◆ श्रीविद्या अंतर्गत सौंदर्यलाहिरी ब्रम्ह भ्रम औऱ मल ◆
आदिशंकराचार्य जी ने किस रूप से अपनी साधना कर अद्वैतता को पहुचे , यह सौंदर्यलाहिरी की श्लोको से समझ आता है ।
आजका विषय है सौंदर्यलाहिरी के अंतर्गत ” ब्रम्ह भ्रम और मल ” ।
पहले हम , हमारे ही सामन्य जीवन में आध्यात्मिक भ्रम का एक विषय देखे ।
श्रीविद्या साधना एक बड़े स्तर की साधना है , जिसे हम आध्यात्मिक पीएचडी भी कह सकते हैं । पर ये उतना आसान नही , जितना कि लोग कई हजारो रुपये खर्च करके हजारों की ग्रुप में बैठकर मंत्र दीक्षाए लेते है ।
दस साल हुए – पन्द्रह साल हुए जाप करके ….. ऐसे लोगो के कुछ हात नही लगता । ……. कारण की गलत साधना लेने के परिणाम यही होते हैं।
ऐसा क्यों होता है ?
क्योंकि जिसकी साधना कर रहे हैं , उसके प्रति मेच्युर भाव , परिक्व भाव नही ।
अब यह क्या होता है ?
कोई साधक ललिता सहस्रनाम पढ़ रहा है । रोज पठन करता है । उसका भाव प्रेम बढ़िया है । ये भक्तिमय भाव है । ………. पर वो साधक जब सोचता है कि , जिसका मैं पाठ कर रहा हूँ , उसको में ओर कैसे जानू ? कैसे उस तत्व को समझू ? ………. इस प्रश्न के साथ तुम्हे , ललिता सहस्रनाम के प्रत्येक श्लोक में एक विद्या मिलेंगी …… जो श्रीविद्या के सभी अंश है और पूर्ण रूपेण ब्रम्हविद्या है ।
पठन करने वाला बोल रहा है …..
” मूलाधारैक निलया ब्रह्मग्रन्थि विभेदिनी
मणि पूरान्तरुदिता विष्णुग्रन्थि विभेदिनी ||
आज्ञा चक्रान्तरालस्था रुद्रग्रन्थि विभेदिनी
सहस्राराम्बुजारूढा सुधा साराभिवर्षिणी|| “
पर इस श्लोक का अर्थ क्या है ?
तीन ग्रंथियाँ है । ब्रह्मग्रन्थि विष्णुग्रन्थि रुद्रग्रन्थि …. ये तीनो षट्चक्रों पर तीन जगह पर है । …… इनका मतीतार्थ यह है कि , ब्रम्हग्रंथि मतलब ललिता त्रिपुरसुंदरी का गणेश जिसे ” महागणपति ” कहते है , विष्णुग्रंथि मतलब जिसे ललिता की सबसे प्रिय अनुचरी ” मातंगी देवी ” , रुद्रग्रन्थि मतलब ललिता की सेनापति दण्डनाथा ” श्रीवाराही देवी ” ………. अर्थात शक्ति कह रही है की तुम मुलशक्ति को समझने से पूर्व इन तीनो की साधना करो और पराशक्ति तक पहुँचो ।
अब यह ललिता सहस्रनाम का अर्थ , पठन करने वाले साधक को समझेंगा तब उसका भाव भक्ति वाला एटीट्यूड बदल जाएगा और वो वैचारिक दृष्टि से पक्व होने की तरफ निकलेंगा ।
यह पर दो अवस्था है । एक जो दिन भर पठन करता था … बिना अर्थ समझके । दूसरा जो , अर्थ समझ ने के बाद उसके भक्ति में पक्वता आने लगी और वो शक्ति को ओर अच्छे से समझने लगा ।
आप चाहे तो इसका अनुभव करे ।
यह में क्यों बता रहा हूं , कि कई लोग श्रीविद्या साधक मिलते है । उनको अगर श्रीविद्या का आम्नाय क्या है ? पंचदशी के प्रथम बीज ” क ” मतलब क्या है ” पुछके देखो तो भाग खड़े होते हैं और जवाब के नाम पर झिरो ।
जो गुरु तुम्हे श्रीविद्या की पायाभूत नींव का ज्ञान ही न दे सके , ऐसे जगह व्यक्ति अपना जीवन बर्बाद कर देता है । पूर्ण नही , पर अंशगत ज्ञान जरूरी है ।
यही है ब्रम्ह भ्रम । जिसे आदिशंकराचार्य सौंदर्यलाहिरी में कह रहे हैं ।
तुम जब पहली कक्षा में थे तब तुम्हें 1 से 10 गिनती मालूम थी , जब तुम पाँचवी कक्षा में गए तब तुम्हें 100 से 1000 तक गिनती समझी , जब तुम दसवीं में गए तो 1000 से लाख की गिनती तुम्हें समझी ।
मतलब तुमने हर कक्षा में अपने हुनर को बुद्धि को विचारों को डेवलप किया । अगर तुम ऐसा नहीं करते तो तुम पहली कक्षा में ही रहते ।
फिर एक साधक को श्रीविद्या साधना में कैसे होना चाहिए ? इसपर विचार करे ।
इसलिए पहले अपने माया के भ्रम तोड़ो ।
और एक उदाहरण देता हूँ , श्रीविद्या साधक ललिता के तीन रूपो की पूजा करता है ।
१) बाला त्रिपुरसुंदरी २) ललिता त्रिपुरसुंदरी ३) षोडषी ……. अब तीनो एक शक्ति है पर तीन कलाओ में विभक्त हुए हैं ।
ऐसा क्यों ? …… सामान्य साधक को यह सवाल पूछने पर वो जवाब देंगे कि , बाला त्रिपुरा यह देवी का कुमारी छोटा रूप है और ललिता एक पूर्ण स्त्री का रूप है । ….. इसके आगे साधक की बोलती बंद हो जाती है ।
मतलब की साधक इन देवियों के फोटो देखकर भरी भावनाओ से यह उत्तर दे रहा है ।
पर गुरु क्या कहेंगा इस विषय में ? अथवा विद्या क्या कहती है , इस विषय में ? …… क्या तुमारी छोटी लड़की है , … तो उसका स्त्री मन देखो , उसका अभ्यास करो … तुम्हे ” बाला ” समझेंगी । तुमारी शादी हुई है … पत्नी है , फिर तुम अपने पत्नी के स्त्री मन स्त्री शक्ति को समझो फिर तुम्हे कही जाकत ललिता समझेंगी ।
बस , यही है भ्रम में फसना ओर उससे बहार निकलना । गुरु यही सिखाता है । इसे सीखने में ही कितने लोग गलत जगाहों पर श्रीविद्या पर ढेर सारा पैसा और घर मे सोला-सोला श्रीयंत्र रखने पर खर्च करते है , पर मूलतत्व को नही समझ पाते ।
सही श्रीविद्या साधक को जब उसको अपनी पत्नी में ललिता का दृष्टांत होगा तब वो पहले , पत्नी को ही नमस्कार करेंगा । पर यहाँ , लोग अपने पत्नी को ही सही स्थान नही दे पाते और मानसिक दबाव बनाते हैं ।
आदिशंकराचार्य पाँच भ्रम का उल्लेख करते हैं ।
जीव – ब्रम्ह का भेद पहला है ।
आत्मा का कर्ता भोक्तापन वास्तविक है या नही , यह दूसरा भ्रम है ।
स्थूल-सूक्ष्म-कारण तीनो शरीर की संयोग से आत्मा मुक्त हो गया , यह तीसरा भ्रम है ।
चौथा-पाँचवा भ्रम जगत के और उससे उत्पन्न कारण रूप ब्रम्ह के विषय मे है ।
बाकी तीन मल सौंदर्यलाहिरी में जो कहे है ,
वो मायामल – कर्तामल – आनवमल ।
यह श्रीविद्या का वैचारिक बौद्धिक दृष्टिकोण से अभ्यास है । अद्वैतता क्या होती है और वो द्वैत में कैसे उतरी है , इनके जवाब आपको इसमे मिलेंगे ।
इसके लिए गुरु से हमेशा बातचीत और मित्रत्व चाहिए ।
आदिशंकराचार्य जी ने इस विषय मे 36 तत्व के विषय मे कहा है । जब श्रीविद्या में 36 तत्व को समझते है , तब ब्रह्म और परब्रह्म के अंतर का एहसास होगा ।
36 तत्वो को आदिशंकराचार्य जी ने तीन विभाग में विभाजीत किया है , 36 में से 5 शुद्ध तत्व है , 7 शुद्धाशुद्ध तत्व है , 24 अशुद्ध तत्व है ।
वो कहते है कि पहले 5 तत्वों को छोड़कर बाकी 31 तत्वों की शुद्धि होती हैं ।
अनात्म तत्वों में आत्म भावना न रहने पर इनकी शुद्धि हो जाती है । अनात्म तत्व मतलब यही 31 तत्व । निचला चार्ट पढ़ने पर आपको 36 तत्वों के विषय में समझ आएगा ।
सभी ब्रम्ह भ्रम जो है , वह इन्ही 31 के विषय में है ।
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