ष देंगा ?
उनको ही मोक्ष मिलता , तो आज ये लोग श्रीविद्या का धंदा नही करते ।
श्रीविद्या साधक दोनों विषयो को बार बार इस दो विषयो को पढ़े , व्यक्तिगत इन ग्रंथों का अभ्यास करें ।
फिर ,
श्रीविद्या साधक को श्रीविद्या से मोक्ष कैसे मिलेंगा ?
जिनोहे श्रीविद्या में गलत गुरु किए , वो पूरे फस गए है और उनको पता ही नही , कि उनके साथ कितना बड़ा धोका हुआ है।
में आगे इस विषय पर भी आपको गहराई से बताऊंगा की कैसे श्रीविद्या में आगे बढ़ना है।
एक बात पहले बता दु , …..
श्रीविद्या से मोक्ष मिल सकता है …… पर आप जो पंचदशी का जाप करते है , वो मोक्ष नही दे सकता ।
ये एक लंबी क्रिया है । जिसका कई श्रीविद्या साधक अंधे बनकर ज्ञान लेते है ।
बहुत कम श्रीविद्या साधको को यह मोक्ष प्राप्ति का मार्ग श्रीविद्या से ज्ञात है । पर उनके गुरु सही है और ऐसे गुरु , शिष्यो की टोलियां नही बनाते ओर संस्थाओं की कामो में नही फँसाते। शिष्य को अन्तर्गर्भित करके ज्ञान प्राप्ति में लगाते हैं।
विस्तार बड़ा है और मनुष्य के पास समय कम ।
शिवसंहिता में कहा गया है-
‘‘न नादेन बिना ज्ञानं-न नादेन बिना शिवः
नादरूपं परंज्योति-नादरूपी परो हरिः’’
संर्व चिन्तां परित्यज्य- सावधानेन चेतसा
नाद एवा नुसन्धेयो-योग साम्राज्य मिच्छता।
श्रीविद्या साधना के अंतर्गत अगले लेख में हम इसे ओर विस्तार से समझेंगे ।
श्रीविद्या साधना करने से पहले शिष्य को अपनी पात्रता ओर जिस गुरु से श्रीविद्या साधना ले रहे हैं , उसकी पात्रता देखे ।
तभी जाकर कोई संकल्प सिद्ध होगा ।
लेख का मुख्य भाग शरू करने से पहले ऊपरी दो लेख के विषय अत्यंत महत्वपूर्ण थे ।
To be continued……
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