श्री बगलामुखी सहस्रनाम Explanation
🟡 पीतांबर परिधानां 🟡
नमस्कार मित्रों ,
श्रीविद्या पीठम द्वारा आप देवी श्रीललिता सहस्रनाम के एक एक शब्द का अर्थ तो समझ रहे हैं । यही अभ्यास विस्तृत रखके , हम श्री बगलामुखी सहस्रनाम के अर्थ को भी समझेंगे ।
आपको अन्य कहीं भी श्री बगलामुखी देवी संबंधी आवश्यक जानकारी नहीं मिलेंगी ।
क्योंकि , इनके विषय पर अधिक संशोधन हुआ नहीं ।
हम इस लेख में श्री बगलामुखी सहस्रनाम स्तोत्र के प्रथम श्लोक को समझेंगे ।
प्रथम श्लोक की शुरुवात होती हैं ,
पीतांबर परिधानां पीनोन्नत पयाेधराम् ।
जटामुकुटशोभाढ्यां पीत भूमि सुखासनां ।।
यहां ~ पीतांबर परिधानां ~ शब्द का अर्थ समझते हैं ।
सामान्यतः आप भी समझ जाएंगे की , पीत रंग का वस्त्र पहने हुई देवी ।
यह तो एकदम सामान्य अर्थ हुआ ।
परंतु इसमें रहस्य क्या हैं ? सिर्फ देवी ने पीतांबर रंग का वस्त्र परिधान किया ?
हम श्रीविद्या पीठम द्वारा इसका अत्यंत गोपनीय अर्थ बताते हैं ।
🟡 बगला महाविद्या अंतर्गत ” पीतांबरा ” शब्द के बहुत अर्थ हैं । सिर्फ उन्हें पीला रंग पसंद हैं , हल्दी प्रिय हैं_ इसलिए पीतांबरा नहीं कहते हैं । श्री बगलामुखी ब्रह्मांड में उनका पीतांबरा नाम से स्वतंत्र अवतार भी हैं ।
तथा _ श्री बगलामुखी राजमहल में उनके नजदीकी गुप्त शक्तियां है , यह पीतांबरा शिवलिंग का पूजन करते हैं । एक विशिष्ट मुहूर्त होता हैं । उसे दिन देवी बगलामुखी के प्रिया पीतांबरा शिवलिंग का पूजन होता हैं ।
अर्थात यह पूजन सारे देवी देवताओं के लिए नहीं हैं । और हम बात कर रहे हैं देवी बगलामुखी के ब्रह्मांड की , ना की_ श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी के ब्रह्मांड की ।
🟡 पीतांबरा शिवलिंग क्या हैं ?
इसे समझने के लिए , आप एक भ्रम निकाले की _ शिवलिंग अर्थात भगवान शंकर का लिंग । यह संपूर्ण गलत अर्थ हैं । एक अंडाकार आकृति वाला पाषाण अथवा किसी विशिष्ट धातु , विशिष्ट रत्न द्वारा बना हुआ …… जिसमें देवी की स्वतंत्र एक शक्ति उसमें समाहित रहती हैं ।
हर जगह जो शिवलिंग की तरह दिखे , वह सबकुछ भगवान शंकर का शिवलिंग नहीं होता ।
एक विशिष्ट मुहूर्त होता है उसे समय 🌕 पीले सरसों के बीज , अर्थात यह बीज उनके ब्रह्मांड के हैं । तो एक-एक बीज का आकार बड़ा होता हैं ।
जैसे देवी ललिता के राजमहल में अलग-अलग बगीचे हैं । इस तरह देवी बगलामुखी के राजमहल में भी उनके अपने स्वतंत्र 🌲 बगीचे हैं ।
किसी एक विशिष्ट बगीचे में , विशिष्ट मुहूर्त पर स्वयं देवी बगलामुखी एक एक बीज उस मिट्टी में बोती हैं । फिर वह बगीचा बंद होता हैं । उसे कोई देख नहीं सकता अथवा वहां कोई जा नहीं सकता ।
देवी बगलामुखी का जो स्नानगृह हैं । उनके स्नानगृह का पानी सीधे उन बीज की तरफ जाता हैं । और उस पानी की शक्ति से बीज से शिवलिंग आकार वाली वनस्पति निर्माण होती हैं । अब देवी बगलामुखी के शरीर के स्नान जल में बहुत तेज शक्ति होती हैं । वह उस वनस्पति में उतरती हैं ।
फिर तय मुहूर्त में आवश्यक उतने ही शिवलिंग तैयार होते हैं । उन्हें पूजन करके निकालकर , फिर उनका पूजन किया जाता हैं ।
यह विशिष्ट शिवलिंग को पीतांबरा शिवलिंग भी कहते हैं । इसमें स्वयं देवी बगलामुखी का वास होता हैं । यह पूजन सभी शक्तियां नहीं कर सकती । क्योंकि , इस शिवलिंग में बहुत शक्ति होती हैं , उसे झेलने के लिए उस देवता की उतनी क्षमता चाहिए ।