Sri Vidya – Dwadshant (द्वादशान्त विज्ञान) 3

Sri Vidya – Dwadshant (द्वादशान्त विज्ञान) 3

◆ श्रीविद्या अंतर्गत द्वादशान्त विज्ञान ◆
भाग : ३

 

द्वादशान्त को ही द्विष्टकांत , मुष्टित्रयांत , शिखान्त ऐसे भी कहा जाता हैं ।

उन्मना का स्थान इसी द्वादशान्त में है ऐसा माना जाता हैं ।

निर्विकल्प योगी का ” उन्मना ” के इस स्थान पर पहुचने के बाद ऊपरी परमाकाश में पहुचने पर उसके सर्वात्म का विकास होता है ।
इसे अन्युत्तर शून्य भी कहा है । ओर श्रीयंत्र का अंतिम महाबिन्दु भी कहा है , बाद में शिव का शव हो जाता हैं ।

प्राण की पूरक – कुम्भक – रेचक ये अवस्थाएं चलती रहती हैं । हॄदयस्तिथ कमलकोश में प्राण का उदय होता है । …… बाद में नाक से बहार निकल कर वह 12 अंगुल अंतर पर आकाश में विसर्जित होता हैं । ……
………… यह बाह्य आकाश , बाह्य द्वादशान्त नाम से कहा जाता हैं । …… प्राण की इस अवस्था को रेचक कहा जाता हैं ।

…….. इसी बाह्य द्वादशान्त में अपान का उदय होकर , नाक से हॄदयस्तिथ कमलकोश में वो विलीन हो जाता है । अपान की इस स्वाभाविक गति को पूरक कहा जाता हैं। ….. यह आंतर द्वादशान्त कहते हैं ।

इस तरह से ये ” शिव द्वादशान्त ” और ” शक्ति द्वादशान्त ” है ।

परन्तु , द्वादशान्त हमारी शिखा के के पास ही है , प्राणायाम में योगीपुरुष पूर्ण श्वास मूलाधार से द्वादशान्त तक चलाते है , इसे ही कुछ लोग हॄदय से द्वादशान्त तक भी चलाते है । …… ऐसे दो मत है ।
…… यह उल्लेख बस ज्ञान हेतु दिया है ।

यौगिक क्रियाओं में , मुलाधार अथवा हॄदय स्थित प्राण , ……. सुषुम्ना के विकास द्वारा जब ऊपर आरोहण करता है , तब द्वादशान्त की जगह जाते जाते अत्यंत सूक्ष्म हो जाता है ओर अंत मे एक प्रकाश में विलीन हो जाता है । इसे स्वात्मा अवस्था भी कहते हैं ।
……… इस क्रिया को योग शास्त्र में “पिपलस्पर्श वेला ” भी कहते हैं ।

द्वादशान्त की इस क्रिया में अथवा योग की क्रिया में सुषुम्ना मध्य नाड़ी होने से ” मध्यधाम ” नाम से जाना जाता हैं ।
मध्यधाम सुषुम्ना को शून्य ओर शिवतत्व को शुन्यतिशून्य कहने का भी रिवाज है ।

शुन्यतिशून्य को ही द्वादशान्त कहते हैं ।

सुषुम्ना यहाँ आकर विलीन हो जाती है । जैसा कि पिछले लेख में कहा था , की यही द्वादशान्त …. उन्मना है । …… यही श्रीयंत्र के अंतिम बिंदु स्थित त्रिकोण की जगह है । ……. सुषुम्ना यही आकर विलीन हो जाती है अथवा उसकी सत्ता समाप्त हो जाती हैं …….. अर्थात वो श्रीललिता की ” वामा-ज्येष्ठा- रौद्री ” ….. इनको ही ” इच्छा-ज्ञान-क्रिया शक्ति ” …… ” ज्ञाता-ज्ञान-ज्ञेय ” ……. ई रूपो से देखा जाता है ।

श्रीविद्या अंतर्गत द्वादशान्त शब्द का अर्थ का लेख हम समाप्त कर रहे है ।

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