श्रीयंत्र की द्वारनायिकाएं
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इस लेख में हम श्रीयंत्र की द्वारनायिका देवियों के बारे में ज्ञान लेंगे । द्वारनायिका देवियां श्रीयंत्र भूपुर के बाहरी चार मुख्य दरवाजों पर होती हैं । इनका काम श्रीयंत्र की दीवारों के बाह्य भाग पर लक्ष्य रखना हैं ।
वास्तविक श्रीयंत्र राजमहल यह कोई छोटा मोटा साम्राज्य अथवा महल नहीं हैं । एक बड़े से बड़ा देश उसमें बैठ सकता हैं , उतना वह विस्तारित हैं ।
यह अनेकों ब्रह्मांड से अनेकों शक्तियां अपने अपने निजी कार्यों के लिए श्रीयंत्र राजमहल की अलग अलग देवियों से मिलने आते हैं । सिर्फ देवी श्रीललिता से मिलना ही प्रमुख कार्य नहीं होता । इसलिए इन चारों दरवाजों पर उतनी क्षमता वाली सुरक्षा रखी जाती हैं ।
आप अगर नीचे दिए चार्ट को देखेंगे तो आपको प्रमुख चार द्वारनायिकाएं दिखेंगी ।
१. श्री कुब्जकेशी द्वारनायिका २. सिद्धलक्ष्मी द्वारनायिका ३. उन्मनी द्वारनायिका ४. दक्षिण कालिका द्वारनायिका
इन चारों दरवाजों से चार अलग अलग शक्तियां प्रवेश करती हैं । अब यह चारों द्वारनायिकाएं क्या कार्य करती हैं ? यह अभ्यासमय विषय हैं । हम प्रथम _
१. श्री कुब्जकेशी द्वारनायिका की जानकारी लेंगे ।
इस श्री कुब्जकेशी देवी के पास हड्डियों की विद्या आती हैं । वह अपनी हड्डियों को कैसे भी मोड़ सकती हैं और तोड़कर जोड़ भी सकती हैं । केशी अर्थात उनकी नाखून बहुत लवचिक स्वरूप हैं ।
उनके प्रमुख अस्त्रों में बान , चंद्रस्त्र , त्रिशूल , एक विशेष तलावर जो वह अपने बालों में रखती हैं । यह तलवार बहुत छोटी हैं । इस तलवार की गुप्तता के कारण उसे कुब्जा कहते हैं ।
यह श्रीयंत्र का प्रमुख द्वार होने के कारण यहां से आत्माएं प्रवेश करती हैं । वह आत्माएं जो श्रीविद्या , श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी की तपस्या करती हैं और उच्चतम स्तर पर जाती हैं ।
२. दूसरी श्रीसिद्धलक्ष्मी द्वारनायिका हैं ।
यह श्रीयंत्र की उत्तर दिशा की द्वारनायिका हैं । यहां से देवगण , पशु पक्षी समाज की देवताएं होती हैं _ वह प्रवेश करती हैं । पशु पक्षी समाज की देवताएं आधी मनुष्य – आधी पशु इस तरह से देवताओं का रूप होता हैं ।
श्रीसिद्धलक्ष्मी द्वारनायिका इनके पैर सोने के हैं । हम मनुष्य सिर्फ एक ही सोने का उपयोग करते हैं । परंतु श्री ललिता देवी के जगत में सोने के अलग अलग प्रकार हैं । यह सोना अत्यंत कठिन धातु हैं । यह सोना कभी किसी अग्नि द्वारा गला नहीं सकते ।
श्रीसिद्धलक्ष्मी द्वारनायिका अर्थात इन्हें सिद्ध करके प्रगट किया हैं ।
इनका विशेष काम यह है की , इस द्वार से बड़ी बड़ी देवता शक्तियां आती हैं । अब श्रीयंत्र में किसी सामान्य देवी देवता को प्रवेश नहीं होता । इसलिए आने वाली शक्तियों का उचित सम्मान जरूरी हैं । इस द्वार पर उनपर पुष्प वर्षाव करना , जाते समय किसी देवता का कोई विशेष संदेश श्रीयंत्र के अंदर किसी देवता अथवा देवी ललिता को पहुंचना है तो यह द्वार नायिका वह काम करती हैं । तथा किसी देवता को कोई विशेष चीज चाहिए , तो उन्हें वह उपलब्ध करवाने का कार्य भी करती हैं । उससे भी बड़ा कार्य _ जब देवताएँ श्रीयंत्र से अपना कार्य करके निकलते हैं । तब उन्हें देवी ललिता का आशीर्वाद स्वरूप में प्रसाद देने का कार्य भी यही श्रीसिद्धलक्ष्मी द्वारनायिका करती हैं । यह प्रसाद भी इस तरह से होता हैं की , उस देवता का परिवार और उसके नीचे जो प्रमुख सहकारी देवगण हैं _ उनको उतना ही प्रसाद मिलेंगा _ न कम ना ज्यादा । यह सभी विशेष कार्य श्रीसिद्धलक्ष्मी द्वारनायिका के पास आते हैं ।
इस देवी के पास त्रिशूल , पतली सोने की प्लेट जिसकी कड़ा विषारी हीरों से बनी हैं और उसमें देवी ललिता के पसंदीदा फल रखे हुए रहते हैं और यह प्लेट एक चक्र की तरह काम करती है , एक हाथ में पाश और दूसरे में कलश होता हैं _ जिसमें कुंकु भरा हुआ रहता हैं । यह कुंकू देवी ललिता का हैं ।
३. तिसरी श्रीउन्मनी द्वारनायिका हैं ।
उन अर्थात गुरू , गुरू के नीचे आने वाली शक्तियां ___ उन्मनी देवी । यह स्वयं एक गुरु हैं और द्वारनायिका भी हैं । सभी सन्यासी और गुरूमंडल का स्वागत इस दरवाजे से होता हैं । एक राजा , एक देवता और एक गुरु का स्वागत करने की पद्धति अलग अलग होती हैं । श्रीयंत्र राजमहल में बहुत बड़ा और अनेकों विभागों का अभ्यास करने वाला विस्तारित गुरुमंडल हैं । इसकी कल्पना हम नहीं कर सकते हैं । इस द्वार की सजावट और पूजन यही देखती हैं ।
इनके हाथों में त्रिशूल , इन्फिनिटी टाईप का एक अस्त्र ( एक साईड चंद्र , दूसरे साईड सूर्य और बीच वाले पाईप में लिक्वीड होता हैं । ( यह जल श्रीललिता व श्रीकामेश्वर इनके पैरों का तीर्थ है । जिसमें गुलबजाल , कदंब रस , फुल तीर्थ )
कोई गुरू जब श्रीललिता त्रिपुरसुंदरी का आशीर्वाद लेकर नए ब्रम्हांड बनाने के लिए अथवा तत्सम विशेष कार्य के लिए निकलते हैं , तब उन्हें विशेष आशीर्वाद की आवश्यकता होती हैं । तब आशीर्वाद के रूप में यह तीर्थ उन्हें दिया जाता हैं । इसका अर्थ _ देवी श्रीललिता की एक तरह से अनुमति दिखाना होता हैं ।
४. चौथी श्रीदक्षिण कालिका द्वारनायिका हैं ।
श्रीयंत्र भूपुर का यह चौथा दक्षिणी दिशा का दरवाजा अत्यंत गोपनीय हैं । यहां कड़े नियम होते हैं । इसे असुर द्वार भी कहते हैं , क्योंकि यहां से असुर शक्तियां , असुर देवताएं प्रवेश करती हैं । इसलिए इस द्वार की नायिका ” श्रीदक्षिण कालिका ” हैं । यह देवी का जन्म भी इसी दिशा में हुआ , इसलिए इन्हें दक्षिण कालिका ही कहां हैं ।यह शक्ती श्रीललिता के काली रूप से आई अंग शक्ती हैं ।
इन द्वार नायिका के हाथों की बाऊल में कदंब रस हैं , त्रिशूल , खड्ग ( दोनों बाजू C होता हैं । ) , गले में साप , काली तलवार होती हैं ( यह तलवार भी काली हैं । देवी ललिता के बालों का पानी कभी कभी काला आता हैं , जब वह बाल धोती हैं । उस पानी में इस तलवार हो बनाया गया हैं । ) ।
इस तरह से चार द्वारनायिका देवियों की जानकारी हैं ।
यह ज्ञान अन्य कहीं उपलब्ध नहीं हैं । आप श्रीविद्या की अधिक जानकारी के लिए हमारे उपरोक्त लिंक पर देख सकते हैं ।
१. https://srividyapitham.com/advance-srividya-course/
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