◆ श्रीविद्या अंतर्गत शिव-शक्ति का भेदन (शिवलिंग) ◆
☘️ शिव से शव की ओर ☘️
भाग : 1
श्री ललिताय नमः ।।
जब कोई “श्रीविद्या” साधना के नाम से संमोहित हो जाता है , तब हर कोई इससे सीखना चाहता है।
पर हर कोई यह नही समझता , श्रीविद्या कोई बाजार की सब्जी मंडी नही । इसके अंतर्गत अनेक विषयों का अभ्यास करना पड़ता है। सिर्फ गुरु ने मंत्र दिया और हो गया , इस तरह की बेवकूफी वाली बात कभी नहीं होती।
इसके विषय में कुछ भ्रमनाए है जिनको फैलाकर कुछ ने अपने धंदे खड़े किए हैं। जिसमे श्रीविद्या के नाम पर अलग अलग विषयो को बेचा जाता हैं। एक श्रीविद्या जब आप साधना करते हैं तब कोई दूसरी साधना करने की जरूरत नहीं होती । पंचदशी अपने आप मे ही सब सिद्ध करने वाली भी है और कुण्डलिनी तथा मृत्युंजय विद्या तथा आयुर्वेद सहित अनेक विषयों के ज्ञान का भी अर्जन करवाती है ।
सत्यता यही है , द्वैत हो या अद्वैत ऋषियों ने ग्रंथो में आज इतना क्लियर कर रखा है की , साधना में साधक को जाना कहा से कहांतक है। फिर भी लोग श्रीविद्या में गलत साधनाओ को डाल देते हैं, इसपर इनका जवाब भी यही होता है की यह सब शिव ने दिया है ।
परमशिव ने अपने आम्नाय अंतर्गत एक सही सही विधान से श्रीविद्या का द्वैत ओर अद्वैत मार्ग की आलोचना न जाने कितने लाखो या करोड़ो साल पहले करके रखी है , जो आजभी उस ” आत्मज्ञान ” की उन्नती मार्ग उसमे दिया हुआ है।
परमशिव शब्द इसलिए जोड़ा है कि वास्तविक शिव तत्व को समझने तथा सन्मान देने हेतु ।
श्रीविद्या में ” शिवलिंग ” ओर ” शिव ” इस शब्द को घुमा घुमाकर कुछ गुरु अपना उल्लू ठीक करने का प्रयास करते है।
और इसमें कुछ मूर्ख फस भी जाते हैं। साधक को अपने तर्क बुद्धि से उस पहलू के अंतर्गत जाने प्रयास करना चाहिए ,
सिर्फ गुरु ने कहा इसलिए में मानता हूं , यह धारणा छोड़नी चाहिए।
आज थोडासा इसी ऊपर प्रकाश डालेंगे , जिसपर खुदको श्रीविद्या के बड़े सिद्ध या श्रीविद्या के अद्वैत सिद्धांत शिरोमणि कहने वालों ने कभी प्रकाश डाला नही , न की उनको यह रास्ता पता हो ।
क्योंकि ,
पहले तो श्रीविद्या साधक को द्वैत – अद्वैत किसी भी मार्ग से जाए , अपना आम्नाय ओर गुरूपादुका का थोडासा ज्ञान होना जरूरी है ।
क्योंकि इसीके अंतर्गत द्वैत को प्राप्त करने का तथा उसी शक्ति को भेद के शिवलिंग के अद्वैत होने का राजमार्ग छुपा है।
इसलिए झूठा ही सही पर इन दो चीजो का थोडासा ज्ञान गुरु से ले।
शिवलिंग की पवित्रता तथा सामान्य पूजाविधान तथा उसकी वैज्ञानिक महत्तता के विषय में अन्य लेख बहुत अच्छी तरह से आज प्रकाशित है।
पर , शिवलिंग का श्रीविद्या अंतर्गत अद्वैतता के ऊपर प्रकाश डालकर उस पवित्र विज्ञान को समझना और समझाना उतना आसान नहीं।
यह तो सभी जानते है , शिवलिंग ही शिव-शक्ति का अभिन्न जोड़ है। पराशक्ति का अंग स्वरूप ” श्रीयंत्र ” का अंतिम त्रिकोण अंतर्गत बिंदु , वही त्रिकोण सहित बिंदु ही शिवलिंग है , उसे ” ब्रम्हयोनी ” भी कही गई है। यह भी कहा जाता है की भारत के प्रसिद्ध शिवलिंग है उनके नीचे श्रीयंत्र बना हुआ है।
शिव जी का विषय आता है तब कैलास पर्वत का संबध भी आता है । हमे बताया जाता है की शिव का स्थान कैलास पर्वत है । कुछ लोगो ने अपने उपन्यास में शिव को एलियन तक कहा है।
एलियन वाली बात तो गलत है , शिव कोई एलियन नही । एलियन भी मानव की तरह एक जीव है । मृत्यु उनको भी है , बस वो मानव से टेक्नोलॉजी में आगे की पहुँच रखते हैं।
( कुछ सेकड़ो साल पहले तक हमारे अध्यत्मिक क्षेत्र में जो पूर्व के सिद्धात्मा थे जिसमें बुद्धिस्ट भी है , उनके संबध एलियन से आ चुके हैं। हिमालय से तिब्बत तक ओर पृथ्वी के कुछ गुप्त जगह पर इन एलियन के साथ हमारे कुछ सिद्धात्मा ओ की समाधिया भी हैं। एलियन की कुछ उन्नत जमात आध्यात्मिक विषय मे पृथ्वी पर आती थी। )
जैसे हम मनुष्य और बाकी जीव कीटाणु प्राणी उनके अलग अलग फॉर्म में बांधे हुए है और उनमें जो कार्य इनकोड हुआ वेसे ही सब बर्ताव कर रहे हैं। इसलिए मनुष्य भले सबसे ज्ञानी हो फिर खुद पंछी की तरह उड़ नही सकता ।
वेसे सारे देवता ओ को उनके ही अलग फॉर्म में डाला गया है । जैसे वरुण देवता का कार्य अग्नि नही कर सकता । सभी को एक तत्व का कार्य दिया है। वेसे ही शिव का भी अपना एक अलग फॉर्म है ।
जैसे हममे मृत्यु है वेसे उनमें भी है। इसलिए शिव तत्व असली रूप में कोनसा कार्य कर रहा है , इसकी समझ होनी चाहिए। शिव के ऊपर भी शिव है और उसके ऊपर भी परमशिव है । तो , जो अमर शिव कोन है ? उसके तत्व को हमे जानना जरूरी है ।
श्रीविद्या साधना कर रहे हैं तो इस तत्व को जरूर समझे ।
हमारे शरीर मे मूलाधार-हृदय-आज्ञा में तीन अलग अलग टाइप के शिवलिंग है , जिनोने शरीर की ऊर्जाओं को बांध रखा है । कैलास पर्वत को शिव का निवास स्थान कहते , पर हिमालय स्थित कैलास स्थूल वाला असल नही , शिव तत्व रूपी देवता ओ के निवास स्थान सूक्ष्म रूप की अवस्था मे होते हैं , जो भूमि से सटे नही होते । एक देवता होने पर कोई देवता भूमि को स्पर्श नही करता , क्योंकि भूमि अर्थात मुलाधार चक्र कर्म बन्धन में बांध देता है।
आप किसी कथा में देखे , कोई भी दिव्य दिव्य परमपुरुष सन्त का ऊपरी जगत से आगमन होता है , तो वह भूमि से थोड़े ऊंचाई हवा में ही स्थिर रहते हैं।
हिमालय में बना हुआ कैलास पर्वत , सूक्ष्म रूप कैलास का रिफ्लेक्शन है । अंदर अलग जो शिवलिंग है वो एक दिव्य तत्व का बना हुआ है। साथ मे ही अपने साथ न जाने कितने दिव्य शक्तियों को खिंच तथा दिव्य ज्ञान का जतन करके है ।
इस विषय मे आगे की लेख में ओर गहराई से जानकारी देंगे । क्योंकि श्रीविद्या साधक को इन सबकी थोड़ीबहुत जानकारी होनी चाहिए।
शिवलिंग के बारे मे एक लेख में कुछ सही जानकारी दी थी , उसका एक हिस्सा दे रहा हु ।
【 शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है | हम जानते है की सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ निकलते है जैसे: सूत्र के – डोरी/धागा,गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि | अर्थ :- सम्पति, मतलब (मीनिंग), उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी या प्रतीक है। ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और पदार्थ | हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है| इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है | ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है | अब जरा आईसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है | e / c = m c {e=mc^2} 】
To be continued …
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